Tuesday, 26 September 2017

ऑक्सीजन पाइप लाइन का बजट भी रोके रहे अधिकारी

(रणविजय सिंह : पार्ट फोर, 14 अगस्त)

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में वार्डों तक ऑक्सीजन की पाइप लाइन बिछाने के लिए जारी बजट भी चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारी अपने स्तर पर रोके रहे। अधिकारी ऑक्सीजन और वार्डों तक उसकी आपूर्ति को लेकर किस कदर लापरवाह थे, इसका अंदाजा कॉलेज के महानिदेशक और प्रमुख सचिव के बीच करीब एक साल तक चले पत्राचार को देखकर लगाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक, आला अफसरों ने पैथोलॉजी, ओटी और लेबोरेट्री के मद में आया बजट भी समय रहते जारी नहीं किया।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन गैस पाइप लाइन उच्चीकरण और वार्डों तक उसे बिछाने का प्रस्ताव पिछले साल शासन को भेजा गया था। तत्कालीन प्रिंसिपल आरके मिश्रा की तरफ से 16 फरवरी 2016 को तत्कालीन महानिदेशक डॉ़  बीएन त्रिपाठी को पत्र भेजा गया था। इसके मुताबिक, बीआरडी में ऑक्सीजन गैस पाइप लाइन उच्चीकरण के लिए 4 करोड़ 99 लाख रुपये मांगे गए थे। शासन की तरफ से इस मद में बजट आवंटित हो गया लेकिन कॉलेज को जारी नहीं किया जा सका। नतीजा हुआ कि एक साल बाद भी इसका काम शुरू नहीं हो सका। लिहाजा, प्रिंसिपल की तरफ से रिमाइंडर दिए जाने के बाद तत्कालीन महानिदेशक डॉ़  बीएन त्रिपाठी ने आठ फरवरी 2017 को अपर मुख्य सचिव को बजट जारी करने के लिए पत्र लिखा। पत्र के बाद भी बजट नहीं मिला और पाइप लाइन बिछाने का काम जहां का तहां ठप पड़ा रहा। जानकारों के मुताबिक, अगर वार्डों तक पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा हो चुका होता तो हालात को संभालने में आसानी होती।
ओटी, पैथोलॉजी और लेबोरेट्री तक को बजट नहीं
बीआरडी मेडिकल कॉलेज की ओटी, पैथोलॉजी और लेबोरेट्री के निर्माण व इनके उच्चीकरण को लेकर मांगा गया बजट भी जारी नहीं किया गया। ऑक्सीजन मामले में आला अधिकारियों की लापरवाही सामने आने के बाद बाकी प्रॉजेक्ट्स के लिए बजट न मिलने पर सवाल उठने लगे हैं। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के शारिक खान के मुताबिक, बिना कमिशन लिए किसी भी कॉलेज को बजट जारी नहीं किया जा रहा है।

बीआरडी के इन प्रॉजेक्ट्स को चाहिए बजट :
प्रॉजेक्ट रकम कार्यदायी संस्था
मेडिकल गैस पाइप लाइन 4 करोड़ 99 लाख यूपीसिडको
मेडिकल गैस पाइप लाइन 13 करोड़ 19 लाख सीएंडडीएस
कॉमन हॉल (गर्ल्स एंड ब्वायज) 1 करोड़ 21 लाख सीएलडीएफ
पैथोलॉजी में ग्रास रूम, सेमिनार 1 करोड़ 74 लाख सीएलडीएफ
परीक्षा हॉल 1 करोड़ 20 लाख सीएलडीएफ
हेमेटोलॉजी लैब 71 लाख सीएलडीएफ
केमिकल एंड प्रोक्टिकल लैब 87 लाख सीएलडीएफ
साइटोलॉजी लैब 1 करोड़ 8 लाख सीएलडीएफ
हिस्टोपैथालॉजी लैब 1 करोड़ 90 लाख सीएलडीएफ
सेंट्रल रिसर्च लैब 3 करोड़ 85 लाख सीएलडीएफ
इम्यूनोहिस्टोकेमेस्ट्री लैब 1 करोड़ 63 लाख सीएलडीएफ
ओटी को मॉड्यूलर ओटी बनाना 9 करोड़ 60 लाख सीएंडडीएस
माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेट्री 10 करोड़ सीएंडडीएस
फॉर्माकोलॉजी विभाग उच्चीकरण 9 करोड़ 26 लाख सीएंडडीएस
कम्युनिटी मेडिसिन उच्चीकरण 2 करोड़ 14 लाख सीएंडडीएस

