Sunday, 20 May 2018

बेटी ने किया था आवेदन और पिता स्क्रीनिंग कमिटी में थे

(रणविजय सिंह, 16 मई)

लोहिया इंस्टीट्यूट भर्ती घोटाला :

- लोहिया इंस्टीट्यूट के नेत्र रोग विभाग में हुए आवेदन और इंटरव्यू की जांच रिपोर्ट शासन को भेजी गई
- नेत्र रोग समेत कई विभागों में असिस्टेंट और असोसिएट प्रोफेसरों के चयन में धांधली की हुई है शिकायत

Ranvijay.singh1@timesgroup.com, लखनऊ
लोहिया इंस्टीट्यूट में विधानसभा चुनावों के बीच हुई असिस्टेंट और असोसिएट प्रोफेसरों की भर्ती में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों के आरोप सही साबित होने लगे हैं। नेत्र रोग विभाग में हुए आवेदन और उसमें चहेतों को लाभ देने की शिकायत के बाद शासन को भेजी गई जांच रिपोर्ट में मिलीभगत और धांधली की पुष्टि हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक विभाग में आवेदन करने वाली एक अभ्यर्थी के पिता ही स्क्रीनिंग कमिटी में शामिल थे। यह जानकारी दोनों ने ही छिपाए रखी। संस्थान के निदेशक, चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव, कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से हुई शिकायत के बाद मामले की जांच करायी गई। चिकित्सा शिक्षा विभाग के महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता ने अपनी जांच रिपोर्ट पिछले सप्ताह ही प्रमुख सचिव रजनीश दुबे को सौंप दी।
नेत्र विभाग के अलावा लोहिया इंस्टीट्यूट के कई अन्य विभागों में भी असिस्टेंट और असोसिएट प्रोफेसरों की भर्ती में भाई भतीजावाद की जांच चल रही है। ऐसे सभी मामलों में पीड़ितों ने गड़बड़ी के दस्तावेज और सुबूत महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता को सौंप दिए हैं। ऐसे में नेत्र विभाग की जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी के खुलासे ने लोहिया इंस्टीट्यूट प्रशासन की भूमिका, मंशा और कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। लोहिया इंस्टीट्यूट के नेत्र विभाग समेत करीब एक दर्जन विभागों में वर्ष 2016 में आवेदन लिए गए थे। ज्यादातर विभागों के लिए मार्च 2017 में इंटरव्यू कर चयन सूची जारी कर दी गई लेकिन नेत्र रोग विभाग समेत कुछ के इंटरव्यू रोक दिए गए। आरोप है कि नेत्र रोग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए डॉ़ प्रमिला ठक्कर ने भी आवेदन किया था। उनके पिता प्रो़ एके ठक्कर न्यूरोलॉजी विभाग के एचओडी थे और उन्हें स्क्रीनिंग कमिटी का सदस्य भी बनाया गया था। प्रमुख सचिव से हुई शिकायत के मुताबिक आवेदन की तारीख तक डॉ़ प्रमिला ठक्कर के पास तीन साल का अनुभव नहीं था। लिहाजा इस विभाग का इंटरव्यू जनवरी 2018 तक टाला जाता रहा, ताकि उनका तीन साल का अनुभव पूरा हो सके। जांच अधिकारी डॉ़ केके गुप्ता की तरफ से प्रमुख सचिव कार्यालय को भेजी गई रिपोर्ट में यह आरोप सही पाए गए हैं। माना जा रहा है कि जल्द ही इस विभाग के लिए हुए इंटरव्यू पर कोई फैसला आ सकता है।

कदम दर कदम गड़बड़ी, विवाद और शिकायत :
_ लोहिया संस्थान में असिस्टेंट और असोसिएट प्रोफेसरों की भर्ती को लेकर इस साल मार्च में बड़ा खुलासा हुआ। आला अधिकारियों ने मानकों के विपरीत लोहिया अस्पातल के 10 डॉक्टरों को सीधे लोहिया इंस्टीट्यूट में नियुक्त कर लिया। एनबीटी के खुलासे के बाद आदेश वापस लिया गया।
_ करीब छह महीने बाद नए सिरे से विज्ञापन किया गया लेकिन बड़ी चालाकी से उसमें एक ही पद के लिए दो मानक रख दिए गए। एक बार फिर विवाद होने पर आदेश वापस लिया गया और नए सिरे से  विज्ञापन कर आवेदन लिए गए।
_ करीब एक साल बाद कई विभागों के लिए इंटरव्यू कराए गए लेकिन इसमें शामिल कई अधिकारियों के रिश्तेदार भी इंटरव्यू देने आए। मानकों के मुताबिक चयन प्रक्रिया की पूरी कवायद में ऐसे किसी भी अधिकारी को शामिल नहीं किया जाना चाहिए, जिसके रिश्तेदार भी उसमें आवेदक हों।

एसआर किया आंकोलॉजी में, नियुक्ति दी गाईनी में :
राम मनोहर लोहिया चिकित्सा संस्थान में डॉक्टरों की भर्तियों में गजब की बंदरबांट हुई। जिस अभ्यर्थी के पास सर्जिकल आंकोलॉजी (कैंसर) विभाग से तीन साल की सीनियर रेजीडेंटशिप का अनुभव था, उसने लोहिया इंस्टीट्यूट के महिला एवं प्रसूति विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए ना सिर्फ आवेदन किया बल्कि उसका चयन भी हो गया। इंस्टीट्यूट में पिछली सरकार के दौरान ऐन विधानसभा चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर हुए असिस्टेंट, असोसिएट और प्रोफेसर पदों के लिए हुईं कई भर्तियों में ऐसी ही अनियमितताओं की शिकायत हुई है।

अभी हमें आदेश की कॉपी नहीं मिली है। आदेश पढ़ने के बाद ही तय होगा कि इंटरव्यू पर क्या फैसला किया जाए?
प्रो़ दीपक मालवीय, निदेशक
लोहिया इंस्टीट्यूट

पिता, बेटी, दामाद हो तो अप्वाइंटमेट लेटर, बाकी सभी बाहर


(रणविजय सिंह, 9 फरवरी)

_ चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव रजनीश दूबे और चिकित्सा शिक्षा के महानिदेशक केके गुप्ता से हुई शिकायत
_ नेत्र विभाग में हुए इंटरव्यू के लिए न्यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ़ एके ठक्कर की बेटी को शामिल किए जाने को लेकर विवाद
_ संस्थान के करीब 10 विभागों की सूची भी जारी हुई, जिसमें अधिकारियों की पत्नी, बेटी या दामाद का ही किया गया सिलेक्शन

