Sunday, 15 September 2019

सर्जिकल स्ट्राइक से कम नहीं था जर्जर इमारतों से 16 इंच दूर खोदायी करना

(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 9, 4 फरवरी 2019)

'जमीन के नीचे मेट्रो रूट की सुरंग से आगे जैसे ही स्टेशन के लिए जमीन खोदी जाएगी तो उसके आसपास की मिट्टी खाली हुए हिस्से की तरफ धंसेगी। ऐसा हुआ तो सुरंग के ऊपर सड़क के दोनों तरफ बनी इमारतों का बचना मुश्किल है। इस हादसे की आशंका को टालने के लिए सड़क के दोनों तरफ करीब 100 मीटर लंबाई में जमीन की 20 मीटर गहरायी तक कांक्रीट की दीवार (डी वॉल) बनानी पड़ेगी। ऐसा होने से सुरंग खोदे जाने के बाद उसके अगल बगल की मिट्टी के धंसने की आशंका लगभग खतम हो जाएगी लेकिन...' इतना बोलने के साथ ही इंजिनियर ने चुप्पी साध ली।
चीफ इंजिनियर ने पूछा 'लेकिन क्या? अंडरग्राउंड स्टेशन बनाते समय ऐसा करना पड़ेगा, यह तो पता ही था।' इस पर इंजिनियर ने परेशान लहजे में जवाब दिया 'पहले से पता था कि यह करना पड़ेगा लेकिन यह नहीं पता था कि जर्जर इमारतों से 16 इंच की दूरी पर खोदायी कर डी वॉल बनानी पड़ेगी' कुछ देर रुककर इंजीनियर ने फिर बोलना शुरू किया 'बिना डी-वॉल बनाए यहां अंडरग्राउंड स्टेशन के लिए जमीन के नीचे काम शुरू नहीं हो सकता और सड़क के ऊपर दोनों तरफ की जर्जर इमारतों का जहां से दरवाजा खुलता है, ठीक वहीं से 'डी वॉल' के लिए खोदायी करनी पड़ेगी।' सारी बात सुनने के बाद चीफ इंजिनियर को असल परेशानी का आभास हुआ। गंभीर लहजे में धीरे से बोले 'यानी जमीन के नीचे सुरंग की खोदायी से भी इमारत के गिरने की आशंका और ऐसा होने से बचाने का उपाय करने पर भी इमारत के गिरने की आशंका...' इससे पहले कि चीफ इंजिनियर आगे कुछ बोलते इंजीनियर ने दोबारा बोलना शुरू कर दिया 'यही नहीं ऐसी इमारतों में एक निजी स्कूल भी है, जिसमें स्कूली बच्चों और स्टाफ के आने जाने का एक ही रास्ता है और वो सड़क के उसी हिस्से की तरफ खुलता है जहां हमें खोदायी करनी है। ना तो स्कूल की छुट्टी करायी जा सकती है और ना ही उसमें आने जाने का दूसरा रास्ता बनाया जा सकता है। काम के दौरान एक भी बच्चे या स्टाफ को चोट लगी तो दिक्कत हो जाएगी'। पूरी बात सुनकर चीफ इंजिनियर सोंच में पड़ गए कि आखिर ऐसा क्या किया जाए ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

इमारतों पर दर्जनों कैमरे लगाए, पल पल की रिपोर्ट :
जर्जर इमारतों के अलग अलग कोनों पर कैमरे और मॉनीटर लगा दिया गया। यह उपकरण इमारत की मामूली से मामूली हलचल को भी तुरंत पकड़ सकती थी। इन उपकरणों को प्रॉजेक्ट देख रहे सभी इंजिनियर और अधिकारियों के मोबाइल से जोड़ दिया गया। यही नहीं कंट्रोल रूम में भी चौबीसों घंटे इनके इनपुट पर नजर रखी जा रही थी। टनल की खोदायी से इमारत पर होने वाली कोई भी हरकत एक पल में इससे जुड़े सभी इंजिनियर और अधिकारियों को मिल जाती। इसके बाद इमारतों को मजबूती देने के लिए भीतर जैक लगाया गया। इसके बाद शुरू हुआ जमीन के नीचे 20 मीटर गहरायी तक कांक्रीट की 'डी वॉल' बनाने का काम। इसके लिए खोदायी के दौरान मिट्टी की कठोरता को कम करने के लिए इस्तेमाल होने वाले कैमिकल की मात्रा भी बढ़ा दी गई, जिसके कारण मिट्टी के धंसने की आशंका कम होती है।

अवकाश के दिन 24 घंटे में बना डाली डी वॉल :
हुसैनगंज अंडरग्राउंड स्टेशन के लिए स्कूल के गेट से सटे हुए हिस्से में खोदायी कर डी वॉल बनायी जानी थी, जिसमें तीन से चार दिन लग सकते थे। इसके बावजूद स्कूल छुट्टी करने को तैयार था और ना ही पीछे की तरफ से कोई रास्ता ही बनाने की गुंजाईश थी। ऐसे में इंजिनियरों ने रविवार के दिन स्कूल के सामने होने वाला सारा काम पूरा करने का फैसला किया। इसके लिए चारबाग में केकेसी के पास 10-10 मीटर की सरिया की चादरें बनायी गईं और उन्हें क्रेन की मदद से हुसैनगंज पहुंचाया जाता रहा और 24 घंटे तक लगातार जमीन खोदी जाती रही और जमीन के 20 मीटर गहरायी तक सरिया का जाल बिछाते हुए उसमें कांक्रीट भरकर डी वॉल बना दी गई। अगले दिन स्कूल आम दिनों की तरह खुला और वहां आने वाले स्कूली बच्चों को पता भी नहीं चला कि दरवाजे के ठीक सामने जमीन के नीचे इतना बड़ा काम हो गया।

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