
‘…तीन दिन से रुक-रुक कर लगातार बारिश हो रही है। …आलमबाग से सिंगार नगर, बदालीखेड़ा, हिंद नगर, विष्णुपुरी और टीपी नगर समेत कानपुर रोड के दोनों तरफ के दर्जनों मोहल्ले घुटनों तक पानी में डूबे हैं…। ऐसे में यू गर्डर इंस्टॉल करने के लिए इन मोहल्लों से जल निकासी के इस इकलौते नाले को बंद करने का मतलब समझते हैं आप?’ चीफ इंजिनियर के इस सवाल का जवाब कमरे में मौजूद किसी इंजिनियर के पास नहीं था। चीफ इंजिनियर ने ऐसी जगह तलाशने को कहा जहां क्रेन खड़ी कर गर्डर इंस्टॉल किया जा सके। इस पर सभी ने दो टूक कह दिया कि नाले के ऊपर क्रेन खड़ी करने के अलावा कोई चारा नहीं। दूसरी जगह से गर्डर इंस्टॉल करने के लिए ज्यादा क्षमता की क्रेनें लानी पड़ेंगी जो फिलहाल हमारे पास नहीं हैं। ऐसा हुआ तो देरी होना तय है। इससे पहले कि कोई कुछ बोलता साइट पर मौजूद इंजिनियर कमरे में दाखिल हुए और हांफते हुए बोले ‘सर…नाला धंस गया है। हमारी बेरिकेडिंग गिरते-गिरते बची है।’
यह सुनते ही चीफ इंजिनियर कुर्सी से झटके के साथ उठ खड़े हुए। परेशान लहजे में पूछा ‘नाला धंस गया लेकिन कैसे? उस पर तो काम शुरू भी नहीं हुआ था। किस तरफ से धंसा है? उसका पानी कहां जा रहा है?’ एक ही सांस में चीफ इंजिनियर ने कई सवाल पूछ डाले। मौके से आए इंजिनियर ने बताया कि मेट्रो स्टेशन के ठीक बगल में बन रहे बस स्टेशन की तरफ रीटेनिंग वॉल नहीं बनी थी, उसी तरफ नाले की दीवार धंस गई है। बस स्टेशन के लिए करीब 20 मीटर गहरायी तक मिट्टी खोदकर बेसमेंट बनाया जाना है, सारा पानी उसी में भर रहा है। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता चीफ इंजिनियर ने स्टेशन का काम देख रहे इंजिनियरों से पूछा कि स्टेशन के लिए सारे यू गर्डर कितने दिन में इंस्टॉल हो जाएंगे, जवाब मिला चार दिन में। धीरे से बोले ‘बन गया काम’।
स्टेशन का मैप टेबल पर बिछाते हुए उन्होंने समझाना शुरू किया ‘हादसा मेट्रो स्टेशन से कुछ दूरी पर आलमबाग बस स्टेशन के लिए हो रहे निर्माण स्थल के पास हुआ है। टूटे हुए नाले की दीवार चार दिन से पहले बन नहीं पाएगी। इस बीच हमारी तरफ वाले नाले में पानी नहीं आएगा। अब इसे बंद करने पर कोई हंगामा नहीं होगा। ऐसे में तुरंत बालू की बोरियों से नाला बंद कर दें और क्रेन इसके ऊपर खड़ी करके यू गर्डर इंस्टॉल करें।' इंजिनियरों ने ऐसा ही किया और सबसे कठिन माना जाने वाला यू गर्डर इंस्टॉल कर दिया गया।
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