रणविजय सिंह/प्रांजल दीक्षित, लखनऊ
लोहिया इंस्टीट्यूट के करीब 10 विभागों में असोसिएट और असिस्टेंट प्रफेसर के पदों पर जितनी भी भर्तियां हुई हैं, उनमें से बड़ी संख्या यहां के अधिकारियों की पत्नी, बेटी या दामादों की है। नेत्र विभाग में एक साल पहले हुए आवेदन के लिए पिछले हफ्ते कराए गए इंटरव्यू के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया। एक तरफ पीड़ितों ने चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव रजनीश दुबे और महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता को इस संबंध में लिखित शिकायत सौंप दी। वहीं दूसरी तरफ आरटीआई एक्टिविस्ट चंदन वाजपेयी ने लोहिया संस्थान में नियुक्तियों की जांच कराए जाने की मांग करते हुए शासन को उन सभी असोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसरों की सूची भेज दी है, जो संस्थान के ही आला अधिकारियों के रिश्तेदार हैं।
लोहिया संस्थान में असोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों ने चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव रजनीश दुबे से मुलाकात की। अभ्यर्थियों का आरोप है कि नेत्र विभाग के लिए डॉ़ प्रॉलिमा ठक्कर का आवेदन कम अनुभव होने के बावजूद स्वीकार कर लिया। यही नहीं इंटरव्यू भी करा लिया गया। प्रमुख सचिव से हुई शिकायत के मुताबिक डॉ़ प्रॉलिमा ठक्कर लोहिया संस्थान में न्यूरोलॉजी के एचओडी प्रो़ एके ठक्कर की बेटी हैं। यही नहीं प्रो़ एके ठक्कर के दामाद डॉ़ पंकज अग्रवाल को भी हड्डी विभाग में नियुक्ति मिल चुकी है। यह इकलौता मामला नहीं है, जब आला अधिकारियों के रिश्तेदारों की नियुक्ति होने या कराए जाने के आरोप लग रहे हों। आरटीआई एक्टिविस्ट चंदन वाजपेयी के संस्थान के आधा दर्जन से ज्यादा विभागों में आला अधिकारियों ने अपने रिश्तेदारों का चयन किया या करवा दिया। चंदन के मुताबिक बायोकेमिस्ट्री विभाग में चयनित डॉ़ ज्योति जॉन संस्थान में ही फिजीयोलॉजी विभाग के एचओडी प्रो़ एनए जॉन की पत्नी हैं। कम्युनिकेटिव मेडिसिन विभाग में चयनित डॉ़ मनीष कुमार वर्मा किंग जॉर्ज मेडिकल युनिवर्सिटी में फिजीयोलॉजी विभाग के एचओडी प्रो़ नरसिंह वर्मा के बेटे हैं। संस्थान के महिला प्रसूति विभाग में चयनित पूजा गुप्ता संस्थान के सुब्रत चंद्रा की पत्नी हैं। यही नहीं डॉ़ देव्यानी मिश्रा तो कार्डिएक के एचओडी और कई सिलेक्शन कमिटियों में शामिल रहने वाले प्रो़ मुकुल मिश्रा की बेटी हैं। यही नहीं डॉ़ चारू महाजन भी संस्थान के डॉ़ आशीष सिंह की पत्नी हैं। रेडियोलॉजी विभाग में सिलेक्ट डॉ़ नेहा संस्थान के ही डॉ़ दीपक कुमार सिंह की पत्नी हैं। इसके अलावा जनरल मेडिसिन में सिलेक्ट हुए डॉ़ विक्रम सिंह और डॉ़ मृदु सिंह पति पत्नी हैं। बाल रोग विभाग में डॉ़ दीप्ति अग्रवाल और डॉ़ स्वरेंद्र भी पति पत्नी ही हैं। एनेस्थीसिया और न्यूरोलॉजी में भी हुई नियुक्तियों में अधिकारियों पर अपने चहेते छात्रों के चयन के लिए पक्षपात करने के आरोप लगे हैं।

हमारे पास शिकायत आयी है। हमें यह जानकारी नहीं थी। कुछ पीड़ितों ने मुलाकात कर इस संबंध में दस्तावेज भी सौंपे हैं। मामले की जांच करायी जा रही है। इसके साथ ही अब जितनी भी नियुक्तियों से जुड़े दस्तावेज आएंगे, उनकी गहन समीक्षा और पड़ताल भी करायी जाएगी।
डॉ़ केके गुप्ता, महानिदेशक
चिकित्सा शिक्षा

रिश्तेदारों को फायदा देने के लिए एक साल तक टालते रहे इंटरव्यू


(रणविजय सिंह, 8 फरवरी)

_ लोहिया इंस्टीट्यूट में पिछले सप्ताह हुए इंटरव्यू के बाद प्रमुख सचिव और सीएम से हुई शिकायत
_ एक विभागाध्यक्ष की बेटी को लाभ देने के लिए एक साल तक इंटरव्यू टाले जाने का लगा आरोप

Ranvijay.singh1@timesgroup.com, लखनऊ
लोहिया इंस्टीट्यूट में असिस्टेंट और असोसिएट प्र्रोफेसरों की नियुक्ति को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। ताजा मामला पिछले दिनों हुए इंटरव्यू के बाद सामने आया। कुछ अभ्यर्थियों की तरफ से संस्थान के निदेशक, चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र भेजकर इंटरव्यू में भाई भतीजावाद किए जाने का आरोप लगाया गया है। शिकायत करने वालों के मुताबिक कुछ विभागों में हुए इंटरव्यू में संस्थान के विभागाध्यक्ष और अधिकारियों के रिश्तेदारों को भी शामिल किया गया। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनके पास तीन साल के बजाय केवल दो साल का अनुभव था लेकिन उन्हें लाभ देने के लिए इंटरव्यू करीब एक साल बाद करवाया गया। यही नहीं नियुक्ति की कवायद में इन आवेदकों के रिश्तेदारों की अहम भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
लोहिया इंस्टीट्यूट के नेत्र विभाग समेत करीब एक दर्जन विभागों में वर्ष 2016 में आवेदन लिए गए थे। ज्यादातर विभागों के लिए मार्च 2017 में इंटरव्यू कर चयन सूची जारी कर दी गई लेकिन नेत्र रोग विभाग समेत कुछ के इंटरव्यू रोक दिए गए। आरोप है कि मार्च 2017 तक इन विभागों में आवेदन करने वाले कुछ आवेदकों के पास तीन साल तक एसआर का अनुभव नहीं था। ऐसे कुछ आवेदक लोहिया संस्थान के आला अधिकारियों के रिश्तेदार भी थे। लिहाजा इंटरव्यू जनवरी 2018 तक टाल दिया गया। अब इंटरव्यू होने के बाद इस देरी को लेकर आवेदकों की तरफ से सीएम तक से गुहार लगायी गई है। शिकायती पत्र में विभागाध्यक्षों के उन रिश्तेदारों का नाम और उनकी योग्यता पर सवाल उठाने वाले दस्तावेज भी भेजे गए हैं। शासन को भेजी गई शिकायत में उन विभागों का ब्योरा भी भेजा गया है, जहां चयनित अभ्यर्थी लोहिया संस्थान के आला अधिकारियों के ही रिश्तेदार थे।

कदम दर कदम गड़बड़ी, विवाद और शिकायत :
_ लोहिया संस्थान में असिस्टेंट और असोसिएट प्रोफेसरों की भर्ती को लेकर इस साल मार्च में बड़ा खुलासा हुआ। आला अधिकारियों ने मानकों के विपरीत लोहिया अस्पातल के 10 डॉक्टरों को सीधे लोहिया इंस्टीट्यूट में नियुक्त कर लिया। एनबीटी के खुलासे के बाद आदेश वापस लिया गया।
_ करीब छह महीने बाद नए सिरे से विज्ञापन किया गया लेकिन बड़ी चालाकी से उसमें एक ही पद के लिए दो मानक रख दिए गए। एक बार फिर विवाद होने पर आदेश वापस लिया गया और नए सिरे से  विज्ञापन कर आवेदन लिए गए।
_ करीब एक साल बाद कई विभागों के लिए इंटरव्यू कराए गए लेकिन इसमें शामिल कई अधिकारियों के रिश्तेदार भी इंटरव्यू देने आए। मानकों के मुताबिक चयन प्रक्रिया की पूरी कवायद में ऐसे किसी भी अधिकारी को शामिल नहीं किया जाना चाहिए, जिसके रिश्तेदार भी उसमें आवेदक हों।
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दो विभागों के लिए इंटरव्यू हुआ था। नेत्र विभाग का रिजल्ट अभी आना बाकी है। इस विभाग की एक आवेदक के रिश्तेदार लोहिया इंस्टीट्यूट में हैं लेकिन उसे फायदा देने के लिए इंटरव्यू में देरी के आरोप बेबुनियाद हैं। उसके पिता दूसरे विभाग के अध्यक्ष हैं, लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आवेदन के वक्त तीन साल का अनुभव था या नहीं? इसकी जानकारी नहीं है। शिकायत करने वाले पक्षपात्र के सुबूत दें तो जांच भी करा ली जाएगी।
डॉ़ दीपक मालवीय, निदेशक
लोहिया इंस्टीट्यूट

