Tuesday, 23 May 2017

योग्यता थी, न आवेदन किया, न इंटरव्यू दिया, फिर भी हो गया चयन


(रणविजय सिंह, 18 अप्रैल 2012, लोहिया इंस्टीट्यूट पार्ट टू)

लोहिया इंस्टीट्यूट में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए जिन 10 डॉक्टरों की नियुक्ति का आदेश डॉ़ दीपक मालवीय के दस्तखत से जारी हुआ, उनमें से आठ डॉक्टर ऐसे हैं जिन्होंने इन पदों के लिए आवेदन तक नहीं किया था। यही नहीं विज्ञापन के मुताबिक इनके पास असिस्टेंट प्रोफेसर के लायक योग्यता थी, ना उन्हें चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग से आवेदन की एनओसी मिली थी और न ही उन्होंने इंटरव्यू ही दिया। इसके बावजूद लोहिया इंस्टीट्यूट ने सात अप्रैल को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के सामने इन डॉक्टरों को असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर उसी दिन पेश कर, उनकी नियुक्ति को मंजूरी के लिए शासन में फाइल भेज दी। वहीं जिन अभ्यर्थियों ने योग्यता पूरी करते हुए आवेदन किया और इंटरव्यू के बाद चयनित हुए, उन्हें एमसीआई का निरीक्षण होने के एक दिन बाद आठ अप्रैल और उसके बाद नियुक्ति पत्र सौंपा गया।
लोहिया इंस्टीट्यूट में एमबीबीएस की 150 सीटों के लिए मान्यता का निरीक्षण एमसीआई की टीम को सात अप्रैल को करना था। इसके लिए खाली पदों पर भर्ती का विज्ञापन पिछले साल आठ सितंबर को हुआ था। विज्ञापन के मुताबिक असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर आवेदन के लिए तीन साल की टीचिंग एक्सपीरिएंस होना अनिवार्य था। सूत्रों के मुताबिक इन पदों पर हुए आवेदन के लिए इंटरव्यू समेत नियुक्ति की कवायद 20 मार्च को पूरी हो गई थी। इसके बावजूद अधिकारी छइ अप्रैल तक इंटरव्यू के रिजल्ट रोके रखे। इस बीच सात अप्र्रैल को एमसीआई का निरीक्षण होना था। ऐसे में आपात स्थिति दिखाते हुए लोहिया इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो़ दीपक मालवीय ने अस्पताल के 10 डॉक्टरों को असिस्टेंट प्रोफेसर बताते हुए पेश कर दिया। एमसीआई को दिए गए कागज में इन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर बताया गया, जबकि शासन को भेजी गई फाइल में अधिकारियों ने अपनी गरदन बचाने के लिए 'शासन की अनुमति मिलने की प्रत्याशा में असिस्टेंट प्रोफेसर' लिख दिया गया।

केवल दो डॉक्टरों ने ली है एनओसी :
लोहिया अस्पताल के जिन 10 डॉक्टरों को असिस्टेंट प्रोफेसर बनाया गया है, उनमें से केवल दो डॉक्टरों डॉ़ देवाशीष और डॉ़ सुरेश अहिरवार ने ही शासन से एनओसी लेकर आवेदन किया है और इंटरव्यू फेस करते हुए सिलेक्ट हुए हैं। इन दोनों डॉक्टरों को शासन की मंजूरी चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के पास मंजूरी के लिए पड़ी हुई है। सूत्रों के मुताबिक बाकी किसी भी डॉक्टर को स्वास्थ्य विभाग ने आवेदन के लिए एनओसी नहीं दी है।

सीनियरिटी का भी ख्याल नहीं रखा :
लोहिया इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो़ दीपक मालवीय का कहना है कि एमसीआई का निरीक्षण अचानक होना था, लिहाजा मान्यता बचाने के लिए विभागों के सबसे सीनियर डॉक्टरों को असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पेश किया गया। एनबीटी ने उनके इस तर्क की पड़ताल की तो पता चला कि उनका दावा पूरी तरह से सही नहीं है। मेडिसिन विभाग में डॉ़ एसी श्रीवास्तव और डॉ़ एससी मौर्या सबसे सीनियर हैं लेकिन उन्हें नहीं सिलेक्ट किया गया। वहीं जनरल सर्जरी में डॉ़ एसी द्विवेदी सबसे सीनियर हैं लेकिन लिस्ट में उनका नाम नहीं है। वहीं आप्थॉल्मोलॉजी में डॉ़ राकेश शर्मा सीनियर हैं लेकिन उनसे जूनियर डॉ़ प्रीति गुप्ता का सिलेक्शन कर लिया गया। वहीं विज्ञापन के मुताबिक पैथोलॉजी विभाग में कोई पद ही नहीं था, बावजूद इसके शासन को भेजी गई सूची में इस विभाग के लिए डॉ़ संजय जायसवाल का नाम जोड़ दिया गया।


यह सही है कि इंटरव्यू 20 अप्रैल को हुए थे लेकिन उसका रिजल्ट चुनाव के चलते जारी नहीं किया गया। सरकार बनने के बाद इसके लिए मुख्य सचिव से मंजूरी ली जानी थी। इसमें थोड़ी देर हुई और सात अप्रैल को अचानक एमसीआई की टीम निरीक्षण के लिए आ गई। ऐसे में हमने इमरजेंसी जैसे हालात में लोहिया अस्पताल से सीनियारिटी के लिहाज से 10 डॉक्टरों को चुना और उन्हें शासन की अनुमति मिलने की आशा में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर दिखा दिया। ऐसा करने के पीछे हमारी कोई गलत मंशा नहीं थी, बल्कि ऐसा नहीं करते तो एमबीबीएस की मान्यता एक साल के लिए पिछड़ जाती।
प्रो़ दीपक मालवीय, निदेशक
लोहिया इंस्टीट्यूट 

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