यह काम जिस एजेंसी को दिया गया था, उसपर संदिग्ध दस्तावेज लगाने के आरोप हैं। बीआरडी समेत कई मेडिकल कॉलेजों में पाइप लाइन का काम पाने वाली एजेंसियों की भूमिका की भी जांच हो रही है। अच्छा हुआ कि इनके हाथ में बजट नहीं पहुंचा, वरना बड़ा आर्थिक घोटाला होता। मामले की जांच चल रही है और हर मेडिकल कॉलेज में पारदर्शी तरीके से एजेंसी का चयन कर पाइप लाइन बिछवायी जाएगी।
डॉ़ केके गुप्ता, महानिदेशक
चिकित्सा शिक्षा

31 मार्च को 90 करोड़ रुपया 'लैप्स' हो गया लेकिन बकाया नहीं चुकाया

(रणविजय सिंह : पार्ट थ्री, 14 अगस्त)

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने से हुई मौतों ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में कमीशनखोरी से पर्दा उठा दिया है। आलम यह है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग का 90 करोड़ रुपये इस साल 31 मार्च को वापस (लैप्स हो गया) चला गया लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने समय रहते इस बजट से ऑक्सीजन सप्लाई का बकाया भुगतान नहीं किया गया। आला अधिकारियों ने अपने इन्हीं तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए पांच अगस्त को शासन से जारी हुआ बजट 10 अगस्त तक रोके रखा लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी का भुगतान नहीं किया।
भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अधिवक्त मोहम्म्द शारिक खान का आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों के लिए बजट आवंटित करने से पहले आला अधिकारियों ने पांच फीसदी कमीशन तय कर दिया था। यही वजह है कि 31 मार्च को बजट बिना इस्तेमाल हुए वापस चला गया लेकिन मेडिकल कॉलेजों को उनके लिए जरूरी बजट नहीं दिया गया। इस संबंध में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की तरफ से मुख्य सचिव और पीएमओ तक में शिकायत दर्ज करायी गई थी। इसके बाद पीएमओ ने इस मामले में मुख्य सचिव को जांच के लिए आदेश जारी हुआ और तत्कालीन मुख्य सचिव ने आरोपों की जद में आ रहे अधिकारियों को भी जांच कमिटी में शामिल कर लिया। नतीजा हुआ कि मामले की जांच अब तक शुरू नहीं हो सकी। इस बीच मेडिकल कॉलेजों के लिए शासन से इस साल जारी हुए बजट को पुराने तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए आवंटित किया जा रहा था। यही वजह है कि पिछले वित्तीय वर्ष में जहां 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए थे, वहीं इस बार आवंटित बजट भी कॉलेजों को भेजने में जानबूझकर लेटलतीफी जारी है।

