Sunday, 11 August 2019

एक तरफ जमीन के नीचे नाला, दूसरी तरफ 33 हजार वोल्ट के तार

(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 5, 6 जनवरी 2019)

'जमीन के करीब दो मीटर गहरायी पर 33 हजार वोल्ट के तार बिछे हैं। बीएसएनएल की लाइन भी यहां से गुजर रही है, जिसके सैकड़ों तारों को हटाए बिना खोदायी मुमकिन नहीं। पिलर के लिए खोदायी की तय जगह से कुछ ही दूरी पर अंडरग्राउंड पार्किंग की दीवार है, जिसके टूटने से बड़ा हादसा हो सकता है। सड़क के दूसरी तरफ शिव मंदिर है, जिसके टूटने की आशंका में कई हिंदूवादी संगठन लगातार विरोध प्रदर्शन करते हुए काम रोकने की चेतावनी और धमकी दे रहे हैं...' आलमबाग मेट्रो स्टेशन के लिए खोदायी शुरू करने से पहले आ रही दिक्कतों के बारे में चीफ इंजीनियर को इतना बताकर इंजीनियर चुप हो गए।

पूरी बात सुनकर चीफ इंजीनियर ने धीरे से कहा 'कोई और भी दिक्कत हो तो बता दो...' इसपर पीछे खड़े इंजीनियर ने बताया कि सड़क के दूसरी तरफ जमीन के नीचे दो मीटर गहरायी पर अंडरग्राउंड नाला आ गया है, जिसे डायवर्ट करने के लिए वहां कोई जगह नहीं है और बिना ऐसा किए वहां पिलर बनाना मुमकिन नहीं।' नई समस्या सामने आने पर चीफ इंजीनियर ने पूछा 'यह बात काम शुरू करने से पहले पता क्यों नहीं चली' इसपर जवाब मिला कि नगर निगम, जल संस्थान, जल निगम या एलडीए की तरफ से यहां अंडरग्राउंड नाला होने की जानकारी ही नहीं दी गई थी।

काम शुरू नहीं हुआ और एक के बाद एक कई समस्याएं एक साथ सामने आ गईं। चीफ इंजीनियर अपने केबिन से निकलकर मौके पर पहुंच गए। साथी इंजीनियर से पूछा 'बीएसएनएल को तो दो महीने पहले पत्र भेजकर लाइटें हटाने को कहा गया था, उसका क्या हुआ?' साथी इंजीनियर ने उनकी तरफ पत्र बढ़ाते हुए बताया कि आज ही सुबह जवाब आया है। पत्र पढ़ने के बाद खीझते हुए चीफ इंजीनियर खीझते हुए बोले 'हम मेट्रो बनाने आए हैं, बीएसएनएल के तार बिछाने नहीं...'Ṣ साथी इंजीनियरों ने गुस्से की वजह पूछी तो पता चला कि आलमबाग में खोदायी होनी है लेकिन बीएसएनएल यहां से लेकर चारबाग तक लाइन बदलने की बात कह रहा है और इसके लिए आठ करोड़ रुपये का खर्च होने का प्रस्ताव भेज दिया है। एक तरफ अंडरग्राउंड पार्किंग थी और दूसरी तरफ व्यस्त सड़क, लिहाजा डिजाइन बदलकर पिलर्स की लोकेशन भी इधर उधर करना मुश्किल था। मामला जटिल होता देख चीफ इंजीनियर ने एक एक समस्या को हल करते हुए काम आगे बढ़ाने का फैसला किया। उन्होंने अंडरग्राउंड पार्किंग की तरफ लेसा और बीएसएनएल के तारों तक मैनुअली खोदायी कराने का फैसला किया। उन्होंने इंजीनियरों को समझाते हुए कहा 'दो मीटर या उससे ज्यादा तब तक कर्मचारियों से खोदायी करवायी जाए, जब तक लेसा और बीएसएनएल के तार दिखने ना लगें। उसके बाद पाइल के लिए जितनी जमीन चाहिए, उतने हिस्से से यह तार दाएं बाएं खिसकाकर उन्हें किसी चीज से दबा दो ताकि इसके नीचे 30 मीटर गहरायी तक रिग मशीन से होने वाली खोदायी बिना दिक्कत के हो सके। एक बार कांक्रीट की पाइल तैयार हो जाएगी तो यह तार अपने आप अपनी जगह ले लेंगे।' योजना पर काम शुरू हुआ और एक महीने के भीतर ही बिना तारों को हटाए पाइलिंग होने लगी। हालांकि सड़क के दूसरी तरफ नाला, मंदिर और दुकानदार अभी भी काम शुरू होने की राह का रोड़ा बने हुए थे। चीफ इंजीनियर ने मंदिर प्रबंधन और दुकानदारों के साथ सीधी बात करने का फैसला किया। दुकानदारों से दो टूक बात करते हुए उन्होंने कहा 'हमारे पास सीधे मुख्य सचिव के यहां से अनुमति है। अवैध निर्माण और अतिक्रमण के चलते किसी भी समय ध्वस्तीकरण कराया जा सकता है लेकिन आप लोग काम में सहयोग करें किसी भी तरह की तोड़फोड़ नहीं होगी। जितने दिन काम चलेगा, उतने दिन दुकानदारी कुछ कम होगी' हालात को भांपते हुए दुकानदार काम जारी रखने को लेकर सहमत हो गए।

