Tuesday, 23 May 2017

चहेतों को नियुक्त करने के लिए बाकियों को कॉल लेटर ही नहीं भेजा



(रणविजय सिंह, 23 अप्रैल 2017, लोहिया इंस्टीट्यूट पार्ट फाइव)

चहेतों को असिस्टेंट प्रोफेसर बनाने के लिए लोहिया इंस्टीट्यूट के अधिकारियों ने हर वो दांव इस्तेमाल किया जो वो कर सकते थे। पिछली सरकार में इन पदों के लिए विज्ञापन करने से लेकर चुनाव के दौरान प्रतिनियुक्ति का प्रस्ताव, इंटरव्यू और बीजेपी सरकार में गुपचुप तैनाती को लेकर अब कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं।
एनबीटी की पड़ताल में सामने आया कि विज्ञापन के बाद आवेदन करने वाले कई अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए बुलाया ही नहीं गया। जिन्हें बुलाया उन्हें भी महज दो दिन पहले कॉल लेटर भेजा, ताकि दूर दराज के अभ्यर्थी समय से आ ही ना सकें। इसके बावजूद जो इंटरव्यू के दिन पहुंच गए, उनके अनुभव प्रमाणपत्रों और एनओसी समेत दूसरे मानकों की बारीक पड़ताल हुई और मामूली कमियां बताकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। यह तमाम तौर तरीके इस्तेमाल करने के बाद भी जिन विभागों में अधिकारी अपने चहेतों की भर्ती करने में सफल होते नहीं दिख रहे थे, उन विभागों का इंटरव्यू ही स्थगित कर दिया। इन तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए मानसिक रोग, स्किन और आई विभाग को छोड़कर इंटरव्यू के जरिए बाकी विभागों में केवल इतने पदों पर भर्ती की गई ताकि असिस्टेंट प्रोफेसर 10 पद खाली रह जाएं। इस तरह हर विभागों के लिए दर्जनों काबिल आवेदकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और सात अप्रैल को एमसीआई की टीम आयी तो आपात स्थिति का हवाला देते हुए इन पदों पर लोहिया अस्पताल के 10 डॉक्टरों को प्रतिनियुक्ति पर तैनाती दे दी।
_ स्वास्थ्य निदेशालय में अपर निदेशक (प्रशासन) रहे डॉ़ आरवी सिंह ने लोहिया इंस्टीट्यूट में असिस्टेंट प्रोफेसर और मेडिकल सुपरीटेंडेंट के लिए आवेदन किया था। उन्हें कॉल लेटर नहीं भेजा गया। बतौर डॉ़ आरवी सिंह आवेदन करने के बाद वे कई बार निदेशक प्रो़ दीपक मालवीय, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा अनीता भटनागर जैन एवं महानिदेशक डॉ़ बीएन त्रिपाठी से भी मिले लेकिन उन्हें इंटरव्यू में शामिल करना तो दूर इसकी सूचना तक नहीं दी गई।
_ गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के डॉ़ मनीष सिंह ने कम्युनिटी मेडिसिन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए आवेदन किया था। इन्हें महज दो दिन पहले कॉल लेटर भेजा गया। सभी मानक पूरे करने के बावजूद चयन नहीं हुआ और आज तक लोहिया इंस्टीट्यूट ने कोई रिजल्ट वेबसाइट या दूसरे तरीकों से सार्वजनिक नहीं किया, जिसे देखकर डॉ़ मनीष को यह भी नहीं पता चला कि उनका चयन हुआ है या नहीं।
_ लखनऊ स्थित निजी मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर ने आवेदन किया था लेकिन लोहिया इंस्टीट्यूट ने उन्हें कॉल लेटर नहीं भेजा। पूछने पर बताया गया कि उन्होंने जिस कॉलेज का टीचिंग एक्सपीरिएंस लगाया है, उसमें एक साल एमबीबीएस के दाखिले नहीं हुए थे। लिहाजा उनका तीन साल का टीचिंग एक्सपीरियंस नहीं माना जा सकता। इसके उलट इसी कॉलेज के एक अन्य आवेदक को कॉल लेटर भेज दिया गया। इस मनमानी पर पूछताछ हुई तो निदेशक प्रो़ दीपक मालवीय ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया।
_ लोहिया इंस्टीट्यूट के लिए जारी विज्ञापन में पैथोलॉजी विभाग के लिए कोई विज्ञापन ही नहीं हुआ। इसके बावजूद एमसीआई के निरीक्षण में इस विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर की कमी दिखाते हुए लोहिया अस्पताल के डॉ़ संजय जायसवाल की नियुक्ति दिखा दी गई। यही नहीं साइकियाट्री, डरमैटोलॉजी एंड लेप्रोसी और ऑप्थेलमोलॉजी विभाग में कोई इंटरव्यू ही नहीं कराया गया और शिक्षकों की कमी दिखाते हुए अस्पातल से डॉक्टरों को असिस्टेंट प्रोफसर बना दिया।

दीपक मालवीय से बातचीत :
सवाल : आवेदन करने वाले कई डॉक्टरों को कॉल लेटर नहीं भेजा गया।
जवाब : सभी आवेदनों पर विचार के लिए स्क्रीनिंग कमिटी बनी थी। इस कमिटी की सिफारिश पर ही कॉल लेटर भेजे गए। जिन्हें योग्य नहीं पाया गया, उन्हें नहीं भेजा गया।
सवाल : कई विभागों में इंटरव्यू नहीं कराए गए?
जवाब : हां, शेड्यूल नहीं होने के कारण तीन विभागों में इंटरव्यू नहीं हो सके थे। जल्द ही इन विभागों के इंटरव्यू कराने की तैयारी है।
सवाल : लखनऊ स्थित एक निजी मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर को कॉल लेटर भेजा गया और दूसरे को नहीं भेजा गया। ऐसा क्यों?
जवाब : यह जवाब तो स्क्रीनिंग कमिटी ही दे सकती है कि ऐसा क्यों हुआ। कई बार गलती से भी हो जाता है लेकिन जहां तक मेरी जानकारी है, इस कॉलेज के जिस अभ्यर्थी को कॉल लेटर गया था, उसे सिलेक्ट नहीं किया गया।
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मैने लोहिया इंस्टीट्यूट में मेडिकल सुपरीटेंडेंट और असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए सभी मानक पूरे करते हुए आवेदन किया था। मुझे कॉल लेटर तक नहीं भेजा गया। अब पता चला रहा है कि भर्तियां हो चुकी हैं।
डॉ़ आरवी सिंह, पूर्व अपर निदेशक

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