
(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 7, 17 जनवरी 2019)
'रेलवे कॉलोनी में घरों के सामने लोग खड़े हैं... हमारे कर्मचारी, मजदूर और खोदायी की मशीनें देखते ही लोग नारेबाजी शुरू कर दे रहे हैं... जबरन मकान गिराए गए तो विवाद हो सकता है... ऐसे में कैसे काम होगा...' साथी इंजीनियर की बात सुनकर चीफ इंजीनियर ने परेशानी भरे लहजे में पूछा 'मेट्रो ने अपनी जमीन पर काम करने की अनुमति दे दी है तो फिर यह दिक्कत कैसे हो रही है' इस पर जवाब मिला कि रेलवे की जमीन पर काम करने की मंजूरी मिली है लेकिन वहां पक्के निर्माण तोड़ने की एनओसी देने को रेलवे के अधिकारी तैयार नहीं हैं।
रेलवे ने मवैया से दुर्गापुरी के बीच अपनी जमीन पर मेट्रो के पिलर बनाने की अनुमति तो दे दी थी लेकिन मकानों को तोड़ने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। इस बारे में एलएमआरसी और रेलवे के अधिकारियों के बीच कई मीटिंगें हुईं लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला। हर मीटिंग में रेलवे ने हर संभव मदद का आश्वासन दिया लेकिन अपने कर्मचारियों के मकानों को तोड़ने की अनुमति देने से पीछे हट गया। ऐसा करने पर कर्मचारियों के अलावा कर्मचारी नेताओं की नाराजगी अफसरों को झेलनी पड़ सकती थी। इस उहापोह में मेट्रो का काम रुकने की आशंका पैदा हो गई क्योंकि यहां पर डिजाइन में बदलाव करना भी मुमकिन नहीं था। चीफ इंजीनियर ने इन तमाम पहलुओं पर विचार करने के बाद एक बार फिर रेलवे के अधिकारियों से बात करने का फैसला किया। मीटिंग हुई लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात।
जिन्हें नोटिस नहीं मिली वो भी पहुंच गए मकान तुड़वाने :
मकान तोड़ने को रेलवे अधिकारी एनओसी देने को तैयार नहीं थे और बिना तोड़े एलेवेटेड रूट के लिए यहां पिलर बनाना संभव नहीं था। रेलवे अफसरों के साथ सहमति की कोई गुंजाइश नहीं थी। इस बीच चीफ इंजीनियर ने साथी इंजीनियरों को बुलाकर एक ऐसे उपाय पर काम करने का सुझाव दिया, जिसके सफल होने की उम्मीद किसी को नहीं थी। एक बार फिर मीटिंग का फैसला हुआ लेकिन इस बार रेलवे अफसरों के बजाय कॉलोनी में रहने वालों को बुलाया गया। सभी को आश्वासन दिया गया कि मकान का जितना हिस्सा टूटेगा, उतना मेट्रो बनाकर देगा। रेलवे के वर्षों पुराने मकानों में रहने वालों पर मेट्रो का यह दांव काम कर गया लेकिन तोड़ने के बाद मेट्रो कैसा निर्माण करेगा? इस सवाल को लेकर वहां रहने वालों के मन में काफी शंकाएं थीं। लोगों की इस चिंता को भांपते हुए मेट्रो ने रेलवे की अनुमति से पिलर के रास्ते में आ रहा एक खाली मकान के कुछ हिस्से को गिरा दिया। इसके कुछ दिनों के बाद ही उस मकान को इतने बेहतर तरीके से बनाकर तैयार किया कि पूरी कॉलोनी में इसकी चर्चा हो गई। कॉलोनी के जर्जर क्वाटरों में रहने वाले खाली पड़े मकान के उस हिस्से को देखने आने लगे, जो मेट्रो ने बनाकर दिया। इसके बाद तो मेट्रो रूट के दायरे में आने वाले रेलवे के जितने क्वाटरों को नोटिस जारी हुआ था, उससे ज्यादा लोग मेट्रो से इस बात की सिफारिश करने लगे कि जरूरत हो तो उनका मकान भी गिरा दिया जाए। महज कुछ दिनों के होमवर्क के बाद स्थितियां पूरी तरह मेट्रो के पक्ष में हो गईं। जहां एक इंट गिराने पर भी लोग मारपीट पर आमादा थे, वहीं इस उपाय के बाद लोगों ने खुद खड़े होकर अपने मकानों की पूरी चहादीवारी तक तुडवा दी।
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