70 लाख चाहिए था, 75 लाख लैप्स हुआ :
बीआरडी कॉलेज के लिए पिछले वित्तीय वर्ष के बजट में 75 लाख रुपये का प्राविधान था। शासन से आए बजट में इसको मंजूरी भी मिल गयी थी और 10 मार्च को वित्त विभाग ने बजट जारी कर दिया। आरोप है कि कमीशन न मिलने से कई कॉलेजों का बजट आला अधिकारी रोके रहे, जिसमें बीआरडी कॉलेज के लिए आया बजट भी था। नतीजा हुआ कि 31 मार्च को लैप्स हुए बजट के साथ बीआरडी के लिए आवंटित रकम भी वापस चली गई। यह रकम लगभग उतनी ही है, जितना ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी का बकाया है। यानी अधिकारी चाहते तो अगस्त में हालात भयावह होने से चार महीने पहले ही बकाए का एक बड़ा हिस्सा भुगतान कर सकते थे।

बड़ों को बख्शा, छोटे जिम्मेदार पर कार्रवाई :
बजट होने के बावजूद भुगतान न होने के लिए प्रिंसिपल डॉ़ आरके मिश्रा के अलावा सीधे तौर पर महानिदेशक और प्रमुख सचिव भी जिम्मेदार हैं। पिछली सरकार में महानिदेशक रहे डॉ़ बीएन त्रिपाठी के कार्यकाल में ही बजट लैप्स हुआ था। इसके बाद वर्तमान महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता भी बजट जारी करने के पांच दिन तक भुगतान नहीं करा सके। इस बीच दोनों सरकारों में महकमे की प्रमुख सचिव अनीता भटनागर जैन थीं। उन्हें पिछली और वर्तमान सरकार के दौरान बीआरडी मेडिकल कॉलेज के हर डिवेलपमेंट की जानकारी थी।

यूं जारी होता है बजट :
वित्त विभाग हर विभाग के प्रमुख सचिव से उनके अधीन आने वाले विभागों के लिए जरूरी बजट मांगता है। इसके बाद प्रमुख सचिव महानिदेशक सभी प्रिंसिपलों से उनकी जरूरत का ब्योरा मांगते हैं। प्रिंसिपलों की तरफ से आने वाले प्रस्ताव महानिदेशक प्रमुख सचिव को सौंपते हैं और वहां कॉलेजों की डिमांड से वित्त विभाग को अवगत करा दिया जाता है। इसके बाद बजट जारी होता है, जिसे प्रमुख सचिव महानिदेशक के जरिए कॉलेजों को आवंटित कर देते हैं। यह बजट ट्रेजरी से प्रिंसिपल प्राप्त कर सकते हैं।

ऑक्सीजन सप्लाई से जुड़ी सभी बिंदुओं की जांच चल रही है। कमीशनखोरी के लिखित आरोप मिलें तो उनकी भी जांच करायी जाएगी। पीएमओ से कमीशनखोरी की जांच के लिए आए पत्र की जानकारी मुझे नहीं है। ऐसा कोई पत्र आया है तो उसका संज्ञान लेकर जांच करायी जाएगी।
आशुतोष टंडन, चिकित्सा शिक्षा मंत्री

5 अगस्त को जारी हो गया था 484 करोड़, 60 लाख बकाया नहीं चुका सके

(रणविजय सिंह : पार्ट टू, 13 अगस्त)

