Sunday, 25 August 2019

ऐसी जुगत भिंडायी कि जिन्हें नोटिस नहीं मिला वो भी अपना मकान तुड़वाने की पैरवी करने लगे



(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 7, 17 जनवरी 2019)


'रेलवे कॉलोनी में घरों के सामने लोग खड़े हैं... हमारे कर्मचारी, मजदूर और खोदायी की मशीनें देखते ही लोग नारेबाजी शुरू कर दे रहे हैं... जबरन मकान गिराए गए तो विवाद हो सकता है... ऐसे में कैसे काम होगा...' साथी इंजीनियर की बात सुनकर चीफ इंजीनियर ने परेशानी भरे लहजे में पूछा 'मेट्रो ने अपनी जमीन पर काम करने की अनुमति दे दी है तो फिर यह दिक्कत कैसे हो रही है' इस पर जवाब मिला कि रेलवे की जमीन पर काम करने की मंजूरी मिली है लेकिन वहां पक्के निर्माण तोड़ने की एनओसी देने को रेलवे के अधिकारी तैयार नहीं हैं।

रेलवे ने मवैया से दुर्गापुरी के बीच अपनी जमीन पर मेट्रो के पिलर बनाने की अनुमति तो दे दी थी लेकिन मकानों को तोड़ने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। इस बारे में एलएमआरसी और रेलवे के अधिकारियों के बीच कई मीटिंगें हुईं लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला। हर मीटिंग में रेलवे ने हर संभव मदद का आश्वासन दिया लेकिन अपने कर्मचारियों के मकानों को तोड़ने की अनुमति देने से पीछे हट गया। ऐसा करने पर कर्मचारियों के अलावा कर्मचारी नेताओं की नाराजगी अफसरों को झेलनी पड़ सकती थी। इस उहापोह में मेट्रो का काम रुकने की आशंका पैदा हो गई क्योंकि यहां पर डिजाइन में बदलाव करना भी मुमकिन नहीं था। चीफ इंजीनियर ने इन तमाम पहलुओं पर विचार करने के बाद एक बार फिर रेलवे के अधिकारियों से बात करने का फैसला किया। मीटिंग हुई लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात।

जिन्हें नोटिस नहीं मिली वो भी पहुंच गए मकान तुड़वाने :
मकान तोड़ने को रेलवे अधिकारी एनओसी देने को तैयार नहीं थे और बिना तोड़े एलेवेटेड रूट के लिए यहां पिलर बनाना संभव नहीं था। रेलवे अफसरों के साथ सहमति की कोई गुंजाइश नहीं थी। इस बीच चीफ इंजीनियर ने साथी इंजीनियरों को बुलाकर एक ऐसे उपाय पर काम करने का सुझाव दिया, जिसके सफल होने की उम्मीद किसी को नहीं थी। एक बार फिर मीटिंग का फैसला हुआ लेकिन इस बार रेलवे अफसरों के बजाय कॉलोनी में रहने वालों को बुलाया गया। सभी को आश्वासन दिया गया कि मकान का जितना हिस्सा टूटेगा, उतना मेट्रो बनाकर देगा। रेलवे के वर्षों पुराने मकानों में रहने वालों पर मेट्रो का यह दांव काम कर गया लेकिन तोड़ने के बाद मेट्रो कैसा निर्माण करेगा? इस सवाल को लेकर वहां रहने वालों के मन में काफी शंकाएं थीं। लोगों की इस चिंता को भांपते हुए मेट्रो ने रेलवे की अनुमति से पिलर के रास्ते में आ रहा एक खाली मकान के कुछ हिस्से को गिरा दिया। इसके कुछ दिनों के बाद ही उस मकान को इतने बेहतर तरीके से बनाकर तैयार किया कि पूरी कॉलोनी में इसकी चर्चा हो गई। कॉलोनी के जर्जर क्वाटरों में रहने वाले खाली पड़े मकान के उस हिस्से को देखने आने लगे, जो मेट्रो ने बनाकर दिया। इसके बाद तो मेट्रो रूट के दायरे में आने वाले रेलवे के जितने क्वाटरों को नोटिस जारी हुआ था, उससे ज्यादा लोग मेट्रो से इस बात की सिफारिश करने लगे कि जरूरत हो तो उनका मकान भी गिरा दिया जाए। महज कुछ दिनों के होमवर्क के बाद स्थितियां पूरी तरह मेट्रो के पक्ष में हो गईं। जहां एक इंट गिराने पर भी लोग मारपीट पर आमादा थे, वहीं इस उपाय के बाद लोगों ने खुद खड़े होकर अपने मकानों की पूरी चहादीवारी तक तुडवा दी। 

Saturday, 17 August 2019

हादसे को अवसर बनाकर तैयार कर दिखाया मेट्रो स्टेशन

(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 6, 10 जनवरी 2019)

‘…तीन दिन से रुक-रुक कर लगातार बारिश हो रही है। …आलमबाग से सिंगार नगर, बदालीखेड़ा, हिंद नगर, विष्णुपुरी और टीपी नगर समेत कानपुर रोड के दोनों तरफ के दर्जनों मोहल्ले घुटनों तक पानी में डूबे हैं…। ऐसे में यू गर्डर इंस्टॉल करने के लिए इन मोहल्लों से जल निकासी के इस इकलौते नाले को बंद करने का मतलब समझते हैं आप?’ चीफ इंजिनियर के इस सवाल का जवाब कमरे में मौजूद किसी इंजिनियर के पास नहीं था। चीफ इंजिनियर ने ऐसी जगह तलाशने को कहा जहां क्रेन खड़ी कर गर्डर इंस्टॉल किया जा सके। इस पर सभी ने दो टूक कह दिया कि नाले के ऊपर क्रेन खड़ी करने के अलावा कोई चारा नहीं। दूसरी जगह से गर्डर इंस्टॉल करने के लिए ज्यादा क्षमता की क्रेनें लानी पड़ेंगी जो फिलहाल हमारे पास नहीं हैं। ऐसा हुआ तो देरी होना तय है। इससे पहले कि कोई कुछ बोलता साइट पर मौजूद इंजिनियर कमरे में दाखिल हुए और हांफते हुए बोले ‘सर…नाला धंस गया है। हमारी बेरिकेडिंग गिरते-गिरते बची है।’

यह सुनते ही चीफ इंजिनियर कुर्सी से झटके के साथ उठ खड़े हुए। परेशान लहजे में पूछा ‘नाला धंस गया लेकिन कैसे? उस पर तो काम शुरू भी नहीं हुआ था। किस तरफ से धंसा है? उसका पानी कहां जा रहा है?’ एक ही सांस में चीफ इंजिनियर ने कई सवाल पूछ डाले। मौके से आए इंजिनियर ने बताया कि मेट्रो स्टेशन के ठीक बगल में बन रहे बस स्टेशन की तरफ रीटेनिंग वॉल नहीं बनी थी, उसी तरफ नाले की दीवार धंस गई है। बस स्टेशन के लिए करीब 20 मीटर गहरायी तक मिट्टी खोदकर बेसमेंट बनाया जाना है, सारा पानी उसी में भर रहा है। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता चीफ इंजिनियर ने स्टेशन का काम देख रहे इंजिनियरों से पूछा कि स्टेशन के लिए सारे यू गर्डर कितने दिन में इंस्टॉल हो जाएंगे, जवाब मिला चार दिन में। धीरे से बोले ‘बन गया काम’।

स्टेशन का मैप टेबल पर बिछाते हुए उन्होंने समझाना शुरू किया ‘हादसा मेट्रो स्टेशन से कुछ दूरी पर आलमबाग बस स्टेशन के लिए हो रहे निर्माण स्थल के पास हुआ है। टूटे हुए नाले की दीवार चार दिन से पहले बन नहीं पाएगी। इस बीच हमारी तरफ वाले नाले में पानी नहीं आएगा। अब इसे बंद करने पर कोई हंगामा नहीं होगा। ऐसे में तुरंत बालू की बोरियों से नाला बंद कर दें और क्रेन इसके ऊपर खड़ी करके यू गर्डर इंस्टॉल करें।' इंजिनियरों ने ऐसा ही किया और सबसे कठिन माना जाने वाला यू गर्डर इंस्टॉल कर दिया गया। 

Sunday, 11 August 2019

एक तरफ जमीन के नीचे नाला, दूसरी तरफ 33 हजार वोल्ट के तार

(रणविजय सिंह, मेट्रो पार्ट 5, 6 जनवरी 2019)

'जमीन के करीब दो मीटर गहरायी पर 33 हजार वोल्ट के तार बिछे हैं। बीएसएनएल की लाइन भी यहां से गुजर रही है, जिसके सैकड़ों तारों को हटाए बिना खोदायी मुमकिन नहीं। पिलर के लिए खोदायी की तय जगह से कुछ ही दूरी पर अंडरग्राउंड पार्किंग की दीवार है, जिसके टूटने से बड़ा हादसा हो सकता है। सड़क के दूसरी तरफ शिव मंदिर है, जिसके टूटने की आशंका में कई हिंदूवादी संगठन लगातार विरोध प्रदर्शन करते हुए काम रोकने की चेतावनी और धमकी दे रहे हैं...' आलमबाग मेट्रो स्टेशन के लिए खोदायी शुरू करने से पहले आ रही दिक्कतों के बारे में चीफ इंजीनियर को इतना बताकर इंजीनियर चुप हो गए।