'जगह तो मिल गई लेकिन नाले का क्या करेंगे?' इंजीनियरों ने खोदायी शुरू कराने से पहले पूछा। इसपर चीफ इंजीनियर ने जवाब देने के बजाय मुस्कुराते हुए पूछा 'टीपी नगर स्टेशन याद है या भूल गए?' कोई जवाब नहीं मिला तो चीफ इंजीनियर खुद ही बोल पड़े 'वहां ग्रीन गैस पाइप लाइन को बचाने के लिए ब्रिज तकनीक का इस्तेमाल हुआ था, यहां भी उसी तकनीक से पाइल बन सकते हैं।' नाले वाले हिस्से को छोड़ते हुए उसके दोनों किनारे पर पाइलिंग के लिए खोदायी हुई। इसके लिए व्यापारियों की दुकानों के दरवाजे तक बेरिकेडिंग कर जमीन के 30 मीटर गहरायी तक खोदायी करनी पड़ीं। दुकानें हमेशा के लिए टूट जाएं, इसके बजाय कुछ दिनों की दिक्कत झेलने को तैयार व्यापारी इसके लिए भी तैयार हो गए। तीसरी बड़ी चुनौती शिव मंदिर को बचाते हुए स्टेशन बनाने की थी। इसके लिए डिजाइन में बदलाव करने का फैसला हुआ, जिसे आला अधिकारियों ने मंजूरी दे दी।

पार्किंग के ऊपर बना दिया एक्जिट :
सिंगार नगर की तरह ही आलमबाग में भी इतनी पर्याप्त जगह नहीं मिली कि मेट्रो स्टेशन में दाखिल होने और बाहर निकलने के लिए अलग अलग रास्ते बनाए जा सकें। हालांकि यहां चीफ इंजीनियर ने प्रॉजेक्ट के लिए परेशानी बन रही अंडरग्राउंड पार्किंग को ही अपने समाधान का जरिया बना लिया। स्टेशन से इस पार्किंग की छत पर ही एल्युमीनियम की सीढ़ी बना दी। यह सीढ़ी पार्किंग की छत पर ठीक उस जगह रखी गई, जिसके नीचे पार्किंग का पिलर बना हुआ है। ऐसा करके मेट्रो ने बिना कोई अतिरिक्त जगह अधिग्रहीत किए ही मेट्रो से बाहर निकलने का बड़ा रास्ता पा लिया। 

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