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन गैस का 60 लाख रुपये बकाया न चुकाने वाले चिकित्सा शिक्षा विभाग के लिए पांच अगस्त को ही 484 करोड़ 12 लाख 29 हजार रुपये का बजट जारी हो गया था। इसके बावजूद प्रमुख सचिव डॉ़ अनीता भटनागर जैन, महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता और प्रिंसिपल डॉ़ राजीव कुमार मिश्रा समेत दूसरे जिम्मेदार अधिकारी 10 अगस्त तक ऑक्सीजन का बकाया नहीं चुका सके। इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि इस साल 31 मार्च को मेडिकल कॉलेजों के लिए मिला 90 करोड़ रुपये इस्तेमाल न हो सकने के कारण वापस (लैप्स हो गया) चला गया। इसमें से गोरखपुर मेडिकल कॉलेज को 75 लाख रुपये आवंटित हुए थे। आला अधिकारी चाहते तो वापस गए इस बजट से समय रहते ऑक्सीजन का बकाया चुका सकते थे। आरोप है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को तय कमीशन न मिलने के चलते शासन से मिले बजट का आवंटन मेडिकल कॉलेजों को नहीं हुआ।
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने से हुई मौतों ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में कमीशनखोरी से पर्दा उठा दिया है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अधिवक्त मोहम्म्द शारिक खान का आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों के लिए बजट आवंटित करने से पहले आला अधिकारियों ने पांच फीसदी कमीशन तय कर दिया था। यही वजह है कि बजट बिना इस्तेमाल हुए वापस चला गया लेकिन मेडिकल कॉलेजों को उनके लिए जरूरी बजट नहीं दिया गया। इस संबंध में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की तरफ से मुख्य सचिव और पीएमओ तक में शिकायत दर्ज करायी गई थी। इसके बाद पीएमओ ने इस मामले में मुख्य सचिव को जांच के लिए आदेश जारी हुआ और मुख्य सचिव ने आरोपों की जद में आ रहीं प्रमुख सचिव डॉ़ अनीता भटनागर जैन को ही जांच का आदेश दे दिया। मामले की जांच अब तक शुरू नहीं हो सकी। इस बीच मेडिकल कॉलेजों के लिए शासन से जारी हुए बजट को पुराने तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए आवंटित किया जा रहा था। यही वजह है कि पिछले वित्तीय वर्ष में जहां 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए थे, वहीं इस बार आवंटित बजट भी कॉलेजों को भेजने में जानबूझकर लेटलतीफी जारी है।

ऑक्सीजन का बकाया था तो क्यों वापस चला गया 90 करोड़ :
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में ऑक्सीजन गैस का 60 लाख रुपए बकाया था इसके बावजूद चिकित्सा शिक्षा विभाग से 90 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल हुए वापस चले गए। ऐसे में सवाल यह है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों ने इस बजट का इस्तेमाल करते हुए बकाया भुगतान क्यों नहीं किया? सूत्रों के मुताबिक 31 मार्च तक महानिदेशालय और विभाग के दूसरे आला अधिकारी यह बजट कॉलेजों को भेजने का फैसला नहीं कर सके। मेडिकल कॉलेजों में निर्माण से जुड़े कई मदों का बजट शासन ने 10 मार्च को जारी कर  दिया गया था। इसके बाद महकमे के अधिकारियों ने इसे समय रहते आवंटित करने में कोई तेजी नहीं दिखायी।

यूं जारी होता है बजट :
वित्त विभाग हर विभाग के प्रमुख सचिव से उनके अधीन आने वाले विभागों के लिए जरूरी बजट मांगता है। इसके बाद प्रमुख सचिव महानिदेशक सभी प्रिंसिपलों से उनकी जरूरत का ब्योरा मांगते हैं। प्रिंसिपलों की तरफ से आने वाले प्रस्ताव महानिदेशक प्रमुख सचिव को सौंपते हैं और वहां कॉलेजों की डिमांड से वित्त विभाग को अवगत करा दिया जाता है। इसके बाद बजट जारी होता है, जिसे प्रमुख सचिव महानिदेशक के जरिए कॉलेजों को आवंटित कर देते हैं। यह बजट ट्रेजरी से प्रिंसिपल प्राप्त कर सकते हैं।

बात करने से बचते रहे :
हादसे के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग की प्रमुख सचिव अनीता भटनागर जैन और महानिदेशक डॉ़ केके गुप्ता बात करने से बचते रहे। कई बार फोन करने के बावजूद इन अधिकारियों ने फोन नहीं उठाया। इसके बाद इन्हें एसएमएस करके बजट आवंटित होने के बावजूद भुगतान होने का कारण जानने की कोशिश हुई। इसके बावजूद अधिकारी चुप्पी साधे रहे। मामले को लेकर चिकित्सा शिक्षा के कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन से भी संपर्क की कोशिश बेकार साबित हुई।

