Sunday, 20 May 2018

जांच के बजाय गवाहों से कह रहे 'कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ'


(रणविजय सिंह, 30 जनवरी)

_ यूपी हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग के नए जांच अधिकारी ने शिकायतकर्ता से तीसरी बार मांगा शपथपत्र
_ शासन के आदेश पर शुरू हुई जांच में चार महीने बाद भी आरोपितों से नहीं हो सकी है पूछताछ
_ प्रॉजेक्ट में फायदा लेने के आरोप में कई ब्यूरोक्रेट, नेता और पूर्व मंत्रियों के फंसने की आशंका

Ranvijay.singh1@timesgroup.com, लखनऊ
5 अक्टूबर 2017 : यूपी हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट (यूपीएचएसएसपी) की नियुक्तियों में धांधली और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे। शासन ने अपर निदेशक (राष्ट्रीय कार्यक्रम) और डीजी को जांच के लिए कहा। शिकायतकर्ता से शपथपत्र मांगा गया।
5 नवंबर 2017 : शासन के आदेश पर मामले की जांच के लिए कमिटी बनी। इस कमिटी ने एक महीने बाद तक आरोपितों से पूछताछ नहीं की। इसके उलट शिकायतकर्ता से 8 सवालों के जवाब, उनके सुबूत और दस्तावेज शपथपत्र के साथ देने को कहा।
23 जनवरी 2018 : मामले की जांच नहीं शुरू हो सकी। पुराने जांच अधिकारी डॉ़ ईयू सिद्दीकी ने जांच से इंकार कर दिया तो महानिदेशक डॉ़ पद्माकर सिंह को जांच दी गई। उन्होंने आरोपितों से पूछताछ करने के बजाय शिकायतकर्ता से शपथपत्र के साथ दस्तावेज मांगा है।

चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ सीएम के 'नो टॉलरेंस नीति' से सहमत नहीं है। शायद यही वजह है कि पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुई उप्र हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट (यूपीएचएसएसपी) घोटाले की जांच चार महीने बाद भी गवाहों से शपथ पत्र मांगने से आगे नहीं बढ़ सकी है। गवाह और शिकायकर्ता तीन बार शपथपत्र के साथ सुबूत और दस्तावेज जांच अधिकारियों को सौंप चुका है। इसके बावजूद 23 जनवरी को उसे नए सिरे से शपथपत्र पर वही सारे दस्तावेज फिर देने को कहा गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस दरम्यान नियुक्ति में धांधली और वित्तीय अनियमितता के किसी भी आरोपित से पूछताछ तक नहीं की जा सकी है।
यूपीएचएसएसपी में चार महीने बाद भी जांच शुरू करने के बजाय तीसरी बार शपथपत्र मांगे जाने पर मामले का खुलासा करने वाले एडवोकेट रोहित जायसवाल निराशा जता रहे हैं। उनके मुताबिक मामले में शामिल ब्यूरोक्रेट, नेता और पूर्व मंत्रियों की भूमिका संदिग्ध है। ऐसे में चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर उनकी जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। यही वजह है कि उनसे पूछताछ से बचने के बहाने तलाशे जा रहे हैं। रोहित जायसवाल के मुताबिक नए जांच अधिकारी बने महानिदेशक डॉ़ पद्माकर सिंह को ईमेल के जरिए भी दस्तावेज भेजे जा चुके हैं। साथ ही नए सिरे से हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी के सुबूत भी दिए गए हैं लेकिन एक भी मामले में उन्होंने जांच शुरू नहीं की है।

यह है मामला :
ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत करने के लिए उप्र हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट (UPHSSP) को वर्ल्ड बैंक और केंद्र सरकार ने करीब 700 करोड़ रुपये दिए थे। लेकिन इस रकम से यूपी में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अपनी बेटी-पत्नियों को मानकों के उलट लाखों रुपये के वेतन वाले पदों पर नियुक्त करवाते रहे। इस खेल में कई ब्यूरोक्रेट, नेता और पूर्व मंत्रियों के रिश्तेदारों को भी फायदा पहुंचाने के आरोप लगे। स्वास्थ्य विभाग में तैनात एक विशेष सचिव ने अपनी बेटी को योग्यता ना होने के बावजूद पर्यावरण प्रबंधन विशेषज्ञ के पद पर नियुक्ति दी गई। यही नहीं उसी पद पर बाद में एक अन्य आईएएस अधिकारी की पत्नी का चयन कर लिया गया।

मुझे पुराने जांच अधिकारी की तरफ से मिले दस्तावेजों में शिकायतकर्ता का शपथपत्र नहीं मिला है। ऐसे में शपथपत्र मांगा गया है। शासनादेश के मुताबिक जांच से पहले शपथपत्र लिया जाना जरूरी है। आरोपितों को बचाए जाने के आरोप पूरह से बेबुनियाद हैं।
डॉ़ पद्माकर सिंह, महानिदेशक
चिकित्सा स्वास्थ्य

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