शहर के 34 नलकूप बंद, 600 फुट नीचे भी नहीं मिल रहा पानी


(रणविजय सिंह, 16 मार्च)

_ हजरतगंज से लेकर खदरा, आलमबाग, कानपुर रोड, आशियाना, महानगर, अलीगंज, विराम खंड और विकास नगर तक सप्लाई प्रभावित
_ जल संस्थान ने वैकल्पिक व्यवस्था के तहत शुरू की सप्लाई, अगले महीने तक रीबोरिंग न होने पर बड़े संकट की आशंका
_ 20 मीटर ज्यादा गहराई तक करानी पड़ेगी नई बोरिंग, पुरानी जगह से करीब 700 मीटर दूर तक जमीन के नीचे नहीं मिल रहा पानी

Ranvijay.Singh1@timesgroup.com, लखनऊ
रहीमनगर डुडौली निवासी सुनील वाजपेयी, रानी शर्मा, मंजू निषाद और रामरती यादव समेत दर्जनों लोग 500 रुपये महीना देकर निजी सबमर्सिबल से पानी खरीदने को मजबूर हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि अलीगंज समेत इस इलाके की तरफ जलापूर्ति के लिए बने नलकूप से पानी आना बंद हो गया है। यहां बनी पानी की टंकी में पानी ना भरने के कारण घरों तक सप्लाई नहीं हो पा रही है। शहर में तेजी से गिर रहे जल स्तर के चलते जल संकट की यही तस्वीर लखनऊ के 50 से ज्यादा मुहल्ले और कॉलोनियों में बड़े जल संकट की आशंका पैदा हो रही है। नलकूपों के लिए जगह ढूंढी जा रही है लेकिन जमीन में पानी ही नहीं मिल रहा है। अंधाधुंध दोहन की वजह से राजधानी के अलग अलग 34 इलाकों के नलकूप या तो पूरी तरह से बंद हो गए हैं या फिर इतना कम पानी दे रहे हैं कि उनका कोई इस्तेमाल ही नहीं हो पा रहा। लखनऊ के आठ जोन में करीब 70 से 100 हैंडपंपों को जमीन के नीचे करीब 210 मीटर गहरायी पर भी पानी नहीं मिल पा रहा है।
जल निगम और जल संस्थान के अधिकारियों ने बताया कि इन इलाकों में 120 से 170 मीटर गहराई तक बोरिंग हुई थी, जिसे अब अलग-अलग इलाकों में 140 से 200 मीटर तक रीबोर करना पड़ेगा। इसके अलावा पुरानी जगह से करीब 700 मीटर दूर तक कहीं जमीन नहीं मिल रही तो कहीं जमीन के नीचे पानी नहीं मिल रहा है। इन चुनौतियों के बीच अगले महीने के अंत तक इन नलकूपों को रीबोर नहीं किया जा सका तो करीब 50 से ज्यादा नई पुरानी कॉलोनियों की पांच लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित हो सकती है। इसमें हजरतगंज से लेकर खदरा, आलमबाग, कानपुर रोड, आशियाना, महानगर, अलीगंज, विराम खंड और विकास नगर जैसे इलाकों पर सबसे ज्यादा संकट आ सकता है। वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर कहीं गोमती नदी तो कहीं कठौता से वैकल्पिक तौर पर सप्लाई दी जा रही है। उस पर भी कई नलकूपों के 50 से 100 मीटर के दायरे में जमीन के नीचे पानी नहीं मिल रहा है। जोन पांच के आजादनगर में करीब 700 मीटर दूर जमीन मिली है, यहां 180 मीटर नीचे से पानी मिलने की उम्मीद है। वहीं कृष्णानगर, आशियाना और रुचिखंड में जमीन के नीचे पानी न मिलने के कारण सबसे ज्यादा नलकूप सूख गए हैं। अब यहां नए लगाए जा रहे नलकूपों की गहराई 180 फुट के बजाय 200 मीटर तक की जाएगी।

केपटाउन जैसे हालातों से सीखने की जरूरत
हमें दक्षिण अफ्रीका के शहर केपटाउन से सीखने की जरूरत है। केपटाउन में पानी की ऐसी किल्लत है कि लोगों को हफ्ते में सिर्फ दो दिन नहाने की परमिशन है। 'डे जीरो' व्यवस्था के तहत शहर के 75 फीसदी घरों में पानी की सप्लाई बंद कर दी गई है। शहर में 200 वॉटर पॉइंट्स बनाए गए हैं जहां लोगों को एक दिन के लिए सिर्फ 25 लीटर पानी दिया जाएगा। लम्बी कतारों में लगकर लोग पानी जमा कर रहे हैं। इन पॉइंट्स पर पुलिस और सेना तैनात कर दी गई है। यहां तक की शहर की नालियों का पानी भी रिसाइकल करने की तैयारी हो रही है। अपने शहर में ऐसे हालात न हो, इसके लिए अभी से आंखें खोल लेनी चाहिए। 


जोन 1 :
नलकूप : प्राग नारायण रोड नलकूप नंबर 1, नरही नलकूप नंबर 1
प्रभावित इलाके : प्राग नारायण रोड के आसपास की कॉलोनी, बालू अड्डा, राजा राम मोहनराय वॉर्ड की कॉलोनियां, नरही, तिकोना पार्क के आसपास के मकान
आबादी : करीब 5000

जोन 2 :
नलकूप : शिव मंदिर पार्क करेहटा, सेंट एंजीनियस स्कूल के पास, आर्यनगर नलकूप नंबर 1
प्रभावित इलाके : करेहटा, शिवमंदिर पार्क के आसपास के मकान, जोनल कार्यालय से सटी हुई कॉलोनी, एफ ब्लॉक, ई ब्लॉक, सब्जी मंडी, आर्य नगर, मोती नगर
आबादी : 35000

जोन 3 :
नलकूप : महानगर जे पार्क, अलीगंज भुइयनदेवी पार्क के सामने, चौधरी टोला अलीगंज, दया निधान नगर खदरा, कौआ बाग
प्रभावित इलाके : अलीगंज का बड़ा हिस्सा, फैजुल्लागंज सेक्टर ए, सेक्टर बी, सेक्टर सी, सेक्टर एच, सेक्टर जे, चंद्रलोक, भुइयनदेवी पार्क के आसपास के मकान
आबादी : डेढ़ लाख

जोन 4 :
नलकूप : पेपर मिल कॉलोनी, विराम खंड दो, एल्डिको ग्रीन
प्रभावित इलाके : विराम खंड और इसके आसपास के मोहल्ले, एल्डिको और पेपर मिल कॉलोनी। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत विराम खंड में कठौता से पानी भेजा जा रहा है।
आबादी : 50 हजार