ये हैं जिम्मेदार :
प्रमुख सचिव : अनीता भटनागर जैन
महानिदेशक : डॉ़ केके गुप्ता
पूर्व महानिदेशक : डॉ़ बीएन त्रिपाठी
प्रिंसिपल : डॉ़  राजीव कुमार मिश्रा

जिनके पास ऑक्सीजन प्लांट ही नहीं, वे कर रहे अस्पतालों में सप्लाई

(रणविजय सिंह : पार्ट वन, 12 अगस्त)

राजधानी के सरकारी अस्पतालों में पिछले दो साल से ऐसी एजेंसी ऑक्सीजन सप्लाई कर रही है, जिसके पास इस समय मैनुफैक्चरिंग प्लांट ही नहीं है। सूत्रों के मुताबिक एजेंसी अपने प्लांट में ऑक्सीजन बनाने के बजाय उड़ीसा के राउरकेरा जिले से टैंकरों में ऑक्सीजन खरीदकर बाराबंकी में लाती है और वहां इसे सिलेंडरों में भरकर अस्पतालों तक पहुंचाया जाता है। ऐसे में अगर उड़ीसा या वहां तक पहुंचने के रास्ते में कोई बाधा हो जाए तो सप्लाई ठप हो जाएगी। इसके बावजूद आला अधिकारी पिछले दो साल से बिना टेंडर कराए अपनी चहेती एजेंसी से ही ऑक्सीजन सप्लाई करवा रहे हैं। आरोप है कि अधिकारी और एजेंसी के बीच गठजोड़ के चलते अस्पतालों में फर्जी सप्लाई दिखाकर पिछले दो वर्ष के दरम्यान हर महीने लाखों के वारे न्यारे किए जाते रहे, जिसका खुलासा एनबीटी ने इस साल जनवरी में ही कर दिया था। जांच में इसकी पुष्टि होने के बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।
स्वास्थ्य महानिदेशालय की तरफ से सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए टेंडर कराए जाने का नियम है। आखिरी बार वर्ष 2014 में टेंडर हुआ था। सिविल अस्पताल के लिए हुए टेंडर में जिस एजेंसी का चयन हुआ, उसने मैन्यूफैक्चरिंग लाइसेंस दिखाया था। इसके बाद वर्ष 2015 और 2016 में टेंडर हुआ, जिसमें कई कंपनियों ने काफी कम दर पर ऑक्सीजन सप्लाई देने की इच्छा जतायी लेकिन किसी न किसी बहाने टेंडर निरस्त कर दिए गए। टेंडर निरस्त होने के बाद पुरानी कंपनी को तय रेट पर ऑक्सीजन सप्लाई का काम दिया जाता रहा। इस बीच एजेंसी अस्पतालों में जितने सिलेंडर की सप्लाई दिखा रही थी, उसका 50% तक ही सप्लाई हो रही थी। एनबीटी ने राजधानी के तीन बड़े अस्पतालों सिविल, लोहिया और बलरामपुर अस्पताल में स्टिंग कर इसे बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा किया था। इसके बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव अरुण सिन्हा ने महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह को जांच कराने का आदेश दिया। महानिदेशक को जून महीने में ही जांच रिपोर्ट मिल गई थी लेकिन अब तक एजेंसी और अस्पताल के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। इस बीच नया खुलासा यह हुआ है कि इस एजेंसी के पास मैन्युफैक्चरिंग प्लांट ही नहीं है। सूत्रों के मुताबिक बाराबंकी में इस एजेंसी का प्लांट था, जिसे काफी पहले ही बंद किया जा चुका है।

