(रणविजय सिंह, 22 अप्रैल 2017, लोहिया इंस्टीट्यूट पार्ट फोर)
लोहिया इंस्टीट्यूट में अधिकारियों ने अपने चहेतों को असिस्टेंट प्रोफेसर बनाने के लिए विज्ञापन की शर्तों से इतर उन्हें योग्य साबित करने के लिए जो नियम जहां से मिला, उसे मान लिया। अस्पताल का लोहिया इंस्टीट्यूट में विलय नहीं हुआ था लेकिन अधिकारियों ने विलय मानते हुए उन्हें प्रतिनियुक्ति पर तैनात करने का तर्क दिया। लोहिया के 10 डॉक्टरों के पास असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर आवेदन के लिए तीन साल का टीचिंग एक्सपीरिएंस नहीं था तो अधिकारियों ने इन डॉक्टरों के लिए विज्ञापन से इतर दिल्ली के ईएसआई अस्पतालों के नियम लगा दिए। यही नहीं अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टरों के रहते जूनियर को मौका देने के लिए बहना बना दिया कि सीनियर तो जल्द ही रिटायर होने वाले हैं, लिहाजा उन्हें नहीं लिया जा सकता।
लोहिया इंस्टीट्यूट में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुई हैं। कैबिनेट मंत्री, आईएएस और इंस्टीट्यूट के आला अधिकारियों ने अपने चहेते डॉक्टरों को असिस्टेंट प्रोफेसर बनाने के लिए विज्ञापन के नियमों में जमकर मनमानी की। नियमों को न सिर्फ तोड़ा गया, बल्कि मनमानी को सही साबित करने के लिए इधर उधर के नियम लगा दिए गए। लोहिया इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो़ दीपक मालवीय का तर्क है दिल्ली के ईएसआई अस्पतालों में डॉक्टरों के अनुभव को टीचिंग के लायक माना जाता है। हालांकि उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि जो नीति यूपी में लागू नहीं है, उसे केवल एक संस्थान में कैसे लागू किया जा सकता है। वहीं लोहिया अस्पातल का विलय न होने की स्थिति में भी केवल वहीं के चुनिंदा 10 डॉक्टरों के चयन पर अधिकारियों के पास जवाब नहीं है।
सीएम से मिलकर नीति बनाने की मांग :
प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ ने मुख्यमंत्री से मिलकर सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों को असिस्टेंट प्रोफेसर बनाए जाने की नीति बनाए जाने की मांग की है। अध्यक्ष डॉ़ अशोक यादव ने लोहिया अस्पताल के चुनिंदा डॉक्टरों को लोहिया इंस्टीट्यूट में असिस्टेंट प्रोफेसर बनाए जाने को गलत बताया। उन्होंने कहा कि प्रदेश के करीब 1200 डॉक्टर एमडी, एमएस डिग्री धारक हैं। इन सभी के पास असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की योग्यता है। ऐसे में केवल कुछ डॉक्टरों को मौका दिया जाना सही नहीं है। उन्होंने सीएम को यह भी सुझाव दिया कि अस्पतालों के इन 1200 डॉक्टरों की मदद से मेडिकल कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की कमी को दूर किया जा सकता है लेकिन इसके लिए कोई पारदर्शी नीति बनायी जाए, ताकि मनमानी न होने पाए।
रिश्तेदारों का जमावड़ा :
लोहिया अस्पताल के कई विभागों में 30 से 40 फीसदी पदों पर यहां तैनात डॉक्टर, एचओडी और अधिकारियों के रिश्तेदार जमे हुए हैं। विभागों में तैनात कइ डॉक्टर तो ऐसे हैं, जिनका चयन करने वाली चयन समिति तक में उनके रिश्तेदार शामिल थे। यही नहीं अस्पताल में संविदा पर हुई भर्तियों में भी जमकर भाई भतीजावाद किया गया है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के मोहम्म्द शारिक खान का आरोप है कि पिछली सरकार में लोहिया इंस्टीट्यूट को एक खास राजनीतिक दल के करीबी नेता और अधिकारियों का एंप्लायमेंट हाउस बना दिया गया था।
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