जोन 5 :
नलकूप : पूरननगर, चंदर नगर, स्नेह नगर, आजाद नगर, विजय नगर
प्रभावित इलाके : पूरन नगर, मुर्दईया, स्नेह नगर, पूरन नगर, पटेल नगर, अर्जुननगर, गीतापल्ली, सरदारी खेड़ा, स्नेह नगर, दामोदर नगर, आजाद नगर, कृष्णा नगर, रामगढ़, टीपी नगर
आबादी : डेढ़ लाख

जोन 7 :
नलकूप : विकास नगर सेक्टर पांच, विकास नगर सेक्टर 1, कुर्मांचल नगर, इंदिरानगर सेक्टर 18, इंदिरानगर सेक्टर सी।
प्रभावित इलाके : सेक्टर एक, सेक्टर दो, सेक्टर तीन, सेक्टर पांच, सेक्टर छह, शिव विहार, कुर्मांचल नगर, सेक्टर 18 का सी ब्लॉक।
आबादी : करीब 50 हजार

जोन 8 :
नलकूप : हिन्द नगर, आशियाना सेक्टर के, सेक्टर एन, सेक्टर एच, सेक्टर एम1, रुचि खंड द्वितीय, सेक्टर डी1, उद्यान प्रथम, रुचि खंड 1, सेक्टर एफ और सेक्टर आई
प्रभावित इलाके : आशियाना के पांच सेक्टर, पूरा रुचि खंड और एलडीए की कॉलोनियां
आबादी : करीब 50 हजार

हमारी पूरी कोशिश है कि अगले महीने तक इन सभी नलकूपों को रीबोर कर दिया जाए। हालांकि इन नलकूपों की पुरानी जगह पर पानी मिलना अब मुश्किल है। पुरानी जगह से औसतन 100 मीटर दूर तक जमीन के नीचे पानी तलाशा जा रहा। जहां पानी मिलेगा, वहां बोरिंग कर नलकूप लगाया जाएगा। नई जगह भी पहले से औसतन 20 फुट गहराई तक बोरिंग करनी पड़ेगी। वहां से पाइप के जरिए पुरानी लाइनों को जोड़ा जाएगा।
संजीव कुमार गौतम, एक्सईएन
जल निगम

लखनऊ में 34 नलकूप या तो बंद हो चुके हैं या फिर उनसे बहुत कम पानी आ रहा है। ऐसे में इन्हें रीबोर किया जाना जरूरी है। सूची जल निगम को भेज दी गई है। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत गोमती और कठौता से जलापूर्ति बहाल की जा रही है। अगले महीने के अंत तक सभी नलकूप नई जगह लगा दिए जाएंगे।
एसके वर्मा, जीएम
जल संस्थान
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शहरी क्षेत्र में तेजी से हो रही गिरावट :
लखनऊ के अलावा गाजियाबाद, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, इलाहाबाद, वाराणसी और आगरा समेत अधिकांश जिलों के शहरी इलाकों में तेजी से जल स्तर नीचे जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल इन जिलों के शहरी इलाकों में भूजल स्तर 45 से 91 सेंटीमीटर नीचे गिर रहा है।

बारिश की स्थिति
69.56 लाख हेमी बारिश का जल मिट्टी में सोख लेती है।
41.20 लाख हेमी बारिश का पानी वाष्प बन जाता है।
36.37 लाख हेमी बारिश का पानी भूगर्भ जल स्रोतों में मिल जाता है।
88.27 लाख हेमी बारिश का पानी हर साल व्यर्थ हो जाता है

लखनऊ में जलस्तर की गिरवट :
एचएएल- 0.95 मी.
जानकीपुरम- 1.30 मी.
आलमबाग-1.55 मी.
लालबाग-1.95 मी.
इंदिरा नगर 3.05 मी.
त्रिवेणी नगर 2.20 मी.

लखनऊ मंडल में भूगर्भ जल की उपलब्धता :
जिला कुल भूगर्भ जल (हेमी) वार्षिक दोहन (हेमी) भविष्य की उपलब्धता (हेमी) भूगर्भ जल विकास दर
लखनऊ 68532.78 55658.53 10635.96 81.21
हरदोई 157525.5 113239.2 40396.75 71.89
सीतापुर 211774.3 132207.9 74669.89 62.43
लखीमपुर खीरी 272856.4 165032.3 101711.8 60.48
रायबरेली 117572.7 90358.03 23004.61 76.85
उन्नाव 149665.3 102612 45288.77 68.56
(मंडल के आंकड़े 2005 के हैं)

नीरव मोदी ने गिरायी पीएनबी की साख, दूसरे बैंकों ने लौटाए पीएनबी के चेक

(रणविजय सिंह, 23 फरवरी)

_ नगर निगम ने पीएनबी के खाते से दर्जनों ठेकेदारों को किए थे भुगतान, दूसरे बैंकों ने बिना कारण बताए लौटाए चेक
_ नीरव मोदी प्रकरण के बाद पीएनबी से भुगतान फंसने की आशंका में मुख्यालय और बैंक के बीच भटकते रहे ठेकेदार

Ranvijay.Singh1@timesgroup.com, लखनऊ
ठेकेदारों और दूसरी एजेंसियों को नगर निगम की तरफ से दिए गए पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के दर्जनों चेक दूसरे बैंकों ने बिना भुगतान किए लौटा दिए। पूछने पर दूसरे बैंकों ने साफ साफ इसकी वजह भी नहीं बतायी। वहीं नगर आयुक्त से लेकर वित्त नियंत्रक तक इंवेस्टर्स समिट में व्यस्त होने के चलते नहीं मिल सके। नीरव मोदी प्रकरण के चलते भुगतान फंसने की आशंका से घबराए चेकधारक और ठेकेदार दिनभर नगर निगम मुख्यालय से बैंक के बीच भटकते रहे। हंगामे की आशंका के बाद बैंक प्रतिनिधियों ने शुक्रवार को नगर आयुक्त और वित्त नियंत्रक के साथ बैठक का हवाला दिया। बैंक प्रतिनिधियों के मुताबिक 26 जनवरी के बाद नए सॉफ्टवेयर पर काम हो रहा है, जिसके चलते कुछ दिक्कत हो रही है।
नगर निगम को 14वें वित्त से स्वच्छता से जुड़े हुए कामों के लिए केंद्र सरकार से बजट मिलता है। इस बजट से होने वाले कामों का भुगतान करने के लिए नगर निगम ने विपुल खंड स्थित पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में अकाउंट खुलवाया था। इस अकाउंट में पर्याप्त बजट होने के बावजूद ठेकेदारों को जारी चेक, दूसरे बैंकों ने बिना भुगतान किए लौटा दी। गुरुवार को जितने ठेकेदारों ने जितने भी बैंकों में पीएनबी के चेक लगाए थे, वह सभी वापस आने के बाद हड़कंप मच गया। एक के बाद एक ठेकेदारों का नगर निगम में जमावड़ा लगने लगा। दर्जनों ठेकेदार दोपहर करीब 3:30 बजे नगर आयुक्त के कार्यालय पहुंचे लेकिन वह नहीं मिले। इसके बाद ठेकेदार और चेकधारक पीएनबी की शाखा में पहुंचे। वहां बैंक प्रतिनिधियों के साथ कुछ देर तक बातचीत हुई और उसके बाद हंगामा होने लगा। मामले को संभालने के लिए बैंक अधिकारी भुगतान ना फंसने का आश्वासन देते हुए परेशान चेकधारकों को लेकर बैंक से बाहर आए। उनके आश्वासन पर चेकधारक शुक्रवार को नगर आयुक्त के साथ होने वाली बैठक तक इंतजार करने की चेतावनी देते हुए वापस लौटे।