पता ही नहीं था कि प्लांट है या नहीं :
एनबीटी से बात करते हुए उन्होंने पहले तो दावा किया कि इस समय ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी के पास मैन्युफैक्चरिंग प्लांट है लेकिन एक घंटे बाद उन्होंने इसकी पुष्टि न होने की बात कही। महानिदेशक यह बताने में भी असमर्थ थे कि तीन साल पहले किन शर्तों के आधार पर ऑक्सीजन सप्लाई का टेंडर हुआ था। इसके बाद लगातार दो साल से क्यों टेंडर रद करना पड़ रहा है? इसकी जानकारी भी अधिकारी नहीं दे सके।

हादसा हुआ तो ई टेंडरिंग की याद आयी :
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई में गड़बड़ी के चलते हुई मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग को ई टेंडरिंग की याद आयी है। महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह ने सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए ई टेंडरिंग करवाने का दावा किया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में सभी को आदेश जारी किया जा चुका है। जल्द ही ई टेंडरिंग कर ऑक्सीजन सप्लाई के लिए एजेंसियों का चयन किया जाएगा।

दाखिलों में धांधली का आरोप, एडमिशन ऑडिट कराने की मांग

(रणविजय सिंह : पार्ट थ्री, 25 सितंबर)

खेल कोटे से हुए दाखिलों पर सवाल उठने के बाद लविवि के छात्र नेता और छात्र संगठनों ने एडमिशन ऑडिट कराए जाने की मांग शुरू कर दी है। छात्रसंघ और दूसरी मांगों को लेकर पिछले एक सप्ताह से धरने पर बैठे आंदोलनकारी छात्रों ने फर्जी दाखिलों के लिए सीधे तौर पर कुलपति और प्रवेश समन्वयक को जिम्मेदार ठहराया है। छात्र संगठनों के मुताबिक इस साल पहले पीएचडी फिर एलएलएम और अब खेल कोटे से स्नातक और पीजी में हुए 30 संदिग्ध दाखिलों ने इस मामले में आला अधिकारियों की मिलीभगत से पर्दा उठा दिया है।

आज दाखिले तो सत्यापन 30 दिन बाद क्यों ?
एसएफआई के विवि प्रभारी वैभव देव ने एथलेटिक असोसिएशन और प्रवेश समन्वयक की भूमिका पर सवाल उठाया है। उन्होंने पूछा कि जब दाखिले सितंबर में हुए हैं तो मूल दस्तावेजों का सत्यापन अक्टूबर में कराने के पीछे क्या मकसद है? वैभव के मुताबिक पिछले वर्षों में फर्जी खेल सर्टीफिकेट बनाकर दाखिले होने के मामले आ चुके हैं। ऐसे में इस साल मामला खुलने के बाद अधिकारियों ने संदिग्ध छात्रों को सर्टीफिकेट बनवाने का समय दिया है, ताकि गड़बड़ी पर पर्दा डाला जा सके।

स्नातक में विषय आवंटन में भी फर्जीवाड़ा :
एबीवीपी के प्रांत संगठन मंत्री सत्यभान सिंह भदौरिया ने स्नातक दाखिलों में विषय आवंटन किए जाने पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनके मुताबिक काउंसलिंग के वक्त टॉप मेरिट वाले  छात्रों को डिमांड वाले विषय खतम होने की भ्रामक सूचना दे दी गई और बाद में अधिकारियों ने अपने चहेतों को यह विषय आवंटित कर दिए। आरोप है कि शाम को काउंसलिंग खतम होने के बाद गुपचुप तरीके से विषय आवंटन किए गए।

विभागाध्यक्षों ने चहेतों को करायी पीएचडी :
सपा छात्रसभा की छात्रनेता पूजा शुक्ला ने इस साल पीएचडी में फर्जी तरीके से दाखिलों के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि इस साल दाखिले खतम होने के बाद गुपचुप तरीके से सोशल वर्क, हिंदी और पालीटिकल साइंस में विभागाध्यक्षों ने अपने स्तर से दाखिले कर लिए। तीन महीने पहले इसका खुलासा होने के बावजूद अब तक आला अधिकारी इन दाखिलों को लेकर कोई भी जवाब देने को तैयार नहीं हैं।


