(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 9, 23 जनवरी 2019)
यहां चौबीस घंटे ट्रेनें आती रहेंगी और जाती रहेंगी। हर ट्रेन के साथ सैकड़ों लोगों की भीड़ सड़क पर आएगी। ट्रेनों की छुट्टी भी नहीं होती लिहाजा हमें ऐसा एक दिन भी नहीं मिलने वाला कि सड़क पर भीड़ कम हो। सड़क बंद करने या ट्रैफिक रोकने की अनुमति देने को रेलवे तैयार नहीं। यही नहीं स्टेशन के सामने से डायवर्जन मुमकिन नहीं क्योंकि पूरा शहर चारबाग स्टेशन तक पहुंचने का एक ही रास्ता जानता है और वो है मेन रोड, जिसके ऊपर मेट्रो स्टेशन बनाया जाना है। यहां भीड़ कभी थमेगी नहीं और किसी भी यात्री के सिर पर एक इंट भी गिरने का मतलब होगा, शहर का सबसे बड़ा हादसा।
इंजीनियरिंग के लिहाज सबसे आसान समझे जा रहे चारबाग स्टेशन पर ट्रैफिक से निपटने को लेकर सामने आयी इस चुनौती ने मेट्रो के चीफ इंजीनियर से लेकर आला अधिकारियों तक के माथे पर पसीना ला दिया था। इस बीच आलमबाग बस स्टेशन बंद होने के कारण वहां की सारी बसें चारबाग आने लगीं। इसका नतीजा हुआ कि चारबाग बस स्टेशन के सामने खड़ी होने वाली बसों से इस पूरे इलाके में बिना मेट्रो का काम शुरू हुए ही भीषण ट्रैफिक जाम होने लगा। ऐसे में चौबीस घंटे सड़क पर भीड़ के ऊपर हजारों टन का मलबा और भारी उपकरणों के साथ काम करना ऐसी चुनौती थी, जिसमें जरा सी चूक जानमाल के लिए बड़ा खतरा बन सकती थी और इसका असर प्रॉजेक्ट पर भी पड़ता।
रेलवे और ट्रैफिक पुलिस भी चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने मेट्रो स्टेशन के लिए सड़क बंद करने की मंजूरी देने को तैयार नहीं था। ऐसे में हादसे की आशंका को टालते हुए काम करने के लिए चीफ इंजीनियर ने नई योजना पर काम शुरू किया। इसके तहत सड़क के किनारे बनाए जा रहे पिलर्स की लोकेशन उन्होंने रेलवे स्टेशन की चहारदीवारी के भीतर तक कर दी, वहीं दूसरी तरफ के पिलर्स को सड़क से होटलों की तरफ खिसका दिया। ऐसा होने से पिलर्स के कारण घिर रही सड़क का काफी हिस्सा खाली हो गया। इसके बाद इस स्टेशन को तीन टुकड़ों में बनाने का फैसला हुआ। सबसे पहले चारबाग स्टेशन की चहारदीवारी की तरफ बेरिकेडिंग कर निर्माण कराया गया और फिर होटलों की तरफ बेरिकेडिंग कर काम हुआ और दोनों तरफ डिवाइडर की तरफ से ट्रैफिक चलता रहा। सड़क के दोनों तरफ दो हिस्सों में काम होने के बाद वहां से बेरिकेडिंग हटाकर ट्रैफिक उस तरफ खोल दिया गया और डिवाइडर की तरफ वाले हिस्से में बेरिकेडिंग कर मेट्रो स्टेशन के बीच वाले हिस्से में निर्माण कार्य शुरू हुआ। हालांकि इसके बाजवूद ट्रैफिक जाम की समस्या खड़ी होने लगी तो मेट्रो ने यहां करीब 30 से 50 बाउंसर लगाकर ट्रैफिक संभालना शुरू किया लेकिन इस बीच आलमबाग बस स्टेशन बंद होने से वहां की बसें चारबाग में आने लगीं। बस स्टेशन में जगह कम होने पर सारी बसें सड़क पर ही खड़ी हो रही थीं और चारबाग मेट्रो स्टेशन से निकलते ही सारा ट्रैफिक यहां ब्लॉक हो जा रहा था। इससे निपटने के लिए मेट्रो अधिकारियों ने परिवहन विभाग के साथ बात की और सड़क को बसों से खाली कराने पर सहमति बनी। बसों को अलग अलग जगहों पर खड़ा किया जाने लगा और हर बस अपने समय पर ही स्टेशन में दाखिल होती थी, जिसके कारण ट्रैफिक में सुधार हुआ। इस तरह की चुनौतियों से जूझते हुए एलएमआरसी ने छह महीने तक काम किया और बिना कोई हादसा हुए, काम पूरा कर लिया गया।
यहां चौबीस घंटे ट्रेनें आती रहेंगी और जाती रहेंगी। हर ट्रेन के साथ सैकड़ों लोगों की भीड़ सड़क पर आएगी। ट्रेनों की छुट्टी भी नहीं होती लिहाजा हमें ऐसा एक दिन भी नहीं मिलने वाला कि सड़क पर भीड़ कम हो। सड़क बंद करने या ट्रैफिक रोकने की अनुमति देने को रेलवे तैयार नहीं। यही नहीं स्टेशन के सामने से डायवर्जन मुमकिन नहीं क्योंकि पूरा शहर चारबाग स्टेशन तक पहुंचने का एक ही रास्ता जानता है और वो है मेन रोड, जिसके ऊपर मेट्रो स्टेशन बनाया जाना है। यहां भीड़ कभी थमेगी नहीं और किसी भी यात्री के सिर पर एक इंट भी गिरने का मतलब होगा, शहर का सबसे बड़ा हादसा।
इंजीनियरिंग के लिहाज सबसे आसान समझे जा रहे चारबाग स्टेशन पर ट्रैफिक से निपटने को लेकर सामने आयी इस चुनौती ने मेट्रो के चीफ इंजीनियर से लेकर आला अधिकारियों तक के माथे पर पसीना ला दिया था। इस बीच आलमबाग बस स्टेशन बंद होने के कारण वहां की सारी बसें चारबाग आने लगीं। इसका नतीजा हुआ कि चारबाग बस स्टेशन के सामने खड़ी होने वाली बसों से इस पूरे इलाके में बिना मेट्रो का काम शुरू हुए ही भीषण ट्रैफिक जाम होने लगा। ऐसे में चौबीस घंटे सड़क पर भीड़ के ऊपर हजारों टन का मलबा और भारी उपकरणों के साथ काम करना ऐसी चुनौती थी, जिसमें जरा सी चूक जानमाल के लिए बड़ा खतरा बन सकती थी और इसका असर प्रॉजेक्ट पर भी पड़ता।
रेलवे और ट्रैफिक पुलिस भी चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने मेट्रो स्टेशन के लिए सड़क बंद करने की मंजूरी देने को तैयार नहीं था। ऐसे में हादसे की आशंका को टालते हुए काम करने के लिए चीफ इंजीनियर ने नई योजना पर काम शुरू किया। इसके तहत सड़क के किनारे बनाए जा रहे पिलर्स की लोकेशन उन्होंने रेलवे स्टेशन की चहारदीवारी के भीतर तक कर दी, वहीं दूसरी तरफ के पिलर्स को सड़क से होटलों की तरफ खिसका दिया। ऐसा होने से पिलर्स के कारण घिर रही सड़क का काफी हिस्सा खाली हो गया। इसके बाद इस स्टेशन को तीन टुकड़ों में बनाने का फैसला हुआ। सबसे पहले चारबाग स्टेशन की चहारदीवारी की तरफ बेरिकेडिंग कर निर्माण कराया गया और फिर होटलों की तरफ बेरिकेडिंग कर काम हुआ और दोनों तरफ डिवाइडर की तरफ से ट्रैफिक चलता रहा। सड़क के दोनों तरफ दो हिस्सों में काम होने के बाद वहां से बेरिकेडिंग हटाकर ट्रैफिक उस तरफ खोल दिया गया और डिवाइडर की तरफ वाले हिस्से में बेरिकेडिंग कर मेट्रो स्टेशन के बीच वाले हिस्से में निर्माण कार्य शुरू हुआ। हालांकि इसके बाजवूद ट्रैफिक जाम की समस्या खड़ी होने लगी तो मेट्रो ने यहां करीब 30 से 50 बाउंसर लगाकर ट्रैफिक संभालना शुरू किया लेकिन इस बीच आलमबाग बस स्टेशन बंद होने से वहां की बसें चारबाग में आने लगीं। बस स्टेशन में जगह कम होने पर सारी बसें सड़क पर ही खड़ी हो रही थीं और चारबाग मेट्रो स्टेशन से निकलते ही सारा ट्रैफिक यहां ब्लॉक हो जा रहा था। इससे निपटने के लिए मेट्रो अधिकारियों ने परिवहन विभाग के साथ बात की और सड़क को बसों से खाली कराने पर सहमति बनी। बसों को अलग अलग जगहों पर खड़ा किया जाने लगा और हर बस अपने समय पर ही स्टेशन में दाखिल होती थी, जिसके कारण ट्रैफिक में सुधार हुआ। इस तरह की चुनौतियों से जूझते हुए एलएमआरसी ने छह महीने तक काम किया और बिना कोई हादसा हुए, काम पूरा कर लिया गया।
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