26 जनवरी के बाद से बदली व्यवस्था :
पंजाब नेशनल बैंक के एजीएम सुनील मकुजा ने बताया कि 26 जनवरी के बाद बैंक ने अपनी पूरी व्यवस्था बदल दी है। अब कोई भी चेक बिना दिल्ली शाखा का एप्रूवल लिए पास नहीं हो रहा है। ऐसे में दस्तखत के सैंपल वहां भेजे जा रहे हैं। यही नहीं नगर निगम के आयुक्त और वित्त नियंत्रक के दस्तखत एक साथ नहीं है। इसके चलते भी दिक्कत आ रही है। अब शुक्रवार को इन तकनीकी खामियों में सुधार के लिए नगर आयुक्त के साथ बैठक है। जल्द ही यह दिक्कत दूर हो जाएगी।

नीरव मोदी प्रकरण के बाद बदली व्यवस्था :
पीएनबी अधिकारियों के मुताबिक 26 जनवरी से चेक अप्रूवल की व्यवस्था बदली गई है। ऐसे में ठेकेदार और नगर निगम के चेकधारक इस पूरे घटनाक्रम को नीरव मोदी प्रकरण से जोड़कर देखने लगा है। हालांकि ठेकेदार असोसिएशन का दावा है कि इस बीच बैंक से कई चेक भुगतान होने का दावा करते हुए पिछले दो से तीन दिनों के भीतर ही यह दिक्कत शुरू होने की बात कही है। नगर निगम ठेकेदार असोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश लोधी ने ऐन होली से पहले भुगतान को लेकर पैदा हुए इस वित्तीय संकट को जल्द से जल्द दूर करने की माग की है। उन्होंने कहा कि शुक्रवार को बैंक प्रतिनिधियों और नगर आयुक्त की बैठक के बाद कोई हल नहीं निकला तो आंदोलन ही एकमात्र रास्ता बचेगा।

14वें वित्त के बजट से होने वाले काम :
पेयजल सुविधा, स्वच्छता, सेप्टिक प्रबंधन, ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन, सीवेज, बाढ़ के पानी की निकासी, सामुदायिक संपत्तियों के रखरखाव, सड़कों का रखरखाव, फुटपाथ, स्ट्रीट लाइट, कब्रिस्तान, शमशान भूमि व अन्य मूलभूत सुविधाओं से जुड़े काम।
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बजट की कोई कमी नहीं है। कहीं किसी का भुगतान नहीं फंसेगा। बैंक प्रतिनिधियों से बात की जाएगी। जिन्हें चेक दिया गया है, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। इंवेस्टर्स समिट होने के चलते आज बात नहीं हो सकी, कल तक स्थिति सामान्य हो जाएगी।
उदयराज सिंह, नगर आयुक्त
नगर निगम

दो रुपये में अस्पताली कचरा उठाने वाली एजेंसी को 22 रुपये की दर से दिया काम

(रणविजय सिंह, 12 फरवरी)

_ जिस कंपनी से नगर निगम ने दो रुपये में किया टेंडर, उसी कंपनी को यूपीएचएसएसपी ने कई गुना पर दिया काम
_ सिंगल बिड पर दिए गए काम को लेकर उठे गंभीर सवाल, नगर निगम और यूपीएचएसएसपी आए आमने सामने

Ranvijay.singh1@timesgroup.com, लखनऊ
राजधानी में जो अस्पताली कचरा नगर निगम दो रुपये से भी कम कीमत पर उठवा रहा है, उसी काम के लिए उप्र हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट (यूपीएचएसएसपी) ने 22 रुपये का टेंडर किया है। चौंकाने वाली बात यह है कि यूपीएचएसएसपी ने जिस कंपनी को काम दिया है, उसी कंपनी से नगर निगम भी काम करवा रहा है। ऐसे में अहम सवाल यह है कि जब वही कंपनी नगर निगम के लिए बायोमेडिकल वेस्ट महज दो रुपये से भी कम में उठाने को तैयार है तो यूपीएचएसएसपी ने नई दरों से टेंडर क्यों किया? पिछले हफ्ते सामने आए इस मामले के बाद यूपीएचएसएसपी और नगर निगम के अधिकारी अपनी गरदन बचाने के लिए एक दूसरे के टेंडर को ही अवैध ठहराने लगे हैं?
पिछले हफ्ते यूपीएचएस ने बायोमेडिकल वेस्ट अस्पतालों से इकट्ठा करने, उसे ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाने और निस्तारण के लिए टेंडर किया। दस्तावेजों के मतुाबिक नगर निगम यह काम हर बेड के हिसाब से दो रुपये में करा रहा था लेकिन यूपीएचएसएसपी ने इसके लिए तीन गुना ज्यादा कीमत देने को मंजूरी दे दी। यही नहीं कुछ नई सेवाएं जोड़ते हुए प्रति बेड 16 रुपये अतिरिक्त भुगतान की शर्त भी जोड़ दी। ऐसे में जो काम नगर निगम महज दो रुपये से भी कम में करा रहा था, उसके लिए करीब 11 गुना ज्यादा पर टेंडर किया गया। नियमों के मुताबिक कम से कम तीन कंपनियां टेंडर में शामिल होनी चाहिए लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने टेंडर में शामिल हुई इकलौती कंपनी को बिना किसी कंपटीशन के काम दे दिया गया। इसकी शिकायत यूपीएचएसएसपी के निदेशक से भी की गई लेकिन तब तक टेंडर एग्रीमेंट किया जा चुका था। अब एक ही काम के लिए राजधानी में दो विभागों के अलग अलग दर से हुए टेंडर को लेकर विवाद शुरू हो गया है। नगर निगम की तरफ से यूपीएचएसएसपी के टेंडर को गलत बताया जा रहा और यूपीएचएसएसपी के अधिकारी नगर निगम के टेंडर को अवैध बता रहा।

किसका टेंडर सही, किसका गलत :
यूपीएचएसएसपी की तरफ से कराए गए टेंडर के बाद तकनीकी पेंच फंस गया है। शहर में बायोमेडिकल वेस्ट के लिए नगर निगम और यूपीएचएसएसपी ने अलग अलग टेंडर कर दिया है। दोनों विभागों की दरें भी अलग अलग हैं लेकिन कंपनी एक ही है। ऐसे में अहम सवाल यह है कि अब राजधानी के अस्पतालों से उठने वाले कचरे का भुगतान नगर निगम की दर से होंगी या यूपीएचएसएसपी की दर से।


नगर निगम ने जब 10 साल के लिए टेंडर कर दिया है तो स्वास्थ्य विभाग अपने स्तर से उसी कंपनी के साथ एग्रीमेंट कैसे कर सकता है? यह गलत है। टेंडर रेट भी हमसे ज्यादा है जो कि गलत है। नगर निगम के साथ एग्रीमेंट कर चुकी कंपनी से पूछताछ की जाएगी।
एसके जैन, सीटीपी
नगर निगम

नगर निगम ने जिन शर्तों पर टेंडर किया है, उसके मुताबिक गुणवत्ता बनाए रखना मुमकिन नहीं है। वैसे भी 10 साल के लिए टेंडर किया जाना समझ से परे है। बायोमेडिकल वेस्ट एकत्र करने से ज्यादा उसके गुणवत्तापरक निस्तारण पर भी जोर दिया जाना चाहिए। हमारे टेंडर की कीमत ज्यादा है लेकिन काम की निगरानी और काम की गुणवत्ता सुनिश्चित करने को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं, जो कि पहले नहीं था।
डॉ़ हर्ष शर्मा, प्रॉजेक्ट डायरेक्टर
यूपीएचएसएसपी