खेल कोटे से दाखिलों को लेकर मामला जानकारी में आया है। छात्रों की तरफ से एडमिशन ऑडिट का मांगपत्र अभी मुझे मिला नहीं है। इस बारे में कुलपति से बात करके ही कोई फैसला हो सकता है।
प्रो़ एनके पांडेय, प्रवक्ता
लविवि

अधिकारियों ने माना नहीं हुआ सत्यापन, 30 दिन बाद करेंगे जांच

 (रणविजय सिंह, 22 सितंबर : पार्ट टू)

बिना मूल दस्तावेजों की जांच कराए खेल कोटे से लविवि में हुए दाखिलों में नया खुलासा हुआ है। लविवि एथलेटिक असोसिएशन के पदाधिकारियों ने अभ्यर्थियों के मोबाइल पर दस्तावेजों की व्हाट्सऐप फोटो देखकर ही अप्रूवल दे दिया था। दाखिलों में गड़बड़ी का खुलासा होने के बाद एथलेटिक असोसिएशन और प्रवेश से जुड़े अधिकारियों में हड़कंप मच गया। एथलेटिक असोसिएशन के महासचिव डॉ़ आरबी सिंह ने काउंसलिंग से पहले कुछ अभ्यर्थियों के दस्तावेजों का सत्यापन ना होने की बात मानते हुए बताया कि इन अभ्यर्थियों ने व्हाट्सऐप पर फोटो दिखायी थी। हालांकि अब इन्हें मूल दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है।
लविवि के स्नातक और पीजी पाठ्यक्रमों में काउंसलिंग से पहले दस्तावेजों के सत्यापन के दो मानक हैं। प्रवेश से जुड़े अधिकारी बिना सिफारिश के आने वाले अभ्यर्थियों से काउंसलिंग के वक्त ही सभी मूल दस्तावेज लाने को कहते हैं और एक भी कागज कम होने पर दाखिला निरस्त कर दिया जाता है। वहीं खेल कोटे से सिफारिशी दाखिलों के लिए यह सख्ती गायब हो जाती है। इस साल खेल कोटे से हुए 30 दाखिलों में गड़बड़ी का खुलासा होने के बाद मानकों मे यह दोहरापन खुलकर सामने आ गया है। आलम यह है कि सिफारिशी दाखिलों के दस्तावेजों का सत्यापन व्हाट्सऐप पर भी कर दिया गया। यही नहीं इसके बाद मूल दस्तावेजों की जांच करने की जहमत भी नहीं उठायी गई। अब मामले का खुलासा हुआ तो उसके बाद भी तुरंत जांच कराने के बजाय संदिग्ध अभ्यर्थियों को एक महीने का समय दे दिया गया। इस बीच दाखिलों में फर्जीवाड़ा का खुलासा होने पर एबीवीपी के प्रांत संगठन मंत्री सत्यभान भदौरिया ने एलयू कुलपति डॉ़ एसपी सिंह और प्रवेश समन्वयक प्रो़ अनिल मिश्रा की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि एलयू प्रशासन फर्जी खेल सर्टीफिकेट के सहारे दाखिला पाए कुछ छात्रों को बचाने में जुट गया है।

यह बात सही है कि सभी छात्रों के मूल दस्तावेजों का सत्यापन नहीं हो सका था। इनमें से कुछ ने व्हाट्सऐप पर अपने दस्तावेज दिखाए थे। कहीं भी गड़बड़ी की आशंका नहीं है। हालांकि ऐसे अभ्यर्थियों को एक महीने का समय दिया गया है।
डॉ़ आरबी सिंह, महासचिव
लविवि  एथलेटिक असोसिएशन

केवल फोटोकॉपी देखकर लगा दिया गया स्पोर्ट्स कोटा, हो गए 30 दाखिले

 (रणविजय सिंह, 20  सितंबर : पार्ट वन)

