(रणविजय सिंह : पार्ट वन, 12 अगस्त)
राजधानी के सरकारी अस्पतालों में पिछले दो साल से ऐसी एजेंसी ऑक्सीजन सप्लाई कर रही है, जिसके पास इस समय मैनुफैक्चरिंग प्लांट ही नहीं है। सूत्रों के मुताबिक एजेंसी अपने प्लांट में ऑक्सीजन बनाने के बजाय उड़ीसा के राउरकेरा जिले से टैंकरों में ऑक्सीजन खरीदकर बाराबंकी में लाती है और वहां इसे सिलेंडरों में भरकर अस्पतालों तक पहुंचाया जाता है। ऐसे में अगर उड़ीसा या वहां तक पहुंचने के रास्ते में कोई बाधा हो जाए तो सप्लाई ठप हो जाएगी। इसके बावजूद आला अधिकारी पिछले दो साल से बिना टेंडर कराए अपनी चहेती एजेंसी से ही ऑक्सीजन सप्लाई करवा रहे हैं। आरोप है कि अधिकारी और एजेंसी के बीच गठजोड़ के चलते अस्पतालों में फर्जी सप्लाई दिखाकर पिछले दो वर्ष के दरम्यान हर महीने लाखों के वारे न्यारे किए जाते रहे, जिसका खुलासा एनबीटी ने इस साल जनवरी में ही कर दिया था। जांच में इसकी पुष्टि होने के बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।
स्वास्थ्य महानिदेशालय की तरफ से सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए टेंडर कराए जाने का नियम है। आखिरी बार वर्ष 2014 में टेंडर हुआ था। सिविल अस्पताल के लिए हुए टेंडर में जिस एजेंसी का चयन हुआ, उसने मैन्यूफैक्चरिंग लाइसेंस दिखाया था। इसके बाद वर्ष 2015 और 2016 में टेंडर हुआ, जिसमें कई कंपनियों ने काफी कम दर पर ऑक्सीजन सप्लाई देने की इच्छा जतायी लेकिन किसी न किसी बहाने टेंडर निरस्त कर दिए गए। टेंडर निरस्त होने के बाद पुरानी कंपनी को तय रेट पर ऑक्सीजन सप्लाई का काम दिया जाता रहा। इस बीच एजेंसी अस्पतालों में जितने सिलेंडर की सप्लाई दिखा रही थी, उसका 50% तक ही सप्लाई हो रही थी। एनबीटी ने राजधानी के तीन बड़े अस्पतालों सिविल, लोहिया और बलरामपुर अस्पताल में स्टिंग कर इसे बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा किया था। इसके बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव अरुण सिन्हा ने महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह को जांच कराने का आदेश दिया। महानिदेशक को जून महीने में ही जांच रिपोर्ट मिल गई थी लेकिन अब तक एजेंसी और अस्पताल के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। इस बीच नया खुलासा यह हुआ है कि इस एजेंसी के पास मैन्युफैक्चरिंग प्लांट ही नहीं है। सूत्रों के मुताबिक बाराबंकी में इस एजेंसी का प्लांट था, जिसे काफी पहले ही बंद किया जा चुका है।
पता ही नहीं था कि प्लांट है या नहीं :
एनबीटी से बात करते हुए उन्होंने पहले तो दावा किया कि इस समय ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी के पास मैन्युफैक्चरिंग प्लांट है लेकिन एक घंटे बाद उन्होंने इसकी पुष्टि न होने की बात कही। महानिदेशक यह बताने में भी असमर्थ थे कि तीन साल पहले किन शर्तों के आधार पर ऑक्सीजन सप्लाई का टेंडर हुआ था। इसके बाद लगातार दो साल से क्यों टेंडर रद करना पड़ रहा है? इसकी जानकारी भी अधिकारी नहीं दे सके।
हादसा हुआ तो ई टेंडरिंग की याद आयी :
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई में गड़बड़ी के चलते हुई मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग को ई टेंडरिंग की याद आयी है। महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह ने सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए ई टेंडरिंग करवाने का दावा किया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में सभी को आदेश जारी किया जा चुका है। जल्द ही ई टेंडरिंग कर ऑक्सीजन सप्लाई के लिए एजेंसियों का चयन किया जाएगा।
राजधानी के सरकारी अस्पतालों में पिछले दो साल से ऐसी एजेंसी ऑक्सीजन सप्लाई कर रही है, जिसके पास इस समय मैनुफैक्चरिंग प्लांट ही नहीं है। सूत्रों के मुताबिक एजेंसी अपने प्लांट में ऑक्सीजन बनाने के बजाय उड़ीसा के राउरकेरा जिले से टैंकरों में ऑक्सीजन खरीदकर बाराबंकी में लाती है और वहां इसे सिलेंडरों में भरकर अस्पतालों तक पहुंचाया जाता है। ऐसे में अगर उड़ीसा या वहां तक पहुंचने के रास्ते में कोई बाधा हो जाए तो सप्लाई ठप हो जाएगी। इसके बावजूद आला अधिकारी पिछले दो साल से बिना टेंडर कराए अपनी चहेती एजेंसी से ही ऑक्सीजन सप्लाई करवा रहे हैं। आरोप है कि अधिकारी और एजेंसी के बीच गठजोड़ के चलते अस्पतालों में फर्जी सप्लाई दिखाकर पिछले दो वर्ष के दरम्यान हर महीने लाखों के वारे न्यारे किए जाते रहे, जिसका खुलासा एनबीटी ने इस साल जनवरी में ही कर दिया था। जांच में इसकी पुष्टि होने के बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।
स्वास्थ्य महानिदेशालय की तरफ से सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए टेंडर कराए जाने का नियम है। आखिरी बार वर्ष 2014 में टेंडर हुआ था। सिविल अस्पताल के लिए हुए टेंडर में जिस एजेंसी का चयन हुआ, उसने मैन्यूफैक्चरिंग लाइसेंस दिखाया था। इसके बाद वर्ष 2015 और 2016 में टेंडर हुआ, जिसमें कई कंपनियों ने काफी कम दर पर ऑक्सीजन सप्लाई देने की इच्छा जतायी लेकिन किसी न किसी बहाने टेंडर निरस्त कर दिए गए। टेंडर निरस्त होने के बाद पुरानी कंपनी को तय रेट पर ऑक्सीजन सप्लाई का काम दिया जाता रहा। इस बीच एजेंसी अस्पतालों में जितने सिलेंडर की सप्लाई दिखा रही थी, उसका 50% तक ही सप्लाई हो रही थी। एनबीटी ने राजधानी के तीन बड़े अस्पतालों सिविल, लोहिया और बलरामपुर अस्पताल में स्टिंग कर इसे बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा किया था। इसके बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव अरुण सिन्हा ने महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह को जांच कराने का आदेश दिया। महानिदेशक को जून महीने में ही जांच रिपोर्ट मिल गई थी लेकिन अब तक एजेंसी और अस्पताल के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। इस बीच नया खुलासा यह हुआ है कि इस एजेंसी के पास मैन्युफैक्चरिंग प्लांट ही नहीं है। सूत्रों के मुताबिक बाराबंकी में इस एजेंसी का प्लांट था, जिसे काफी पहले ही बंद किया जा चुका है।
पता ही नहीं था कि प्लांट है या नहीं :
एनबीटी से बात करते हुए उन्होंने पहले तो दावा किया कि इस समय ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी के पास मैन्युफैक्चरिंग प्लांट है लेकिन एक घंटे बाद उन्होंने इसकी पुष्टि न होने की बात कही। महानिदेशक यह बताने में भी असमर्थ थे कि तीन साल पहले किन शर्तों के आधार पर ऑक्सीजन सप्लाई का टेंडर हुआ था। इसके बाद लगातार दो साल से क्यों टेंडर रद करना पड़ रहा है? इसकी जानकारी भी अधिकारी नहीं दे सके।
हादसा हुआ तो ई टेंडरिंग की याद आयी :
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई में गड़बड़ी के चलते हुई मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग को ई टेंडरिंग की याद आयी है। महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह ने सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए ई टेंडरिंग करवाने का दावा किया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में सभी को आदेश जारी किया जा चुका है। जल्द ही ई टेंडरिंग कर ऑक्सीजन सप्लाई के लिए एजेंसियों का चयन किया जाएगा।
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