जांच के बजाय गवाहों से कह रहे 'कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ'


(रणविजय सिंह, 30 जनवरी)

_ यूपी हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग के नए जांच अधिकारी ने शिकायतकर्ता से तीसरी बार मांगा शपथपत्र
_ शासन के आदेश पर शुरू हुई जांच में चार महीने बाद भी आरोपितों से नहीं हो सकी है पूछताछ
_ प्रॉजेक्ट में फायदा लेने के आरोप में कई ब्यूरोक्रेट, नेता और पूर्व मंत्रियों के फंसने की आशंका

Ranvijay.singh1@timesgroup.com, लखनऊ
5 अक्टूबर 2017 : यूपी हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट (यूपीएचएसएसपी) की नियुक्तियों में धांधली और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे। शासन ने अपर निदेशक (राष्ट्रीय कार्यक्रम) और डीजी को जांच के लिए कहा। शिकायतकर्ता से शपथपत्र मांगा गया।
5 नवंबर 2017 : शासन के आदेश पर मामले की जांच के लिए कमिटी बनी। इस कमिटी ने एक महीने बाद तक आरोपितों से पूछताछ नहीं की। इसके उलट शिकायतकर्ता से 8 सवालों के जवाब, उनके सुबूत और दस्तावेज शपथपत्र के साथ देने को कहा।
23 जनवरी 2018 : मामले की जांच नहीं शुरू हो सकी। पुराने जांच अधिकारी डॉ़ ईयू सिद्दीकी ने जांच से इंकार कर दिया तो महानिदेशक डॉ़ पद्माकर सिंह को जांच दी गई। उन्होंने आरोपितों से पूछताछ करने के बजाय शिकायतकर्ता से शपथपत्र के साथ दस्तावेज मांगा है।

चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ सीएम के 'नो टॉलरेंस नीति' से सहमत नहीं है। शायद यही वजह है कि पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुई उप्र हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट (यूपीएचएसएसपी) घोटाले की जांच चार महीने बाद भी गवाहों से शपथ पत्र मांगने से आगे नहीं बढ़ सकी है। गवाह और शिकायकर्ता तीन बार शपथपत्र के साथ सुबूत और दस्तावेज जांच अधिकारियों को सौंप चुका है। इसके बावजूद 23 जनवरी को उसे नए सिरे से शपथपत्र पर वही सारे दस्तावेज फिर देने को कहा गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस दरम्यान नियुक्ति में धांधली और वित्तीय अनियमितता के किसी भी आरोपित से पूछताछ तक नहीं की जा सकी है।
यूपीएचएसएसपी में चार महीने बाद भी जांच शुरू करने के बजाय तीसरी बार शपथपत्र मांगे जाने पर मामले का खुलासा करने वाले एडवोकेट रोहित जायसवाल निराशा जता रहे हैं। उनके मुताबिक मामले में शामिल ब्यूरोक्रेट, नेता और पूर्व मंत्रियों की भूमिका संदिग्ध है। ऐसे में चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर उनकी जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। यही वजह है कि उनसे पूछताछ से बचने के बहाने तलाशे जा रहे हैं। रोहित जायसवाल के मुताबिक नए जांच अधिकारी बने महानिदेशक डॉ़ पद्माकर सिंह को ईमेल के जरिए भी दस्तावेज भेजे जा चुके हैं। साथ ही नए सिरे से हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी के सुबूत भी दिए गए हैं लेकिन एक भी मामले में उन्होंने जांच शुरू नहीं की है।

यह है मामला :
ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत करने के लिए उप्र हेल्थ सिस्टम स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट (UPHSSP) को वर्ल्ड बैंक और केंद्र सरकार ने करीब 700 करोड़ रुपये दिए थे। लेकिन इस रकम से यूपी में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अपनी बेटी-पत्नियों को मानकों के उलट लाखों रुपये के वेतन वाले पदों पर नियुक्त करवाते रहे। इस खेल में कई ब्यूरोक्रेट, नेता और पूर्व मंत्रियों के रिश्तेदारों को भी फायदा पहुंचाने के आरोप लगे। स्वास्थ्य विभाग में तैनात एक विशेष सचिव ने अपनी बेटी को योग्यता ना होने के बावजूद पर्यावरण प्रबंधन विशेषज्ञ के पद पर नियुक्ति दी गई। यही नहीं उसी पद पर बाद में एक अन्य आईएएस अधिकारी की पत्नी का चयन कर लिया गया।

मुझे पुराने जांच अधिकारी की तरफ से मिले दस्तावेजों में शिकायतकर्ता का शपथपत्र नहीं मिला है। ऐसे में शपथपत्र मांगा गया है। शासनादेश के मुताबिक जांच से पहले शपथपत्र लिया जाना जरूरी है। आरोपितों को बचाए जाने के आरोप पूरह से बेबुनियाद हैं।
डॉ़ पद्माकर सिंह, महानिदेशक
चिकित्सा स्वास्थ्य

जिसका सिलेक्शन होना था वो पहले ही दे गया लड्डू, बाकियों को कर दिया बाहर


(रणविजय सिंह, 6 फरवरी)

_ यूपीएचएसएसपी में हुए इंटरव्यू के बाद चयन सूची बना रहे अधिकारियों की बातचीत का ऑडियो जांच अधिकारी को भेजा गया
_ ऑडियों में अधिकारी लड्डू लिए जाने, एक अभ्यर्थी को हर हाल में चुनने और कुछ को दो मिनट पूछताछ कर लौटाने की कर रहे बात

Ranvijay.Singh1@timesgroup.com, लखनऊ
उप्र हेल्थ स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट के लिए एक महीने पहले हुए इंटरव्यू के बाद चयन सूची बना रहे अधिकारियों की बातचीत का ऑडियो सामने आने के बाद पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल उठ गए हैं। मनमाने तरीके से प्रॉजेक्ट में हो रही नियुक्तियों की जांच कर रहे महानिदेशक डॉ़ पद्माकर सिंह को यह ऑडियो भेजा गया है। इस ऑडियो में इंटरव्यू में शामिल अधिकारी मिठाई मिलने, एक अभ्यर्थी को सूची में शामिल करने और कुछ को महज दो मिनट पूछताछ कर लौटाने की बात करते हुए सुनायी दे रहे हैं। विभाग में फर्जीवाड़े का खुलासा करने वाले एडवोकेट आशुतोष शर्मा ने इंटरव्यू के बाद मनमाने तरीके से चयन सूची बनाए जाने का आरोप लगाया है।
पिछले दिनों यूपीएचएसएसपी प्रॉजेक्ट में कई पदों के लिए इंटरव्यू कराए गए थे। इसमें कार्यदायी संस्था इकोरिस इंडिया, पीजीआई और यूपीएचएसएसपी के कई वरिष्ठ अधिकारियों का पैनल बना था। इस पैनल ने सभी आवेदकों का इंटरव्यू लिया और उसके बाद चयन सूची बनाने की कवायद शुरू हुई। इस दौरान ही बातचीत का ऑडियो महानिदेशक डॉ़ पद्माकर सिंह को सौंपा गया है। आरोप है कि इंटरव्यू के बाद सूची बनाने से पहले जोड़ तोड़ शुरू हो गई थी और इंटरव्यू लेने वाले अधिकारी पहले से तय नामों को सूची में शामिल करने के साथ बाकियो को बाहर करने के तौर तरीकों पर बातचीत कर रहे थे। ऑडियों में कुछ अभ्यर्थियों के नंबर कम करने और कुछ के नंबर बढ़ाए जाने का भी जिक्र है। यही नहीं बीच बीच में एक खास अभ्यर्थी को हर हाल में सिलेक्ट करने की बात भी हो रही है।

