(रणविजय सिंह : पार्ट टू, 13 अगस्त)
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन गैस का 60 लाख रुपये बकाया न चुकाने वाले चिकित्सा शिक्षा विभाग के लिए पांच अगस्त को ही 484 करोड़ 12 लाख 29 हजार रुपये का बजट जारी हो गया था। इसके बावजूद प्रमुख सचिव डॉ़ अनीता भटनागर जैन, महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता और प्रिंसिपल डॉ़ राजीव कुमार मिश्रा समेत दूसरे जिम्मेदार अधिकारी 10 अगस्त तक ऑक्सीजन का बकाया नहीं चुका सके। इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि इस साल 31 मार्च को मेडिकल कॉलेजों के लिए मिला 90 करोड़ रुपये इस्तेमाल न हो सकने के कारण वापस (लैप्स हो गया) चला गया। इसमें से गोरखपुर मेडिकल कॉलेज को 75 लाख रुपये आवंटित हुए थे। आला अधिकारी चाहते तो वापस गए इस बजट से समय रहते ऑक्सीजन का बकाया चुका सकते थे। आरोप है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को तय कमीशन न मिलने के चलते शासन से मिले बजट का आवंटन मेडिकल कॉलेजों को नहीं हुआ।
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने से हुई मौतों ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में कमीशनखोरी से पर्दा उठा दिया है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अधिवक्त मोहम्म्द शारिक खान का आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों के लिए बजट आवंटित करने से पहले आला अधिकारियों ने पांच फीसदी कमीशन तय कर दिया था। यही वजह है कि बजट बिना इस्तेमाल हुए वापस चला गया लेकिन मेडिकल कॉलेजों को उनके लिए जरूरी बजट नहीं दिया गया। इस संबंध में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की तरफ से मुख्य सचिव और पीएमओ तक में शिकायत दर्ज करायी गई थी। इसके बाद पीएमओ ने इस मामले में मुख्य सचिव को जांच के लिए आदेश जारी हुआ और मुख्य सचिव ने आरोपों की जद में आ रहीं प्रमुख सचिव डॉ़ अनीता भटनागर जैन को ही जांच का आदेश दे दिया। मामले की जांच अब तक शुरू नहीं हो सकी। इस बीच मेडिकल कॉलेजों के लिए शासन से जारी हुए बजट को पुराने तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए आवंटित किया जा रहा था। यही वजह है कि पिछले वित्तीय वर्ष में जहां 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए थे, वहीं इस बार आवंटित बजट भी कॉलेजों को भेजने में जानबूझकर लेटलतीफी जारी है।
ऑक्सीजन का बकाया था तो क्यों वापस चला गया 90 करोड़ :
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन गैस का 60 लाख रुपए बकाया था इसके बावजूद चिकित्सा शिक्षा विभाग से 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए। ऐसे में सवाल यह है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों ने इस बजट का इस्तेमाल करते हुए बकाया भुगतान क्यों नहीं किया? सूत्रों के मुताबिक 31 मार्च तक महानिदेशालय और विभाग के दूसरे आला अधिकारी यह बजट कॉलेजों को भेजने का फैसला नहीं कर सके। मेडिकल कॉलेजों में निर्माण से जुड़े कई मदों का बजट शासन ने 10 मार्च को जारी कर दिया गया था। इसके बाद महकमे के अधिकारियों ने इसे समय रहते आवंटित करने में कोई तेजी नहीं दिखायी।
यूं जारी होता है बजट :
वित्त विभाग हर विभाग के प्रमुख सचिव से उनके अधीन आने वाले विभागों के लिए जरूरी बजट मांगता है। इसके बाद प्रमुख सचिव महानिदेशक सभी प्रिंसिपलों से उनकी जरूरत का ब्योरा मांगते हैं। प्रिंसिपलों की तरफ से आने वाले प्रस्ताव महानिदेशक प्रमुख सचिव को सौंपते हैं और वहां कॉलेजों की डिमांड से वित्त विभाग को अवगत करा दिया जाता है। इसके बाद बजट जारी होता है, जिसे प्रमुख सचिव महानिदेशक के जरिए कॉलेजों को आवंटित कर देते हैं। यह बजट ट्रेजरी से प्रिंसिपल प्राप्त कर सकते हैं।
बात करने से बचते रहे :
हादसे के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग की प्रमुख सचिव अनीता भटनागर जैन और महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता बात करने से बचते रहे। कई बार फोन करने के बावजूद इन अधिकारियों ने फोन नहीं उठाया। इसके बाद इन्हें एसएमएस करके बजट आवंटित होने के बावजूद भुगतान होने का कारण जानने की कोशिश हुई। इसके बावजूद अधिकारी चुप्पी साधे रहे। मामले को लेकर चिकित्सा शिक्षा के कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन से भी संपर्क की कोशिश बेकार साबित हुई।
ये हैं जिम्मेदार :
प्रमुख सचिव : अनीता भटनागर जैन
महानिदेशक : डॉ़ केके गुप्ता
पूर्व महानिदेशक : डॉ़ बीएन त्रिपाठी
प्रिंसिपल : डॉ़ राजीव कुमार मिश्रा
