
(रणविजय सिंह, पार्ट टू, 23 दिसंबर 2018)
लखनऊ : 'आप जुर्माना लगा दीजिए या मशीन सीज करवा दें, मैं काम नहीं कर सकता...'। इतना कहते हुए सरदार जी क्रेन के ड्राइवर को साथ लेकर डिपो से बाहर निकल गए। 'सर... एक क्रेन पहले ही जमीन में धंस चुकी है। बड़ी तलाश के बाद कानपुर से किसी तरह क्रेनें मंगवाईं थीं। अब अगर ये भी चली गईं तो काम कैसे होगा? पेड़ भी एक-दो नहीं 900 से ज्यादा हैं'। पर्यावरण अभियंता ने यह कहते हुए चीफ इंजिनियर की तरफ मायूसी से देखा। सबको परेशान देख उद्यान अधिकारी बोले, एक उपाय है लेकिन...। चीफ इंजिनियर ने पूछा, लेकिन क्या? उद्यान अधिकारी बोले, 'यह तरीका इतने पुराने और वजनी पेड़ों पर कीाी इस्तेमाल नहीं हुआ। इसलिए गारंटी नहीं ले सकता पेड़ बचाया जा सकेगा।

अनिष्ट की आशंका में छंटाई को तैयार नहीं थे कर्मचारी :

पहली बार जड़ समेत पेड़ के टुकड़े कर बचाया
चीफ इंजिनियर की मंजूरी के बाद उद्यान अधिकारी ने वह काम शुरू किया जो अब तक केवल किताबों में पढ़ा था। टहनियां कटवाने के बाद पेड़ का वजन करीब 130 टन आंका गया। पेंड़ के तने का व्यास करीब सात फुट था। तने के एक मीटर दायरे में जड़ की तरफ जमीन पर निशान लगाया गया। इसके बाद आधे हिस्से में दो से तीन मीटर तक खोदाई की गई। इसके बीच आने वाली जड़ों को काटा जाता रहा और उन्हें बचाने के लिए प्लांट हार्मोंस ऑक्सिन का लेप लगाया जाता रहा। इसमें 15 दिन लगे। इसके बाद यही कवायद बचे आधे हिस्से में की गई। चारों तरफ से जड़ समेत खोदाई होने और कटी जड़ों पर हार्मोंस के लेप के बाद बोरी से बांधकर 5 से 10 दिन के लिए छोड़ दिया गया। इसके बाद इस तने को ऊपर से लंबाई में जड़ तक चार टुकड़े में काटा गया। सभी हिस्सों पर प्लांट हार्मोंस ऑक्सिन का लेप किया गया। इसके बाद सामान्य क्रेन से टुकड़ों को डिपो की बाउंड्री के पास पहले से बनाए गए गड्ढे में लगाया गया। करीब छह महीने तक देखभाल की गई और चारों टुकड़े नए पेड़ बन गए।
पहले जिस पेड़ को बचाना मुश्किल लग रहा था, वहीं चार जगह हरियाली फैला रहा है। चीफ इंजीनियर समेत डिपो में मौजूद अधिकारियों के लिए भी यह किसी अजूबे से कम नहीं था। इसके बाद चीफ इंजिनियर ने उद्यान अधिकारी और वन अधिकारी को बुलाकर पूछा 'यह बताओ कि तुमने पहले से ही योजना बना ली थी या मौके का इंतजार कर रहे थे'। वन अधिकारी ने मुस्कुराते हुए कहा कि पहले ही सर्वे कर पेड़ों की नम्बरिंग कर ली थी। इसमें पेड़ों की उम्र, प्रजाति और मौसम देखकर दूसरी जगह लगाने की संभावनाओं को भी परख लिया था। कुछ देर चुप रहने के बाद चीफ इंजिनियर की तरफ रिपोर्ट बढ़ाते हुए कहा, इस प्रॉजेक्ट में टीपीनगर डिपो से चारबाग तक के रूट में 981 पेड़ काम के आड़े आ रहे थे। इनमें पीपल, बरगद, कचनार, मौलश्री, चितवन, टीक, कंजी और सेमल जैसे पेड़ थे। सभी पेड़ों को बचा लिया गया।
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