तो इसीलिए आईआईएम को किया गया था बाहर :
उप्र हेल्थ स्ट्रेथनिंग प्रॉजेक्ट के लिए इंटरव्यू और सिलेक्शन का काम आईआईएम को दिया गया था। आईआईएम के सख्त मानकों के चलते वीआईपी और रसूखदारों के करीबियों का सिलेक्शन नहीं हो पा रहा था तो अधिकारियों ने चयन एजेंसी के तौर पर आईआईएम को ही बदल दिया। आईआईएम से यह काम वापस लेते हुए निजी एजेंसी टीएंडएम कंसल्टिंग प्रालि को दे दिया गया। इस एजेंसी के आते ही उन तमाम लोगों का प्रॉजेक्ट में सिलेक्शन हो गया, जिन्हें आईआईएम ने अपने इंटरव्यू में खारिज कर दिया था। आरोप है कि आईआईएम की सख्ती के चलते नियुक्ति में अधिकारी अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे थे, लिहाजा उसे बाहर करते हुए निजी एजेंसी से ही इंटरव्यू करवाया जाने लगा।

बजट में आठ मेडिकल कॉलेजों का ऐलान लेकिन शिक्षक कहां से लाएंगे? पता नहीं


(रणविजय सिंह, 3 फरवरी)

_ केंद्रीय बजट में यूपी के लिए 8 नए मेडिकल कॉलेजों का ऐलान लेकिन पुराने कॉलेजों के लिए ही पूरे नहीं पड़ रहे शिक्षक
_ चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय की तरफ से पिछले साल शासन को भेजी गई छात्र शिक्षक अनुपात की रिपोर्ट चिंताजनक

Ranvijay.singh1@timesgroup.com, लखनऊ
केंद्रीय बजट में यूपी में 8 नए मेडिकल कॉलेजों का ऐलान हुआ है लेकिन अहम सवाल यह है कि इन नए कॉलेजों के लिए शिक्षकों की व्यवस्था कहां से होगी? यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि वर्तमान मेडिकल कॉलेजों में ही शिक्षकों के 70 फीसदी तक पद खाली पड़े हैं। हालात इस कदर बदतर हैं कि कई मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसरों के 20 से 24 नियमित पदों पर केवल एक या दो प्रोफेसरों की ही नियुक्ति हो सकी है। कुछ जगहों पर तो एक भी असिस्टेंट प्रोफेसर है ही नहीं। इस बीच पिछले साल ही कई मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपलों समेमत कई प्रोफेसरों के इस्तीफों ने नया संकट खड़ा कर दिया था, जिसे किसी तरह संभाला गया। छात्र शिक्षक के इस कामचलाऊ व्यवस्था के बीच यूपी को आठ नए मेडिकल कॉलेजों का तोहफा मेडिकल एजुकेशन या छात्रों के लिए बहुत ज्यादा राहत देने वाला साबित नहीं हो सकेगा।

शिक्षक भर्ती को लेकर आला अधिकारी गंभीर नहीं :
शासन और चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारी करोड़ों रुपये लगाकर मेडिकल कॉलेजों की इमारत और उपकरणों की खरीद में जितनी दिलचस्पी दिखाते हैं, उतनी दिलचस्पी शिक्षकों की भर्ती में नहीं दिखाते। आरोप है कि खरीद में कमीशनखोरी एक बड़ी वजह है। यही वजह है कि हर मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों की नियुक्ति ना होने के बावजूद करोड़ों के उपकरण खरीद लिए जाते हैं, जिसका कोई इस्तेमाल तक करने वाला नहीं होता है। शासन को पिछले साल भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक कई मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और लेक्चरर के ज्यादातर पद खाली हैं। हालात इस कदर बदतर है कि संविदा के भरोसे किसी तरह कक्षाएं चलायी गईं लेकिन इसके बावजूद 30 फीसदी तक शिक्षकों की कमी बनी रही।

कहीं 1 तो कहीं 2 प्रोफेसरों के भरोसे पढ़ायी :
कई मेडिकल कॉलेज ऐसे हैं जो महज एक या दो प्रोफेसरों के भरोसे चल रहे हैं। अम्बेडकर नगर, जालौन, आजमगढ़, बांदा और बदायूं मेडिकल कॉलेजों में प्र्रोफेसर के 20 से 24 पद हैं लेकिन कहीं भी दो से ज्यादा प्रोफेसरों के पद नहीं भरे जा सके हैं। सहारनपुर मेडिकल कॉलेज में तो केवल एक प्रोफेसर हैं और यहां असिस्टेंट प्रोफेसर की एक भी भर्ती नहीं हो सकी है जबकि इसके 27 पद हैं। कन्नौज मेडिकल कॉलेज को लेकर पिछली सरकार काफी गंभीर थी, इसके बावजूद यहां प्रोफेसर के 24 पदों में से केवल चार पर नियमित भर्ती हो सकी।

सुप्रीम कोर्ट गए 12 आवंटियों के फ्लैट चकाचक, एलडीए के भरोसे रहे तो बदहाल

(रणविजय सिंह, 30 जनवरी)

_ पाश्वर्नाथ बिल्डर के खिलाफ लड़ रहे 540 आवंटियों को सुप्रीम कोर्ट और एलडीए अधिकारियों से मिला अलग अलग न्याय
_ एलडीए ने आवंटियों को झटका देते हुए बिना खिड़की, दरवाजा, फर्श और प्लास्टर वाले फ्लैट्स को दे दिया कंप्लीशन सर्टीफिकेट

Ranvijay.Singh1@timesgroup.com, लखनऊ
तस्वीर एक : फ्लैट्स में खिड़की हैं ना दरवाजे। फर्श और भीतरी दीवारों पर प्लास्टर तक नहीं। ढांचानुमा बने फ्लैट्स के भीतर बालू, मोरंग और सीमेंट के अलावा सरिया और मिट्टी भरी हुई है। एलडीए ने इसे रहने लायक मानते हुए बिल्डर को कंप्लीशन सर्टीफिकेट जारी कर दिया।

तस्वीर दो : बेहतरीन लकड़ी के खिड़की दरवाजे। चमचमाती हुई फर्श और दीवारें। बाथरूम से लेकर गैलरी तक ठीक वैसा ही काम हुआ है जैसा बिल्डर ने वादा किया था। सुप्रीम कोर्ट गए 12 आवंटियों के इन फ्लैट्स में अभी और भी बेहतर सुविधाओं के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं।

फ्लैट्स की यह दो अलग अलग तस्वीरें एक ही बिल्डर के एक ही प्रॉजेक्ट की हैं। अंतर सिर्फ उस चौखट का है, जहां पीड़ित आवंटी न्याय की फरियाद कर रहे थे। पहली तस्वीर पार्श्वनाथ प्लेनेट में बने उन आवंटियों के फ्लैट की है, जिन्होंने आधे अधूरे फ्लैट्स के लिए एलडीए से न्याय की गुहार लगायी। वहीं दूसरी तस्वीर सुप्रीम कोर्ट से न्याय की गुहार लगाने वाले आवंटियों के फ्लैट्स की है। आरोप है कि एलडीए अधिकारी मिलीभगत कर बिल्डर को फायदा पहुंचाने वाले फैसले करते रहे, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर पर सख्ती करते हुए आवंटियों को न्याय दिलाया।
सुप्रीम कोर्ट का कमीशन 18 जनवरी को पार्श्वनाथ प्लेनेट का निरीक्षण करने आया था। इससे पहले ही बिल्डर ने उन सभी 12 आवंटियों के फ्लैट्स को रहने लायक बना दिया। एक तरफ जहां पूरे प्रॉजेक्ट के 50 फीसदी से ज्यादा फ्लैट्स आधे अधूरे पड़े हुए थे, वहीं सुप्रीम कोर्ट गए आवंटियों के फ्लैट्स में मानकों से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से काम करा दिया गया। यही नहीं इन फ्लैट्स में बिजली आपूर्ति समेत कुछ अन्य कामों के लिए  के लिए बिल्डर ने दो अतिरिक्त ट्रांसफॉर्मर लगाने का भी आश्वासन दिया है। अतिरिक्त बेहतरी के लिए बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट की कमीशन से तीन महीने का समय मांगा है। ऐसे में अब तक एलडीए से परियाद कर रहे आवंटी भी अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं। पार्श्वनाथ प्लानेट वेलफेयर असोसिएशन के सदस्य आलोक सिंह ने बताया कि इस संबंध में आवंटियों ने वकील से सलाह ले ली है।

सुप्रीम कोर्ट के उलट एलडीए ने बिल्डर को दी राहत :
सुप्रीम कोर्ट के उलट एलडीए अधिकारियों ने आवंटियों के बजाय बिल्डर को ही राहत देते हुए पूरे प्रॉजेक्ट को ही कंप्लीशन सर्टीफिकेट दे दिया। ऐसा करते समय काबिल अधिकारियों ने यह भी नहीं देखा कि प्रॉजेक्ट के फ्लैट्स में खिड़की दरवाजे तक नहीं लगे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकारियों ने खुद निरीक्षण कर फ्लैट्स की बदहाली देखी थी लेकिन उसके बावजूद बिल्डर पर मेहरबानी कर दी।

एलडीए का डर क्यों नहीं ?
सुप्रीम कोर्ट के डर से 12 फ्लैट‌्स का काम मानकों के मुताबिक करने वाला बिल्डर आखिर एलडीए के डर से बचे हुए फ्लैट्स का काम पूरा क्यों नहीं कर रहा? पार्श्वनाथ प्लानेट वेलफेयर असोसिएशन इसके लिए एलडीए के भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। असोसिएशन के मुताबिक अधिकारियों ने बिल्डर की मिलीभगत से आवंटियों के साथ हर बार धोखा ही किया है।

जिन आवंटियों के फ्लैट अधूरे हैं, उन्हें भी पूरा कराया जाएगा। इसके लिए बिल्डर को पत्र भेजा जा चुका है। कंप्लीशन सर्टीफिकेट देने का मतलब आवंटियों को उनके हाल पर छोड़ना नहीं है।
चक्रेश जैन, एक्सईएन
एलडीए

सरकार किसी की हो, हर चौखट पर बिल्डर जीता, आवंटी हारे

(रणविजय सिंह, 20 जनवरी)                                     _ सपा सरकार में कार्रवाई होना तो दूर एलडीए अधिकारियों ने 10 में से 7 टावरों को दे दिया कंप्लीशन सर्टीफिकेट
_ बीजेपी की सरकार में बचे हुए तीन टावरों को भी दिया गया कंप्लीशन, जबकि फ्लैट में खिड़की दरवाजे तक नहीं

ranvijay.singh1@timesgroup.com, लखनऊ
वर्ष 2007 : बसपा सरकार में बिल्डर पर तालाब की जमीन पर अपार्टमेंट बनाने का आरोप लगा। एफआईआर हुई। एलडीए उपाध्यक्ष से लेकर टाउन प्लानर तक को दस्तावेज सौंपे गए। इसके बावजूद एलडीए ने ले आउट और मानचित्र पास कर दिया।
वर्ष 2015 : सपा सरकार में पार्श्वनाथ प्लेनेट के आवंटियों ने निर्माण पर गंभीर सवाल उठाए। इसके बावजूद अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। सुनवाई चलती रही और इसी बीच एक दिन अचानक 10 में से 7 टावरों को कंप्लीशन सर्टीफिकेट दे दिया गया।
वर्ष 2018 : बीजेपी सरकार में आवंटियों ने सीएम, डीएम और एलडीए उपाध्यक्ष के सामने नए सिरे से न्याय की गुहार लगायी। आवंटी डिवेलपर पर कार्रवाई का इंतजार कर रहे थे लेकिन एलडीए ने बचे हुए तीन टावरों को भी कंप्लीशन सर्टीफिकेट जारी कर दिया।

यह तीन तारीखें यह साबित करने के लिए काफी हैं कि सरकार कोई भी रही हो, पार्श्वनाथ प्लेनेट के आवंटी हर चौखट पर हारे हैं और तमाम खामियों के बावजूद बिल्डर जीता है। आवंटियों ने अदालत, सीएम, डीएम, एलडीए और पुलिस हर चौखट पर बिल्डर के खिलाफ गड़बड़ी और मनमानी के आरोप लगाए लेकिन कहीं से भी आवंटियों के पक्ष में फैसला नहीं आया। इस बीच मंगलवार को जारी हुए कंप्लीशन सर्टीफिकेट के बाद आवंटियों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर अधिकारियों की आंख पर ऐसा कौन सा पर्दा पड़ा था कि बिना खड़की, दरवाजा, फर्श और प्लास्टर के फ्लैट्स भी रहने लायक दिखने लगे? हालांकि इस बीच आवंटी एक बार फिर लामबंद होकर इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में जुट गए हैं।

तालाब पर पास कर दिया मानचित्र :
तालाबों के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अशोक शंकरन ने बताया कि पार्श्वनाथ बिल्डर के इस प्रॉजेक्ट का एक हिस्सा खसरा संख्या 402 और 412 में आ रहा था जो कि तालाब के तौर पर दर्ज था। वर्ष 2007 में इसकी सूचना देने के बावजूद एलडीए ने इस जमीन पर प्रॉजेक्ट का ले आउट और मानचित्र पास कर दिया। तत्कालीन उपाध्यक्ष बीबी सिंह ने हर शिकायत को दरकिनार करते हुए प्रॉजेक्ट को मंजूरी दे दी। अशोक शंकरन के मुताबिक अभी भी इस मामले की सुनवाई अदालत में चल रही है लेकिन एलडीए बिल्डर पर मेहरबानी बनाए हुए है।

अधिकारियों ने अदालत की मार से बचाया :
वर्ष 2015 में आवंटियों ने बिल्डर के खिलाफ अदालती लड़ाई तेज कर दी। इसमें फंसता देख बिल्डर ने एलडीए अधिकारियों से मिलीभगत कर 10 में से 7 टावरों का कंप्लीशन सर्टीफिकेट ले लिया। अब सुप्रीम कोर्ट की टीम इस साल 20 जनवरी को प्रॉजेक्ट का निरीक्षण करने आ रही है। ऐसे में एक बार फिर बिल्डर के बेनकाब होने की आशंका थी। ऐसे में वर्तमान उपाध्यक्ष प्रभु एन सिंह ने बचे हुए तीन टावरों को भी कंप्लीशन सर्टीफिकेट दे दिया।

बिल्डर को फायदा  देने के आरोप बेबुनियाद है। अपार्टमेंट एक्ट के मुताबिक ही मानकों की जांच पड़ताल हुई थी। बिल्डर को कुछ शर्तों के साथ सर्टीफिकेट दिया गया है। कमियां दूर नहीं होने पर रेरा के जरिए कार्रवाई करायी जाएगी।
चक्रेश जैन, एक्सईएन
एलडीए

तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपन...