Sunday, 15 September 2019

पाइलिंग धंसने के बावजूद गोमती को रोका ना डायवर्ट किया, बना दिया विशेष पुल

(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 12, 17 फरवरी 2019)

'सर, हनुमान सेतु की तरफ गोमती में बन रही एक पाइल धंस गई...' मोबाइल पर हांफते हुए इंजिनियर ने चीफ इंजिनियर को यह सूचना दी। खबर मिलते ही चीफ इंजिनियर मौके पर पहुंचे। दूर से ही उन्हें दिख गया कि गोमती में पानी बढ़ा हुआ है। कुछ करीब पहुंचे तो नदी में एक तरफ धंसी हुई पाइल और उसके चारों तरफ उफनाती गोमती साफ दिखायी देने लगी।
चीफ इंजिनियर के मौके पर पहुंचते ही वहां पहले से मौजूद एलएमआरसी और कार्यदायी संस्था एलएंडटी के इंजिनियर भी जमा हो गए। चीफ इंजिनयर कभी धंसी हुई पाइल को देखते और कभी गोमती के उफान को। उन्हें परेशान देख साथी इंजिनियर ने गोमती की धारा रोककर या उसे डायवर्ट करने के बाद ही नए सिरे से पाइलिंग की मजबूरी बतायी। इसपर चीफ इंजिनियर ने ऐसा करने की मंजूरी ना मिलने की बात कह सबकी परेशानी बढ़ा दी। कुछ देर चुप रहने के बाद इंजिनियरों ने पूछा 'इस समय यह सबसे बड़ी दिक्कत है, बिना इसका समाधान खोजे काम आगे कैसे बढ़ेगा? एक बार यह दिक्कत दूर हो गई तो मवैया से दुर्गापुरी की तर्ज पर यहां भी विशेष पुल बनाने में दिक्कत नहीं आएगी'। पूरी बात सुनने के बाद चीफ इंजिनियर ने कहा 'गोमती पर पाइलिंग के बाद विशेष पुल बनाना भी आसान नहीं है। दुर्गापुरी में विशेष पुल सीधा बनाया जाना था, जबकि गोमती पर 'एस' आकार में बनेगा। दुर्गापुरी में नीचे से जा रही ट्रेनें रोकने की अनुमति नहीं थी और यहां हमें गोमती के पानी को डायवर्ट करने या उसकी धारा को रोकने की अनुमति नहीं है'। इसपर साथी इंजिनियरों ने पूछा '...तो किया क्या जाए'

चार के बजाय छह पाइल बनाए गए :
गोमती पर विशेष पुल के लिए केवल दो पिलर बनाए जाने थे। अमूमन एक पिलर के लिए जमीन के नीचे करीब 20 मीटर गहरायी तक चार पाइल बनायी जाती है। गोमती नदी के हनुमान सेतु वाले हिस्से की तरफ बन रहे ऐसे ही चार पाइल में से एक पाइल धंसी थी। ऐसे में इसे मजबूत करने के लिए उसके चारों तरफ दो अतिरिक्त पाइल बिनायी गई। पाइल तक पाने पहुंचने से रोकने के लिए नदी से लगातार पंपिंग कर पानी निकाला जाता रहा। इसके साथ एक बड़े हिस्से को मिट्टी से पाटकर स्टील की अस्थायी दीवारें बनाई गईं और उसके भीतर लकड़ी के पट्टे लगाए गए। इन छह पाइल के गोमती नदी की सतह वाले सिरे पर पाइल कैप बना और उसके ऊपर पिलर बनाने का काम शुरू हुआ।

'कैंटी लीवर' तकनीक से बना एस आकार का पुल :
गोमती के दोनों किनारों पर पिलर बनकर तैयार होने के बाद कैंटी लीवर तकनीक से इनके बीच पुल बनाया जाना था। दोनों पिलर्स के बीच 87 मीटर की दूरी थी और इनके ऊपर कांक्रीट का पुल बनाया जाना था। कैंटी लीवर तकनीक का इस्तेमाल करते हुए दोनों पिलर्स के बीच हवा में दो दो मीटर कांक्रीट का पुल बनाया जाता रहा और जब वो मजबूत हो जाते तो उनके आगे इतना ही नया ढांचा बनाकर उसके मजबूत होने का इंतजार किया जाता। हर दो मीटर आगे बढ़ने के लिए तीन दिन लग रहे थे। करीब डेढ़ महीने तक इस एहतियात के साथ काम करते हुए दोनों तरफ से पुल आगे बढ़ते हुए बीच में मिल गया।

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