पूरी बात सुनकर चीफ इंजीनियर ने धीरे से कहा 'कोई और भी दिक्कत हो तो बता दो...' इसपर पीछे खड़े इंजीनियर ने बताया कि सड़क के दूसरी तरफ जमीन के नीचे दो मीटर गहरायी पर अंडरग्राउंड नाला आ गया है, जिसे डायवर्ट करने के लिए वहां कोई जगह नहीं है और बिना ऐसा किए वहां पिलर बनाना मुमकिन नहीं।' नई समस्या सामने आने पर चीफ इंजीनियर ने पूछा 'यह बात काम शुरू करने से पहले पता क्यों नहीं चली' इसपर जवाब मिला कि नगर निगम, जल संस्थान, जल निगम या एलडीए की तरफ से यहां अंडरग्राउंड नाला होने की जानकारी ही नहीं दी गई थी।

काम शुरू नहीं हुआ और एक के बाद एक कई समस्याएं एक साथ सामने आ गईं। चीफ इंजीनियर अपने केबिन से निकलकर मौके पर पहुंच गए। साथी इंजीनियर से पूछा 'बीएसएनएल को तो दो महीने पहले पत्र भेजकर लाइटें हटाने को कहा गया था, उसका क्या हुआ?' साथी इंजीनियर ने उनकी तरफ पत्र बढ़ाते हुए बताया कि आज ही सुबह जवाब आया है। पत्र पढ़ने के बाद खीझते हुए चीफ इंजीनियर खीझते हुए बोले 'हम मेट्रो बनाने आए हैं, बीएसएनएल के तार बिछाने नहीं...'Ṣ साथी इंजीनियरों ने गुस्से की वजह पूछी तो पता चला कि आलमबाग में खोदायी होनी है लेकिन बीएसएनएल यहां से लेकर चारबाग तक लाइन बदलने की बात कह रहा है और इसके लिए आठ करोड़ रुपये का खर्च होने का प्रस्ताव भेज दिया है। एक तरफ अंडरग्राउंड पार्किंग थी और दूसरी तरफ व्यस्त सड़क, लिहाजा डिजाइन बदलकर पिलर्स की लोकेशन भी इधर उधर करना मुश्किल था। मामला जटिल होता देख चीफ इंजीनियर ने एक एक समस्या को हल करते हुए काम आगे बढ़ाने का फैसला किया। उन्होंने अंडरग्राउंड पार्किंग की तरफ लेसा और बीएसएनएल के तारों तक मैनुअली खोदायी कराने का फैसला किया। उन्होंने इंजीनियरों को समझाते हुए कहा 'दो मीटर या उससे ज्यादा तब तक कर्मचारियों से खोदायी करवायी जाए, जब तक लेसा और बीएसएनएल के तार दिखने ना लगें। उसके बाद पाइल के लिए जितनी जमीन चाहिए, उतने हिस्से से यह तार दाएं बाएं खिसकाकर उन्हें किसी चीज से दबा दो ताकि इसके नीचे 30 मीटर गहरायी तक रिग मशीन से होने वाली खोदायी बिना दिक्कत के हो सके। एक बार कांक्रीट की पाइल तैयार हो जाएगी तो यह तार अपने आप अपनी जगह ले लेंगे।' योजना पर काम शुरू हुआ और एक महीने के भीतर ही बिना तारों को हटाए पाइलिंग होने लगी। हालांकि सड़क के दूसरी तरफ नाला, मंदिर और दुकानदार अभी भी काम शुरू होने की राह का रोड़ा बने हुए थे। चीफ इंजीनियर ने मंदिर प्रबंधन और दुकानदारों के साथ सीधी बात करने का फैसला किया। दुकानदारों से दो टूक बात करते हुए उन्होंने कहा 'हमारे पास सीधे मुख्य सचिव के यहां से अनुमति है। अवैध निर्माण और अतिक्रमण के चलते किसी भी समय ध्वस्तीकरण कराया जा सकता है लेकिन आप लोग काम में सहयोग करें किसी भी तरह की तोड़फोड़ नहीं होगी। जितने दिन काम चलेगा, उतने दिन दुकानदारी कुछ कम होगी' हालात को भांपते हुए दुकानदार काम जारी रखने को लेकर सहमत हो गए।

