Friday, 25 January 2019

जरा सी चूक से उड जाती टीपी नगर की सड़क और ग्रीन गैस पंप

(रणविजय सिंह, पार्ट थ्री, 27 दिसंबर 2018)
आप समझ नहीं रहे हैं... रिग मशीन का जरा सा झटका लगेगा और टीपी नगर से अमौसी तक की ब्लास्ट होने लगेंगे। आसपास की इमारतें भी गिर सकती हैं... पूरे लखनऊ की सप्लाई ठप हो जाएगी सो अलग... फैसला आप लोगों को लेना है। इतना सुनते ही एलएमआरसी टीम के साथ आए आला अधिकारी सकते में आ गए... पूछा, 'क्यों भाई? क्या नीचे बारूद बिछा हुआ है'। अफसरों के चेहरे पर प्रॉजेक्ट लेट होने की आशंका और समय पर काम पूरा करने का दबाव साफ झलक रहा था। मामले को संभालने की कोशिश करते हुए साइट पर मौजूद इंजिनियर ने जवाब दिया...'सर, बारूद नहीं, लेकिन ग्रीन गैस की पाइप लाइन बिछी है, जो अमौसी के पंप से जुड़ी है। इसी लाइन से पूरे लखनऊ में ग्रीन गैस की सप्लाई होती है...। हमारी पाइलिंग ठीक इसके ऊपर है, रिग मशीन एक बार में जमीन के नीचे एक से डेढ़ मीटर तक खोद देती है...ऐसे में मशीन दायरे में आने पर ग्रीन गैस की पाइप का फटना तय है'।
इतना बोलकर इंजीनियर चुप हो गए और चारों तरफ सन्नाटा छा गया। चुप्पी तोड़ते हुए एलएमआरसी टीम के साथ आए अफसर ने लगभग चीखते हुए पूछा, ...तो इस पाइप लाइन को अब तक हटवाया क्यों नहीं गया? इस सवाल पर इंजिनियरों का जवाब सुनकर अफसरों के होश उड़ गए। उन्होंने कहा जमीन के नीचे पाइपों में ग्रीन गैस भरी हुई है, एजेंसी इसे शिफ्ट करने की मंजूरी देने को तैयार नहीं है, पाइप लाइन कितनी गहरायी पर है? यह भी उन्हें नहीं पता। पाइपों में गैस की मात्रा और लोकेशन भी एजेंसी साझा करने को तैयार नहीं है। इतना कहकर एक बार फिर इंजिनियर समाधान की आस में अफसरों का चेहरा देखने लगे। कुछ देर सोंचकर अफसरों ने एहतियात के साथ खोदायी के विकल्प पर विचार करते हुए पूछा कि हादसा होने पर बचाव के उपाय क्या हैं? जवाब मिला कि ग्रीन गैस की तरफ से ऐसे टिप्स या उपाय बताने में भी असमर्थता जता दी गई है। इतना सुनने के बाद टीपी नगर स्टेशन का काम अटकने की आशंका में अफसरों के चेहरे का रंग ही उड़ गया...।
नहीं हारे हिम्मत
ग्रीन गैस के साथ सामंजस्य के सारे रास्ते बंद होने के बाद सिविल इंजिनियरों की टीम ने समाधान का उपाय खोजना शुरू किया। चीफ इंजिनियर और अधिकारियों की घंटों की माथापच्ची के बाद तय हुआ कि अगर ग्रीन गैस की तरफ से पाइप लाइन की लोकेशन नहीं मिल रही तो एलएमआरसी खुद खोजेगा। इसके बाद भी समस्या का पूरा समाधान नहीं हुआ, क्योंकि लोकेशन मिलने के बाद भी पाइप लाइन हटाने के लिए ग्रीन गैस ने एनओसी देने से इनकार कर दिया। लेकिन कहते हैं कि जहां चाह वहां राह। एलएमआरसी ने भी काम करने की ठान ली थी। एक बार फिर मेट्रो ने ग्रीन गैस के अफसरों से बात करने पर डिजाइन और जमीन के नीचे पाइप लाइन की पहचान करने वाला लोकेटर मुहैया करवा दिया गया। हालांकि इस मशीन से भी जमीन के नीचे केवल दो मीटर तक की ही जानकारी मिल पा रही थी। ऐसे में जेसीबी से जमीन को दो मीटर तक खोदने के बाद गड्ढा बनाया गया। इसके बाद उसमें लोकेटर रखकर पाइप का पता लगाया गया और पाइप लाइन मिलने तक रिग मशीन के बजाय कर्मचारियों से करवाई।
ब्रिज तकनीक
एलएमआरसी टीम और सिविल इंजिनियरों ने समाधान के तौर जमीन के नीचे ब्रिज तकनीक का इस्तेमाल कर पाइलिंग करने का फैसला किया गया। देश के शायद ही किसी दूसरे मेट्रो प्रॉजेक्ट में इस तकनीक से पाइलिंग हुई होगी, लेकिन विवाद से बचते हुए समय पर काम करने के लिए दूसरा कोई चारा भी नहीं था। जमीन के नीचे 25 मीटर गहरायी तक पाइलिंग की गई लेकिन ग्रीन गैस के पाइप वाले हिस्से के चारों तरफ ब्रिज तकनीक के जरिए खाली छोड़ दिया गया। इसके लिए पाइलिंग के मूल डिजाइन में आंशिक बदलाव किया गया।

No comments:

Post a Comment

तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपन...