(रणविजय सिंह : पार्ट थ्री, 14 अगस्त)
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने से हुई मौतों ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में कमीशनखोरी से पर्दा उठा दिया है। आलम यह है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग का 90 करोड़ रुपये इस साल 31 मार्च को वापस (लैप्स हो गया) चला गया लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने समय रहते इस बजट से ऑक्सीजन सप्लाई का बकाया भुगतान नहीं किया गया। आला अधिकारियों ने अपने इन्हीं तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए पांच अगस्त को शासन से जारी हुआ बजट 10 अगस्त तक रोके रखा लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी का भुगतान नहीं किया।
भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अधिवक्त मोहम्म्द शारिक खान का आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों के लिए बजट आवंटित करने से पहले आला अधिकारियों ने पांच फीसदी कमीशन तय कर दिया था। यही वजह है कि 31 मार्च को बजट बिना इस्तेमाल हुए वापस चला गया लेकिन मेडिकल कॉलेजों को उनके लिए जरूरी बजट नहीं दिया गया। इस संबंध में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की तरफ से मुख्य सचिव और पीएमओ तक में शिकायत दर्ज करायी गई थी। इसके बाद पीएमओ ने इस मामले में मुख्य सचिव को जांच के लिए आदेश जारी हुआ और तत्कालीन मुख्य सचिव ने आरोपों की जद में आ रहे अधिकारियों को भी जांच कमिटी में शामिल कर लिया। नतीजा हुआ कि मामले की जांच अब तक शुरू नहीं हो सकी। इस बीच मेडिकल कॉलेजों के लिए शासन से इस साल जारी हुए बजट को पुराने तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए आवंटित किया जा रहा था। यही वजह है कि पिछले वित्तीय वर्ष में जहां 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए थे, वहीं इस बार आवंटित बजट भी कॉलेजों को भेजने में जानबूझकर लेटलतीफी जारी है।
70 लाख चाहिए था, 75 लाख लैप्स हुआ :
बीआरडी कॉलेज के लिए पिछले वित्तीय वर्ष के बजट में 75 लाख रुपये का प्राविधान था। शासन से आए बजट में इसको मंजूरी भी मिल गयी थी और 10 मार्च को वित्त विभाग ने बजट जारी कर दिया। आरोप है कि कमीशन न मिलने से कई कॉलेजों का बजट आला अधिकारी रोके रहे, जिसमें बीआरडी कॉलेज के लिए आया बजट भी था। नतीजा हुआ कि 31 मार्च को लैप्स हुए बजट के साथ बीआरडी के लिए आवंटित रकम भी वापस चली गई। यह रकम लगभग उतनी ही है, जितना ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी का बकाया है। यानी अधिकारी चाहते तो अगस्त में हालात भयावह होने से चार महीने पहले ही बकाए का एक बड़ा हिस्सा भुगतान कर सकते थे।
बड़ों को बख्शा, छोटे जिम्मेदार पर कार्रवाई :
बजट होने के बावजूद भुगतान न होने के लिए प्रिंसिपल डॉ़ आरके मिश्रा के अलावा सीधे तौर पर महानिदेशक और प्रमुख सचिव भी जिम्मेदार हैं। पिछली सरकार में महानिदेशक रहे डॉ़ बीएन त्रिपाठी के कार्यकाल में ही बजट लैप्स हुआ था। इसके बाद वर्तमान महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता भी बजट जारी करने के पांच दिन तक भुगतान नहीं करा सके। इस बीच दोनों सरकारों में महकमे की प्रमुख सचिव अनीता भटनागर जैन थीं। उन्हें पिछली और वर्तमान सरकार के दौरान बीआरडी मेडिकल कॉलेज के हर डिवेलपमेंट की जानकारी थी।
यूं जारी होता है बजट :
वित्त विभाग हर विभाग के प्रमुख सचिव से उनके अधीन आने वाले विभागों के लिए जरूरी बजट मांगता है। इसके बाद प्रमुख सचिव महानिदेशक सभी प्रिंसिपलों से उनकी जरूरत का ब्योरा मांगते हैं। प्रिंसिपलों की तरफ से आने वाले प्रस्ताव महानिदेशक प्रमुख सचिव को सौंपते हैं और वहां कॉलेजों की डिमांड से वित्त विभाग को अवगत करा दिया जाता है। इसके बाद बजट जारी होता है, जिसे प्रमुख सचिव महानिदेशक के जरिए कॉलेजों को आवंटित कर देते हैं। यह बजट ट्रेजरी से प्रिंसिपल प्राप्त कर सकते हैं।
ऑक्सीजन सप्लाई से जुड़ी सभी बिंदुओं की जांच चल रही है। कमीशनखोरी के लिखित आरोप मिलें तो उनकी भी जांच करायी जाएगी। पीएमओ से कमीशनखोरी की जांच के लिए आए पत्र की जानकारी मुझे नहीं है। ऐसा कोई पत्र आया है तो उसका संज्ञान लेकर जांच करायी जाएगी।
आशुतोष टंडन, चिकित्सा शिक्षा मंत्री
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने से हुई मौतों ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में कमीशनखोरी से पर्दा उठा दिया है। आलम यह है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग का 90 करोड़ रुपये इस साल 31 मार्च को वापस (लैप्स हो गया) चला गया लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने समय रहते इस बजट से ऑक्सीजन सप्लाई का बकाया भुगतान नहीं किया गया। आला अधिकारियों ने अपने इन्हीं तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए पांच अगस्त को शासन से जारी हुआ बजट 10 अगस्त तक रोके रखा लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी का भुगतान नहीं किया।
भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अधिवक्त मोहम्म्द शारिक खान का आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों के लिए बजट आवंटित करने से पहले आला अधिकारियों ने पांच फीसदी कमीशन तय कर दिया था। यही वजह है कि 31 मार्च को बजट बिना इस्तेमाल हुए वापस चला गया लेकिन मेडिकल कॉलेजों को उनके लिए जरूरी बजट नहीं दिया गया। इस संबंध में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की तरफ से मुख्य सचिव और पीएमओ तक में शिकायत दर्ज करायी गई थी। इसके बाद पीएमओ ने इस मामले में मुख्य सचिव को जांच के लिए आदेश जारी हुआ और तत्कालीन मुख्य सचिव ने आरोपों की जद में आ रहे अधिकारियों को भी जांच कमिटी में शामिल कर लिया। नतीजा हुआ कि मामले की जांच अब तक शुरू नहीं हो सकी। इस बीच मेडिकल कॉलेजों के लिए शासन से इस साल जारी हुए बजट को पुराने तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए आवंटित किया जा रहा था। यही वजह है कि पिछले वित्तीय वर्ष में जहां 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए थे, वहीं इस बार आवंटित बजट भी कॉलेजों को भेजने में जानबूझकर लेटलतीफी जारी है।
70 लाख चाहिए था, 75 लाख लैप्स हुआ :
बीआरडी कॉलेज के लिए पिछले वित्तीय वर्ष के बजट में 75 लाख रुपये का प्राविधान था। शासन से आए बजट में इसको मंजूरी भी मिल गयी थी और 10 मार्च को वित्त विभाग ने बजट जारी कर दिया। आरोप है कि कमीशन न मिलने से कई कॉलेजों का बजट आला अधिकारी रोके रहे, जिसमें बीआरडी कॉलेज के लिए आया बजट भी था। नतीजा हुआ कि 31 मार्च को लैप्स हुए बजट के साथ बीआरडी के लिए आवंटित रकम भी वापस चली गई। यह रकम लगभग उतनी ही है, जितना ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी का बकाया है। यानी अधिकारी चाहते तो अगस्त में हालात भयावह होने से चार महीने पहले ही बकाए का एक बड़ा हिस्सा भुगतान कर सकते थे।
बड़ों को बख्शा, छोटे जिम्मेदार पर कार्रवाई :
बजट होने के बावजूद भुगतान न होने के लिए प्रिंसिपल डॉ़ आरके मिश्रा के अलावा सीधे तौर पर महानिदेशक और प्रमुख सचिव भी जिम्मेदार हैं। पिछली सरकार में महानिदेशक रहे डॉ़ बीएन त्रिपाठी के कार्यकाल में ही बजट लैप्स हुआ था। इसके बाद वर्तमान महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता भी बजट जारी करने के पांच दिन तक भुगतान नहीं करा सके। इस बीच दोनों सरकारों में महकमे की प्रमुख सचिव अनीता भटनागर जैन थीं। उन्हें पिछली और वर्तमान सरकार के दौरान बीआरडी मेडिकल कॉलेज के हर डिवेलपमेंट की जानकारी थी।
यूं जारी होता है बजट :
वित्त विभाग हर विभाग के प्रमुख सचिव से उनके अधीन आने वाले विभागों के लिए जरूरी बजट मांगता है। इसके बाद प्रमुख सचिव महानिदेशक सभी प्रिंसिपलों से उनकी जरूरत का ब्योरा मांगते हैं। प्रिंसिपलों की तरफ से आने वाले प्रस्ताव महानिदेशक प्रमुख सचिव को सौंपते हैं और वहां कॉलेजों की डिमांड से वित्त विभाग को अवगत करा दिया जाता है। इसके बाद बजट जारी होता है, जिसे प्रमुख सचिव महानिदेशक के जरिए कॉलेजों को आवंटित कर देते हैं। यह बजट ट्रेजरी से प्रिंसिपल प्राप्त कर सकते हैं।
ऑक्सीजन सप्लाई से जुड़ी सभी बिंदुओं की जांच चल रही है। कमीशनखोरी के लिखित आरोप मिलें तो उनकी भी जांच करायी जाएगी। पीएमओ से कमीशनखोरी की जांच के लिए आए पत्र की जानकारी मुझे नहीं है। ऐसा कोई पत्र आया है तो उसका संज्ञान लेकर जांच करायी जाएगी।
आशुतोष टंडन, चिकित्सा शिक्षा मंत्री
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