Sunday, 8 September 2019

25 हजार वोल्ट की 12 लाइनों के ऊपर से बना दिया 105 मीटर लंबा पुल


(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 8, 19 जनवरी 2019)

कान में फोन लगाए चीफ इंजीनियर के चेहरे पर परेशानी के भाव साफ पढ़े जा सकते थे। फोन काटने से पहले ही उनके सामने बैठे साथी इंजीनियरों को किसी बड़ी परेशानी का आभास हो चुका था। 'क्या हुआ सर...' सवाल सुनते ही चीफ इंजीनियर ने मायूसी भरे लहजे में कहा 'मवैया से दुर्गापुरी के बीच ट्रैक का अलाइनमेंट बदलना पड़ेगा। रेलवे अपनी कॉलोनी के भीतर से जा रहे ट्रैक को मंजूरी देने को तैयार नहीं। मंजूरी मिल जाती तो उनके ट्रेनिंग सेंटर के पास से एलेवेटेड ट्रैक आसानी से बन जाता लेकिन अब'। इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी करते साथी इंजीनियर ने उनकी बात काटते हुए कहा '...लेकिन अब क्या सर, जैसे कॉलोनी के भीतर से बनाते, वैसे ही अलाइनमेंट बदलने के बाद बनाएंगे'
'लेकिन अब ये है कि पहले हमें कॉलोनी के भीतर से जगह मिल रही थी, जहां काफी जमीनें खाली पड़ी थीं। उनपर हमारी क्रेनें खड़ी हो सकती थीं। अब नया अलाइनमेंट सड़क की तरफ जा रहा है। यहां हमें ट्रैफिक भी देखना है और क्रेनें खड़ी करने के लिए जगह भी तलाशनी है। इससे भी बड़ी दिक्कत यह है कि हमें 25 हजार वोल्ट की 12 लाइनों के ऊपर से बिना पिलर 105 मीटर लंबा पुल बनाना है। इस बीच एक भी दिन नीचे से जा रही ट्रेनों को रद्द करने या उन्हें डायवर्ट करने की गुंजाइश नहीं है। यानी रोजना 25 हजार वोल्ट की 12 लाइनों के नीचे दर्जनों ट्रेनें चलती रहेंगी और ऊसके ऊपर हमें बिना रुके काम करते रहना होगा' एक ही सांस में चीफ इंजीनियर ने नए अलाइनमेंट के कारण अचानक पैदा हुई चुनौती के बारे में बता दिया। पूरी बात सुनकर इंजीनियरों के माथे पर भी बल पड़ गए। 'नीचे से जा रही ट्रेनों को कुछ दिनों के लिए तो रोका जा सकता है, इसमें क्या दिक्कत है...' मीटिंग में बैठे इंजीनियर ने झुंझलाते हुए पूछा। इसपर चीफ इंजीनियर ने बताया कि कुछ दिनों के लिए रद्द होने वाली ट्रेनों के कारण रेलवे को होने वाले नुकसान की भरपायी मेट्रो को करनी पड़ेगी, जो कि बजट संकट के चलते मुमकिन नहीं है। इसके अलावा ऐसा होने के बाद उनकी जितनी भी ट्रेनें लेट चलेंगी, उन सबका जिम्मा मेट्रो के सिर पर ही फोड़ा जाएगा।

स्पीड़ कम करायी और फायर प्रूफ तिरपाल लगाकर किया काम :
इसके बाद चीफ इंजीनियर ने रेलवे के साथ बात करके यहां से गुजरने वाली ट्रेनों की स्पीड़ कम करवाने का अनुरोध किया, जिसे मंजूर कर लिया गया। इसके बाद रेलवे के 12 ट्रैक के दोनों तरफ 105 मीटर के अंतर पर दो पिलर बनाकर खड़े कर दिए गए। इन पिलर्स के बीच विशेष पुल (बिना पिलर के बनने वाला पुल) बनाने का काम शुरू हुआ। दोनों तरफ से रोजाना दो मीटर कांक्रीट का हिस्सा आगे की तरफ बनाकर छोड़ दिया जाता और उसमें मजबूती आने के बाद फिर उसके आगे दो मीटर की ढलाई की जाती थी। इसी तरीके से 30, 40 या 50 नहीं पूरे 105 मीटर लंबा पुल बिना नीचे से किसी पिलर का सहारा लिए बनाया जाना था। जरा सी चूक से यह पूरा हिस्सा रेलवे ट्रैक पर गिरता और ऐसा होने पर रेलवे ट्रैक के साथ ही 25 हजार वोल्ट की लाइन भी नहीं बचती। इन तमाम चुनौतियों के बीच रेलवे ट्रैक के ऊपर काम शुरू हुआ तो नई समस्या खड़ी हो गई। मेट्रो ट्रैक पर चल रहे काम के दौरान नीचे पानी गिरने से 25 हजार वोल्ट का करंट ऊपर आने की आशंका जतायी जाने लगी। ऐसा होने पर ऊपर काम कर रहे मजदूरों की जान खतरे में पड़ जाती, लिहाजा नीचे तिरपाल बांधकर काम शुरू हुआ। कुछ दिनों बाद ऊपर हो रही वेल्डिंग की चिंगारी से तिरपाल में जगह जगह छेद हो गया। इसकी जानकारी होने के बाद इंजीनियरों ने काम रुकवाकर नीचे फायर प्रूफ तिरपाल बंधवाया ताकि चिंगारी से तिरपाल में छेद ना हो और ऊपर से पानी नीचे बिजली के तार पर ना गिरे। इन तमाम एहतियात के बीच दोनों पिलर की तरफ से हवा में दो दो मीटर कांक्रीट का पुल बनता रहा। एक महीने बाद दोनों तरफ से बनकर बढ़ रहा पुल ठीक बराबर एक दूसरे से मिल गया। ना एक इंच ऊपर ना एक इंच नीचे।

अवैध कब्जेदारों को पैसा देकर हटाया :
नए अलाइनमेंट में रेलवे ट्रैक के बाहर बनने वाले पिलर के लिए जो जगह मिली, वहां बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से झुग्गियां बनी हुई थीं। इन्हें हटाने के लिए रेलवे की तरफ से अभियान चलाया जाना था लेकिन उसमें काफी समय लग सकता था। ऐसे में मेट्रो की तरफ से उन्हें अभियान का खौफ दिखाते हुए अपने आप हटने पर मुआवजे का आश्वासन दिया गया। इसपर झुग्गी वाले अपने आप वहां से हट गए।

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