Tuesday, 26 September 2017

दाखिलों में धांधली का आरोप, एडमिशन ऑडिट कराने की मांग

(रणविजय सिंह : पार्ट थ्री, 25 सितंबर)

खेल कोटे से हुए दाखिलों पर सवाल उठने के बाद लविवि के छात्र नेता और छात्र संगठनों ने एडमिशन ऑडिट कराए जाने की मांग शुरू कर दी है। छात्रसंघ और दूसरी मांगों को लेकर पिछले एक सप्ताह से धरने पर बैठे आंदोलनकारी छात्रों ने फर्जी दाखिलों के लिए सीधे तौर पर कुलपति और प्रवेश समन्वयक को जिम्मेदार ठहराया है। छात्र संगठनों के मुताबिक इस साल पहले पीएचडी फिर एलएलएम और अब खेल कोटे से स्नातक और पीजी में हुए 30 संदिग्ध दाखिलों ने इस मामले में आला अधिकारियों की मिलीभगत से पर्दा उठा दिया है।

आज दाखिले तो सत्यापन 30 दिन बाद क्यों ?
एसएफआई के विवि प्रभारी वैभव देव ने एथलेटिक असोसिएशन और प्रवेश समन्वयक की भूमिका पर सवाल उठाया है। उन्होंने पूछा कि जब दाखिले सितंबर में हुए हैं तो मूल दस्तावेजों का सत्यापन अक्टूबर में कराने के पीछे क्या मकसद है? वैभव के मुताबिक पिछले वर्षों में फर्जी खेल सर्टीफिकेट बनाकर दाखिले होने के मामले आ चुके हैं। ऐसे में इस साल मामला खुलने के बाद अधिकारियों ने संदिग्ध छात्रों को सर्टीफिकेट बनवाने का समय दिया है, ताकि गड़बड़ी पर पर्दा डाला जा सके।

स्नातक में विषय आवंटन में भी फर्जीवाड़ा :
एबीवीपी के प्रांत संगठन मंत्री सत्यभान सिंह भदौरिया ने स्नातक दाखिलों में विषय आवंटन किए जाने पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनके मुताबिक काउंसलिंग के वक्त टॉप मेरिट वाले  छात्रों को डिमांड वाले विषय खतम होने की भ्रामक सूचना दे दी गई और बाद में अधिकारियों ने अपने चहेतों को यह विषय आवंटित कर दिए। आरोप है कि शाम को काउंसलिंग खतम होने के बाद गुपचुप तरीके से विषय आवंटन किए गए।

विभागाध्यक्षों ने चहेतों को करायी पीएचडी :
सपा छात्रसभा की छात्रनेता पूजा शुक्ला ने इस साल पीएचडी में फर्जी तरीके से दाखिलों के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि इस साल दाखिले खतम होने के बाद गुपचुप तरीके से सोशल वर्क, हिंदी और पालीटिकल साइंस में विभागाध्यक्षों ने अपने स्तर से दाखिले कर लिए। तीन महीने पहले इसका खुलासा होने के बावजूद अब तक आला अधिकारी इन दाखिलों को लेकर कोई भी जवाब देने को तैयार नहीं हैं।


खेल कोटे से दाखिलों को लेकर मामला जानकारी में आया है। छात्रों की तरफ से एडमिशन ऑडिट का मांगपत्र अभी मुझे मिला नहीं है। इस बारे में कुलपति से बात करके ही कोई फैसला हो सकता है।
प्रो़ एनके पांडेय, प्रवक्ता
लविवि

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