(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 14, 28 फरवरी 2019)
‘एलयू से आईटी कॉलेज के लिए सड़क 90 अंश पर घूमी है लेकिन जमीन से 12 मीटर ऊंचाई पर मेट्रो के लिए भी इतना ही तेज घुमावदार ट्रैक नहीं बिछाया जा सकता। चौराहे के एक तरफ आईटी कॉलेज है और दूसरी तरफ निजी डिवेलपर के अपार्टमेंट्स, लिहाजा इतनी जमीन भी नहीं है घुमाव (कर्व) कम किया जा सके।‘
साइट इंजिनियर की बात सुनकर चीफ इंजिनियर कभी एलयू से आईटी कॉलेज की तरफ प्रस्तावित ट्रैक का डिजाइन देखते तो कभी आईटी चौराहे के आसपास जमीन की रिपोर्ट। काफी विचार विमर्श और बैठकों के बाद भी आईटी चौराहे पर घुमावदार ट्रैक के लिए कोई उपाय नहीं सूझा। डिजाइन में बदलाव और आसपास की जमीनें अस्थायी तौर पर लेकर काम शुरू करने की तमाम कोशिशों के बावजूद यहां इतनी जमीन नहीं मिली कि 130 अंश से ज्यादा घुमावदार ट्रैक बनाया जा सके। समाधान का एक रास्ता खुला तो नयी समस्या खड़ी हो गई।
यू गर्डर तो सीधे ढलवाए गए हैं, उसे कैसे घुमाएंगे :
जमीन से 12 मीटर ऊंचाई पर मेट्रो ट्रैक के लिए आईटी कॉलेज चौराहे के एक तरफ बने पिलर की दूरी इसके दूसरी तरफ बने पिलर्स से 30 मीटर थी। आम तौर पर मेट्रो ट्रैक के लिए दो पिलर्स के बीच औसतन इतनी ही दूरी होती है और उसपर रखने के लिए इतना ही लंबा यू गर्डर ढलवाया जाता है। इंजिनियर ने पूछा कि कास्टिंग यार्ड में 30 मीटर लंबाई के ही यू गर्डर ढाले जा रहे हैं, जो एकदम सीधे होते हैं। ऐसे में चौराहे पर घुमावदार ट्रैक कैसे बिछाया जा सकेगा? इसका समाधान सुझाते हुए कास्टिंग यार्ड के प्रभारी ने जवाब दिया कि हम 10 10 मीटर के यू गर्डर तैयार कर सकते हैं, जिन्हें चौराहे के ऊपर घुमावदार तरीके से इंस्टॉल किया जा सकता है। इतना सुनते ही साइट इंजिनियर ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि ‘चौराहे पर दो पिलर बनकर तैयार हैं, जिनके बीच 30 मीटर की दूरी है। ऐसे में 10 - 10 मीटर के यू गर्डर इंस्टॉल करने का फैसला हुआ तो हमें यहां सड़क पर इतनी ही दूरी पर दो नए पिलर बनाने होंगे, ऐसा हुआ तो सड़क का बड़ा हिस्सा मेट्रो के पिलर्स से घिर जाएगा, जिसपर ट्रैफिक विभाग से लेकर पीडब्लूडी की भी आपत्ति हो सकती है’
तो धुमावदार यू गर्डर ही क्यों ना ढलवा लिया जाए :
समाधान के लिए चीफ इंजिनियर ने मीटिंग बुलायी। इसमें कास्टिंग यार्ड के प्रभारी बार बार छोटे यू गर्डर ढलवाकर उन्हें नए पिलर्स बनाकर धुमावदार तरीके से इंस्टॉल करने की पैरवी करते रहे। इस बीच सिविल इंजिनियर इसपर सहमत नहीं दिख रहे थे। ऐसे में चीफ इंजिनियर ने पूछा कि पूरे 30 मीटर का घुमावदार यू गर्डर की ढलाई क्यों नहीं हो सकती? यार्ड के प्रभारी ने तुरंत जवाब दिया कि आज तक देश के किसी भी प्रॉजेक्ट में ऐसा यू गर्डर ना तो ढाला गया है और ना ही इस्तेमाल ही किया गया है। इसपर चीफ इंजिनियर ने सिविल वर्क से जुड़े इंजिनियरों से पूछा कि अगर ऐसा गर्डर मिल जाए तो उसका इस्तेमाल हो सकता है या नहीं? कुछ हिचकते हुए इंजिनियरों ने हामी भरी लेकिन चीफ इंजिनियर इस प्लान के सफल होने को लेकर इतने आश्वास्त थे कि उन्होंने तुरंत ही इस बारे में आला अधिकारियों से बात की और घुमावदार यू गर्डर की ढलायी शुरू हो गई। एक महीने के भीतर देश के पहले घुमावदार यू गर्डर तैयार हो गए और उन्हें आईटी चौराहे पर लगा भी दिया गया।