लखनऊ विश्वविद्यालय में स्पोर्ट्स कोटे से बिना प्रवेश प्रक्रिया और मेरिट के किए गए 30 दाखिलों पर सवाल उठने लगे हैं। एलयू एथलेटिक असोसिएशन के अधिकारियों ने इन अभ्यर्थियों के ओरिजनल सर्टीफिकेट देखने की जरूरत तक नहीं समझी और केवल फोटो कॉपी देखकर कर सत्यापन कर दिया। इसके बाद फोटो कॉपी को ही सही मानते हुए दाखिले भी हो गए। चौंकाने वाली बात यह है कि एलयू में 20 अगस्त के बाद दाखिले खतम हो गए थे लेकिन इन अभ्यर्थियों ने 5 से 7  सितंबर के बीच कैशियर में फीस जमा की है।
खेल कोटे से हुए दाखिलों में गड़बड़ी का खुलासा होने के साथ ही एलयू एथलेटिक असोसिएशन के अधिकारियों को जवाब नहीं सूझ रहा है। एनबीटी की पड़ताल के मुताबिक जिन 30 अभ्यर्थियों को खेल कोटे से सीधे दाखिला दिया गया है, उनमें तीन अभ्यर्थियों के दस्तावेज फर्जी होने की आशंका हैं। बाकी कई अभ्यर्थियों ने जो दस्तावेज लगाए हैं, उनमें से कईयों के पास सीधे दाखिले लायक योग्यता नहीं है इसके बावजूद अधिकारियों ने उन्हें इसका लाभ दे दिया। एक अभ्यर्थी को केडी सिंह स्टेडियम में प्रैक्टिस करने के नाते दाखिला दे दिया गया, जबकि ऐसी सुविधा केवल साई जैसे संस्थान के खिलाड़ियों को मिलती है।
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कुलपति कार्यालय में अलग से लिए गए थे आवेदन :
खेल कोटे के तहत सीधे दाखिले के लिए कुलपति कार्यालय ने आवेदन लिए थे। यहां से अभ्यर्थियों की सूची और आवेदन फॉर्म एथलेटिक असोसिएशन को भेजे गए। नियमों के तहत यहां इन अभ्यर्थियों के मूल दस्तावेजों की जांच होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिछले साल तक खेल कोटे में गड़बड़ी के आरोपी एक शिक्षक ने इसमें अहम भूमिका निभायी और सभी आवेदन फॉर्म बिना दस्तावेजों का सत्यापन कराए आगे बढ़ा दिए गए। यहां से यह फॉर्म वापस कुलपति कार्यालय भेजे गए और वहां से दाखिले पर मुहर लगाकर प्रवेश समन्वयक को भेज दिया गया। यहां भी किसी अभ्यर्थी के मूल दस्तावेज नहीं देखे गए और सभी को उनके पसंदीदा विषय अलॉट कर दिए गए।

खेल कोटे के तहत जिन भी अभ्यर्थियों को सीधे दाखिला दिया गया, उनके मूल दस्तावेज मेरे सामने नहीं आए और ना ही मैने इनकी जांच की। एथलेटिक असोसिएशन से अप्रूवल हो चुका था लिहाजा दाखिला दे दिया गया।
प्रो़ अनिल मिश्रा, प्रवेश समन्वयक
लविवि

कुलपति कार्यालय से 30 अभ्यर्थियों की सूची और फॉर्म मेरे पास अप्रूवल के लिए आए थे। मैने अप्रूवल दे दिया लेकिन किसी भी फॉर्म में मूल सर्टीफिकेट नहीं थे। मैने काउंसलिंग से पहले इनकी जांच का नोट लगा दिया था। मेरे सामने अब तक इन अभ्यर्थियों के मूल दस्तावेज नहीं आए हैं।
प्रो़ संजय गुप्ता, चेयरमैन
एलयू एथलेटिक असोसिएशन

तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपन...