
'बापू भवन के सामने जिस जगह से सुरंग के लिए टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) खोदायी शुरू होनी है, उसके ठीक ऊपर मजार है। दूसरी तरफ सेवेंथ डे स्कूल और इससे कुछ दूरी पर मानसरोवर आई हॉस्पिटल। ना तो मजार हटायी जा सकती है और ना ही वहां आने वाले श्रद्धालुओं को ही रोका जा सकता है। स्कूल और अस्पताल के ठीक सामने से डी वॉल बनायी जानी है जिसके लिए ना तो स्टूडेंट्स को रोका जा सकता है और ना ही मरीजों के आने जाने पर पाबंदी लग सकती है...'
अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशन और टनल बना रहे टाटा गुलेरमक के इंजिनियर लखनऊ मेट्रो रेल कारपोरेशन के चीफ इंजिनियर को मौके की नजाकत से वाकिफ कराने के बाद चुप हो गए। चीफ इंजिनियर ने मुस्कुराते हुए कहा 'इसके अलावा जमीन के नीचे से जो नाला जा रहा है, उसे भी डायवर्ट करना है। हमारे डिजाइन के मुताबिक स्टेशन के ठीक ऊपर से नाला जा रहा है, जिसमें जरा सा झटका या दरार पड़ने पर सारा पानी टनल के भीतर आने लगेगा'। समाधान पूछने आए इंजिनियरों को चीफ इंजिनियर ने नई समस्या बताकर उनकी परेशानी बढ़ा दी। इसके बाद इस चुनौती से निपटने की कवायद शुरू करते हुए चीफ इंजिनियर ने टाटा गुलेरमक और एलएमआरसी इंजिनियरों के साथ बैठक की। इसमें तय हुआ कि ना तो मजार को हटाया जाएगा और ना ही स्कूल या अस्पताल को बंद करने की जरूरत है।
30 मीटर कच्चे नाले को कांक्रीट का बना दिया :
मेट्रो स्टेशन के ठीक ऊपर से जा रहे कच्चे नाले की सतह और उसके दो तरफ की दीवार को मजबूत करने का फैसला हुआ। इकसे लिए नाले के तीनों तरफ कांक्रीट की दीवार खड़ी की गई। इसके लिए सेवेंथ डे स्कूल की तरफ से नाले को डायवर्ट किया गया। यहां पाइप लगाकर नाले का पानी पंप की मदद से सामने की तरफ बस्ती के नाले में गिराया जाता रहा। इस बीच मेट्रो स्टेशन के ऊपर से जा रहे नाले को 30 मीटर लंबाई तक कांकीट का बना दिया गया। इसके बाद सेवेंथ डे स्कूल के सामने से नाले को इस कंक्रीट के नाले से जोड़ दिया गया और नाला पहले की तरह बहता रहा और इसके ठीक नीचे मेट्रो का स्टेशन बन गया। इसके बावजूद ना तो नाले से लीकेज हुआ और ना ही कभी इसमें दरार पड़ने की आशंका ही पैदा हुई।
7 बार बदला गया मजार तक आने जाने का रास्ता :
निर्माण कार्य के दौरान मजार को हटाना तो दूर एक दिन के लिए भी बंद नहीं किया गया। हालांकि यहां आने वालों की सुरक्षा के लिए सात बार डायवर्जन प्लान में बदलाव किया गया। मजार के ठीक नीचे टनल बोरिंग मशीन खोदायी शुरू कर चुकी थी लेकिन मजार पर इसका कोई असर नहीं होने दिया गया। यहां आने वालों के लिए कभी समाने तो कभी पीछे की तरफ से वैकल्पिक रास्ता बना दिया जाता था। महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चों तक की सुरक्षा का पूरा इंतजाम मेट्रो की तरफ से किया जाता रहा।
एक दिन में बना दी गई डी वॉल :
सेंवेंथ डे स्कूल और मानसरोवर आई हॉस्पिटल के सामने डी वॉल बनायी जानी थी, जिसमें सामान्य तौर पर तीन से चार दिन लगते हैं। हालांकि यहां ना तो स्टूडेंट्स को रोका जा सकता था और ना ही मरीजों के आने जाने पर पाबंदी लग सकती थी। ऐसे में इसे हुसैनगंज की तरह एक दिन में बनाने का फैसला हुआ। यहां गनीमत यह थी कि इमारतें ज्यादा पुरानी नहीं थीं। लिहाजा इन दोनों जगहों पर इमारत के काफी करीब से सड़क के किनाने जमीन के 20 मीटर नीचे तक डी वॉल बना दी गई।
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