‘एलयू से आईटी कॉलेज के लिए सड़क 90 अंश पर घूमी है लेकिन जमीन से 12 मीटर ऊंचाई पर मेट्रो के लिए भी इतना ही तेज घुमावदार ट्रैक नहीं बिछाया जा सकता। चौराहे के एक तरफ आईटी कॉलेज है और दूसरी तरफ निजी डिवेलपर के अपार्टमेंट्स, लिहाजा इतनी जमीन भी नहीं है घुमाव (कर्व) कम किया जा सके।‘
साइट इंजिनियर की बात सुनकर चीफ इंजिनियर कभी एलयू से आईटी कॉलेज की तरफ प्रस्तावित ट्रैक का डिजाइन देखते तो कभी आईटी चौराहे के आसपास जमीन की रिपोर्ट। काफी विचार विमर्श और बैठकों के बाद भी आईटी चौराहे पर घुमावदार ट्रैक के लिए कोई उपाय नहीं सूझा। डिजाइन में बदलाव और आसपास की जमीनें अस्थायी तौर पर लेकर काम शुरू करने की तमाम कोशिशों के बावजूद यहां इतनी जमीन नहीं मिली कि 130 अंश से ज्यादा घुमावदार ट्रैक बनाया जा सके। समाधान का एक रास्ता खुला तो नयी समस्या खड़ी हो गई।
यू गर्डर तो सीधे ढलवाए गए हैं, उसे कैसे घुमाएंगे :
जमीन से 12 मीटर ऊंचाई पर मेट्रो ट्रैक के लिए आईटी कॉलेज चौराहे के एक तरफ बने पिलर की दूरी इसके दूसरी तरफ बने पिलर्स से 30 मीटर थी। आम तौर पर मेट्रो ट्रैक के लिए दो पिलर्स के बीच औसतन इतनी ही दूरी होती है और उसपर रखने के लिए इतना ही लंबा यू गर्डर ढलवाया जाता है। इंजिनियर ने पूछा कि कास्टिंग यार्ड में 30 मीटर लंबाई के ही यू गर्डर ढाले जा रहे हैं, जो एकदम सीधे होते हैं। ऐसे में चौराहे पर घुमावदार ट्रैक कैसे बिछाया जा सकेगा? इसका समाधान सुझाते हुए कास्टिंग यार्ड के प्रभारी ने जवाब दिया कि हम 10 10 मीटर के यू गर्डर तैयार कर सकते हैं, जिन्हें चौराहे के ऊपर घुमावदार तरीके से इंस्टॉल किया जा सकता है। इतना सुनते ही साइट इंजिनियर ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि ‘चौराहे पर दो पिलर बनकर तैयार हैं, जिनके बीच 30 मीटर की दूरी है। ऐसे में 10 - 10 मीटर के यू गर्डर इंस्टॉल करने का फैसला हुआ तो हमें यहां सड़क पर इतनी ही दूरी पर दो नए पिलर बनाने होंगे, ऐसा हुआ तो सड़क का बड़ा हिस्सा मेट्रो के पिलर्स से घिर जाएगा, जिसपर ट्रैफिक विभाग से लेकर पीडब्लूडी की भी आपत्ति हो सकती है’
तो धुमावदार यू गर्डर ही क्यों ना ढलवा लिया जाए :
समाधान के लिए चीफ इंजिनियर ने मीटिंग बुलायी। इसमें कास्टिंग यार्ड के प्रभारी बार बार छोटे यू गर्डर ढलवाकर उन्हें नए पिलर्स बनाकर धुमावदार तरीके से इंस्टॉल करने की पैरवी करते रहे। इस बीच सिविल इंजिनियर इसपर सहमत नहीं दिख रहे थे। ऐसे में चीफ इंजिनियर ने पूछा कि पूरे 30 मीटर का घुमावदार यू गर्डर की ढलाई क्यों नहीं हो सकती? यार्ड के प्रभारी ने तुरंत जवाब दिया कि आज तक देश के किसी भी प्रॉजेक्ट में ऐसा यू गर्डर ना तो ढाला गया है और ना ही इस्तेमाल ही किया गया है। इसपर चीफ इंजिनियर ने सिविल वर्क से जुड़े इंजिनियरों से पूछा कि अगर ऐसा गर्डर मिल जाए तो उसका इस्तेमाल हो सकता है या नहीं? कुछ हिचकते हुए इंजिनियरों ने हामी भरी लेकिन चीफ इंजिनियर इस प्लान के सफल होने को लेकर इतने आश्वास्त थे कि उन्होंने तुरंत ही इस बारे में आला अधिकारियों से बात की और घुमावदार यू गर्डर की ढलायी शुरू हो गई। एक महीने के भीतर देश के पहले घुमावदार यू गर्डर तैयार हो गए और उन्हें आईटी चौराहे पर लगा भी दिया गया।