'जगह तो मिल गई लेकिन नाले का क्या करेंगे?' इंजीनियरों ने खोदायी शुरू कराने से पहले पूछा। इसपर चीफ इंजीनियर ने जवाब देने के बजाय मुस्कुराते हुए पूछा 'टीपी नगर स्टेशन याद है या भूल गए?' कोई जवाब नहीं मिला तो चीफ इंजीनियर खुद ही बोल पड़े 'वहां ग्रीन गैस पाइप लाइन को बचाने के लिए ब्रिज तकनीक का इस्तेमाल हुआ था, यहां भी उसी तकनीक से पाइल बन सकते हैं।' नाले वाले हिस्से को छोड़ते हुए उसके दोनों किनारे पर पाइलिंग के लिए खोदायी हुई। इसके लिए व्यापारियों की दुकानों के दरवाजे तक बेरिकेडिंग कर जमीन के 30 मीटर गहरायी तक खोदायी करनी पड़ीं। दुकानें हमेशा के लिए टूट जाएं, इसके बजाय कुछ दिनों की दिक्कत झेलने को तैयार व्यापारी इसके लिए भी तैयार हो गए। तीसरी बड़ी चुनौती शिव मंदिर को बचाते हुए स्टेशन बनाने की थी। इसके लिए डिजाइन में बदलाव करने का फैसला हुआ, जिसे आला अधिकारियों ने मंजूरी दे दी।

पार्किंग के ऊपर बना दिया एक्जिट :
सिंगार नगर की तरह ही आलमबाग में भी इतनी पर्याप्त जगह नहीं मिली कि मेट्रो स्टेशन में दाखिल होने और बाहर निकलने के लिए अलग अलग रास्ते बनाए जा सकें। हालांकि यहां चीफ इंजीनियर ने प्रॉजेक्ट के लिए परेशानी बन रही अंडरग्राउंड पार्किंग को ही अपने समाधान का जरिया बना लिया। स्टेशन से इस पार्किंग की छत पर ही एल्युमीनियम की सीढ़ी बना दी। यह सीढ़ी पार्किंग की छत पर ठीक उस जगह रखी गई, जिसके नीचे पार्किंग का पिलर बना हुआ है। ऐसा करके मेट्रो ने बिना कोई अतिरिक्त जगह अधिग्रहीत किए ही मेट्रो से बाहर निकलने का बड़ा रास्ता पा लिया। 

Sunday, 4 August 2019

जमीन नहीं मिली तो ट्रैक के एक पिलर्स पर ही खड़ा कर दिखाया पूरा स्टेशन

 (रणविजय सिंह, पार्ट फोर, 3 जनवरी 2019)