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन गैस का 60 लाख रुपये बकाया न चुकाने वाले चिकित्सा शिक्षा विभाग के लिए पांच अगस्त को ही 484 करोड़ 12 लाख 29 हजार रुपये का बजट जारी हो गया था। इसके बावजूद प्रमुख सचिव डॉ़ अनीता भटनागर जैन, महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता और प्रिंसिपल डॉ़ राजीव कुमार मिश्रा समेत दूसरे जिम्मेदार अधिकारी 10 अगस्त तक ऑक्सीजन का बकाया नहीं चुका सके। इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि इस साल 31 मार्च को मेडिकल कॉलेजों के लिए मिला 90 करोड़ रुपये इस्तेमाल न हो सकने के कारण वापस (लैप्स हो गया) चला गया। इसमें से गोरखपुर मेडिकल कॉलेज को 75 लाख रुपये आवंटित हुए थे। आला अधिकारी चाहते तो वापस गए इस बजट से समय रहते ऑक्सीजन का बकाया चुका सकते थे। आरोप है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को तय कमीशन न मिलने के चलते शासन से मिले बजट का आवंटन मेडिकल कॉलेजों को नहीं हुआ।
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने से हुई मौतों ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में कमीशनखोरी से पर्दा उठा दिया है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अधिवक्त मोहम्म्द शारिक खान का आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों के लिए बजट आवंटित करने से पहले आला अधिकारियों ने पांच फीसदी कमीशन तय कर दिया था। यही वजह है कि बजट बिना इस्तेमाल हुए वापस चला गया लेकिन मेडिकल कॉलेजों को उनके लिए जरूरी बजट नहीं दिया गया। इस संबंध में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की तरफ से मुख्य सचिव और पीएमओ तक में शिकायत दर्ज करायी गई थी। इसके बाद पीएमओ ने इस मामले में मुख्य सचिव को जांच के लिए आदेश जारी हुआ और मुख्य सचिव ने आरोपों की जद में आ रहीं प्रमुख सचिव डॉ़ अनीता भटनागर जैन को ही जांच का आदेश दे दिया। मामले की जांच अब तक शुरू नहीं हो सकी। इस बीच मेडिकल कॉलेजों के लिए शासन से जारी हुए बजट को पुराने तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए आवंटित किया जा रहा था। यही वजह है कि पिछले वित्तीय वर्ष में जहां 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए थे, वहीं इस बार आवंटित बजट भी कॉलेजों को भेजने में जानबूझकर लेटलतीफी जारी है।
ऑक्सीजन का बकाया था तो क्यों वापस चला गया 90 करोड़ :
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन गैस का 60 लाख रुपए बकाया था इसके बावजूद चिकित्सा शिक्षा विभाग से 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए। ऐसे में सवाल यह है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों ने इस बजट का इस्तेमाल करते हुए बकाया भुगतान क्यों नहीं किया? सूत्रों के मुताबिक 31 मार्च तक महानिदेशालय और विभाग के दूसरे आला अधिकारी यह बजट कॉलेजों को भेजने का फैसला नहीं कर सके। मेडिकल कॉलेजों में निर्माण से जुड़े कई मदों का बजट शासन ने 10 मार्च को जारी कर दिया गया था। इसके बाद महकमे के अधिकारियों ने इसे समय रहते आवंटित करने में कोई तेजी नहीं दिखायी।
यूं जारी होता है बजट :
वित्त विभाग हर विभाग के प्रमुख सचिव से उनके अधीन आने वाले विभागों के लिए जरूरी बजट मांगता है। इसके बाद प्रमुख सचिव महानिदेशक सभी प्रिंसिपलों से उनकी जरूरत का ब्योरा मांगते हैं। प्रिंसिपलों की तरफ से आने वाले प्रस्ताव महानिदेशक प्रमुख सचिव को सौंपते हैं और वहां कॉलेजों की डिमांड से वित्त विभाग को अवगत करा दिया जाता है। इसके बाद बजट जारी होता है, जिसे प्रमुख सचिव महानिदेशक के जरिए कॉलेजों को आवंटित कर देते हैं। यह बजट ट्रेजरी से प्रिंसिपल प्राप्त कर सकते हैं।
बात करने से बचते रहे :
हादसे के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग की प्रमुख सचिव अनीता भटनागर जैन और महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता बात करने से बचते रहे। कई बार फोन करने के बावजूद इन अधिकारियों ने फोन नहीं उठाया। इसके बाद इन्हें एसएमएस करके बजट आवंटित होने के बावजूद भुगतान होने का कारण जानने की कोशिश हुई। इसके बावजूद अधिकारी चुप्पी साधे रहे। मामले को लेकर चिकित्सा शिक्षा के कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन से भी संपर्क की कोशिश बेकार साबित हुई।
ये हैं जिम्मेदार :
प्रमुख सचिव : अनीता भटनागर जैन
महानिदेशक : डॉ़ केके गुप्ता
पूर्व महानिदेशक : डॉ़ बीएन त्रिपाठी
प्रिंसिपल : डॉ़ राजीव कुमार मिश्रा
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