..सिंगार नगर मेट्रो स्टेशन का मैप हाथ में लिए कर्मचारियों से घिरे चीफ इंजीनियर बुदबुदाने लगे 'लगता नहीं कि यहां जमीन मिल पाएगी...' इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पाते उनका मोबाइल बजने लगा। स्क्रीन पर प्रॉजेक्ट मैनेजर का नाम देखते ही उन्होंने दूसरी तरफ से पूछे जाने वाले सवाल की कल्पना कर ली। फोन रिसीव करते ही उनका अंदेशा सही साबित हुआ 'क्या हुआ? सिंगार नगर में काम क्यों नहीं शुरू हो पा रहा है? व्यापारियों के साथ बात ही होती रहेगी या काम भी शुरू होगा? आपको पता तो है ना कि काम समय पर पूरा करने का कितना दबाव है?'
बिना सवालों के जवाब का इंतजार किए प्रॉजेक्ट मैनेजर ने एक के बाद एक कई सवाल दाग दिए। फोन कान में लगाए चीफ इंजीनियर टहलते हुए साथी इंजीनियरों से कुछ दूर आए और बोले 'पूरे आलमबाग के व्यापारी लामबंद हैं। स्टेशन के लिए एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार नहीं। इतनी भी जमीन नहीं है कि स्टेशन में एंट्री और एग्जिट के अलग अलग रास्ते बनाए जा सकें। प्रदेश सरकार की हरी झंडी के बावजूद दुकानों में तोड़फोड़ का सीधा मतलब है कि मामला अदालत में चला जाएगा। एक बार कोर्ट कचहरी शुरू हुई तो फैसला आने तक काम करना मुश्किल हो जाएगा। इस बीच उन्हें फायदे समझाने के साथ ही कार्रवाई की चेतावनी का असर यह हुआ कि व्यापारी दिल्ली जाकर सांसद और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिल आए। ऐसे में बल प्रयोग करने से मामला यूपी बनाम दिल्ली हो जाएगा। स्थितियां लगातार जटिल होती जा रही थीं।' इतना बोलकर चीफ इंजीनियर खामोश हो गए और दूसरी तरफ से जवाब का इंतजार करने लगे लेकिन कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने फिर बोलना शुरू किया 'अब हमारे पास एक ही उपाय है कि जितनी जमीन मिली है, उतने में ही स्टेशन बनाने का काम शुरू करा दिया जाए भले ही इसके लिए डिजाइन में बदलाव करन पड़े'। चीफ इंजीनियर की बात सुनने के बाद प्रॉजेक्ट मैनेजर ने उन्हें नई योजना पर काम करने को मंजूरी दे दी। इसके बाद चीफ इंजीनियर ने सभी इंजीनियरों को अपने केबिन में बुला लिया।
मीटिंग कक्ष में चीफ इंजीनियर के सामने टेबल पर सिंगार नगर स्टेशन का मैप रखा हुआ था। सबके आने के बाद चीफ इंजीनियर ने बोलना शुरू किया 'सिंगार नगर में हमें  एक पिलर पर ही पूरा स्टेशन बनाना होगा।' इतना सुनते ही इंजीनियरों ने हैरानी के साथ उनकी तरफ देखना शुरू कर दिया। कमरे में सन्नाटे को तोड़ते हुए पीछे बैठे शख्स ने पूछा 'मतलब...कैसे?' बिना सवाल पूछने वाले शख्स की तरफ देखे चीफ इंजीनियर ने जवाब दिया 'डिवाइडर पर एलेवेटेड ट्रैक के लिए बनने वाले पिलर को ही यहां इस तरह से डिजाइन करना पड़ेगा ताकि उसपर ट्रैक के साथ 'कैंटी लीवर' बनाकर पूरे स्टेशन को तैयार किया जा सके' सबकी चिंता और परेशानी को भांपते हुए चीफ इंजीनियर ने अपनी आवाज में आत्मविश्वास दिखाते हुए तेज आवाज में कहा 'यह मुमकिन है...' इसके साथ ही मीटिंग खतम हो गई और सभी सिंगार नगर की तरफ रवाना हो गए।
चीफ इंजीनियर ने सिंगार नगर में स्टेशन वाली जगह डिवाइडर पर बन रहे पिलर को अतिरिक्त मजबूती के लिए ज्यादा सरिया और कांक्रीट का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए। इसके साथ ही स्टेशन के दायरे में डिवाइडर पर पिलर्स की संख्या भी बढ़ा दी ताकि स्टेशन की मजबूती को लेकर किसी तरह की आशंका ना रहे। इसके बाद इस पिलर पर जमीन से करीब 12 मीटर पर दोनों तरफ स्टेशन का पूरा प्लेटफॉर्म ढ़ाला जाने लगा। इसमें सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम यह था कि स्टेशन के नीचे सड़क की तरफ से मजबूती देने के लिए कोई पिलर नहीं बनाया जाना था। 'क्या देख रहे हो...?' सिंगार नगर स्टेशन की तरफ सिर उठाए देख रहे इंजीनियर की तरफ मुस्कुराते हुए चीफ इंजीनियर ने अपने साथी इंजीनियर से पूछा। कुछ सकपकाते हुए इंजीनियर ने कहा 'कुछ नहीं सर...' फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद दोबारा ऊपर की तरफ देखते हुए बोला 'सर मैं सोच रहा था कि यह गिर तो नहीं जाएगा?' सिंगार नगर मेट्रो स्टेशन का मैप हाथ में लिए हुए चीफ इंजीनियर ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया 'तो क्या तुम यहां खड़े होकर इसलिए ऊपर देख रहे हो ताकि कैंटी लीवर गिरने से बचा सको'। इतना कह दोनों हंसने लगे लेकिन चीफ इंजीनियर खुद भी जानते थे कि जो चुनौती उन्होंने ले ली है, उसे पूरा करना इतना आसान नहीं है। करीब दो महीने महीने तक दिनरात निगरानी और मेहनत के बाद चीफ इंजीनियर अपनी पूरी टीम के साथ सिंगार नगर मेट्रो स्टेशन के नीचे खड़े थे। ऊपर पूरा प्लेटफॉर्म बिना सड़क की तरफ अतिरिक्त पिलर बनाए तैयार हो चुका था। ऊपर देख रहे साथी इंजीनियरों की पीठ ठोंकते हुए चीफ इंजीनियर मुस्कुराते हुए बोले 'मैने कहा था ना कि यह मुमकिन है' इतना सुनते ही वहां मौजूद सभी खिलखिलाकर हंस पड़े।

तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपन...