Thursday, 19 July 2018

घाटे का रोना रो रहे और 2000 रुपये हाउस टैक्स वालों से वसूल रहे 60 पैसा

(रणविजय सिंह, 11 मई)

- नगर निगम के करीब 50 हजार आवासीय और कमर्शल भवनों से वसूले जा रहे महज एक, दो और छह रुपये हाउस टैक्स
- टैक्स इंस्पेक्टरों ने नहीं किया असेस्मेंट, मामूली हाउस टैक्स जमा कर फायदा उठा रहे भवन स्वामियों पर होगी कार्रवाई

Ranvijay.Singh1@timesgroup.com, लखनऊ
एक तरफ नगर निगम घाटे का रोना रो रहा है और दूसरी तरफ जिन मकानों से 2000 रुपये हाउस टैक्स वसूला जाना चाहिए, उनसे महज 60 पैसे से लेकर छह रुपये तक का टैक्स जमा कराया जा रहा है। उपाध्यक्ष अरुण तिवारी के निर्देश पर एनआईसी से निकाली गई सूची में इसका खुलासा हुआ। सामने आए दस्तावेजों के मुताबिक ऐसे करीब 50 हजार भवन हैं, जिनके असेस्मेंट में मिलीभगत कर महकमे को हर साल करोड़ों का चूना लगाया जाता रहा। वर्षों से मामूली हाउस टैक्स जमा कर गलत तरीके से लाभ उठा रहे भवन स्वामियों के साथ इन इलाकों के टैक्स इंस्पेक्टरों के खिलाफ भी बड़े पैमाने पर कार्रवाई की तैयारी है।
जोन 1 और जोन छह की सूची सामने आने के बाद जोनल अफसर और टैक्स इंस्पेक्टरों ने इनके सत्यापन का काम तेज कर दिया है। उपाध्यक्ष अरुण तिवारी ने बताया कि इस सूची में मकान संख्या 163/219एफ की जांच करायी गई। चकमंडी स्थित इस भवन का क्षेत्रफल करीब 200 वर्गफीट है और इसमें कमर्शल गतिविधियां चल रही हैं। अनुमान के मुताबिक इसका हाउस टैक्स करीब 2000 रुपये होना चाहिए लेकिन दस्तावेजों में इसका टैक्स महज 60 पैसे दर्ज है। ऐसे ही मामले सप्रू मार्ग, मोहिनी पुरवा, दौलतगंज, करीमगंज, गऊघाट, पुल मोतीलाल, दिलराम बारादरी, जियामऊ, हैदरगंज, भवानीगंज, पुराना टिकैतगंज, मुंशीगंज, महताबबाग पार्ट 2, बरफ खाना, गढ़ी पीर खान, नेवाटी टोला, वजीरबाग, शाहमीना रोड़, मल्लाही टोला और वजीरबाग समेत दर्जनों इलाकों के नाम हैं। सूची में शामिल इन जोनों के मकानों से अब तक महज 60 पैसे से लेकर एक रुपये, एक रुपये 20 पैसे और छह रुपये तक का हाउस टैक्स जमा हो रहा है।


10 हजार मकानों की कुर्की करने की तैयारी :
सामने आयी सूची के मुताबिक करीब 10 हजार ऐसे लोग हैं, जिनका असेस्मेंट तो हो चुका है लेकिन पिछले दो साल से वो टैक्स जमा ही नहीं कर रहे हैं। ऐसे सभी भवन स्वामियों को  नोटिस देकर उनका मकान कुर्क करने की तैयारी है। उपाध्यक्ष अरुण तिवारी के मुताबिक इस संबंध में कर अधीक्षकों और जोनल अधिकारियों को निर्देश दिए जा चुके हैं।

अधिकारियों को देना होगा शपथपत्र :
टैक्स वसूली में लापरवाही सामने आने के बाद अब टैक्स वसूली में जवाबदेही तय कर दी गई है। जोनल अधिकारी, कर अधीक्षक और वार्ड निरीक्षकों को हर वार्ड से होने वाली वसूली का ब्योरा देना होगा। यही नहीं उन्हें इस बात का शपथपत्र भी देना होगा कि अब कोई मकान टैक्स के दायरे से बाहर नहीं है। इस बीच पिछले महीने ही इस साल टैक्स वसूली की टाइम लाइन भी जारी कर दी गई है।

यह है टाइम लाइन :
31 मई : सभी मकानों के हाउस टेक्स के बिलों का वितरण कर उसकी कॉपी वार्ड लिपिक को सौंपना।
1 जून : कर पुनरीक्षण की परिधि से छूटे हुए मकानों का कर पुनरीक्षण करना।
1 जून से 30 जून : सभी भवन स्वामियों से मिलकर उन्हें बिल सौंपना। कर अधीक्षक कम से कम 5 फीसदी बकाएदारों से स्वयं मिलेंगे।
1 जुलाई से 31 जुलाई : सभी राजकीय भवनों से कर वसूली और 10 हजार से ज्यादा धनराशि के बकाएदारों से संपर्क कर हाउस टैक्स जमा करवाना।
1 अगस्त से 15 अगस्त : कर निर्धारण की परिधि में उन मकानों को भी लाना, जो अब इससे छूटे हुए हैं।
15 अगस्त से 31 अगस्त : 10 हजार से अधिक बकाएदारों के खिलाफ कार्रवाई। बिल जमा ना होने पर कुर्की भी की जा सकती है।

टैक्स वसूली में बड़े पैमाने पर अनियमितता सामने आयी है। महज 60 पैसे और एक रुपया हाउस टैक्स कैसे तय हुआ? इसकी जांच करायी जाएगी। इसके साथ ही इस बार बड़े पैमाने पर टैक्स वसूली का अभियान चलाने की तैयारी है। जरूरत पड़ी तो टैक्स जमा ना करने वाले मकानों की कुर्की करायी जाएगी।
अरुण तिवारी, उपाध्यक्ष
नगर निगम

अफसरों के दबाव में पलट गए सदन के फैसले, कोई हटा ना पटल बदला


(रणविजय सिंह, पांच मई)

- नगर निगम के सदन की बैठक के बाद जारी हुए मिनट्स में बड़े पैमाने पर बदलाव को लेकर उठे सवाल
- पदों से ज्यादा तैनात अधिकारी और एक ही पटल पर वर्षों से काबिज बाबुओं के तबादले का कोई जिक्र नहीं

Ranvijay.singh1@timesgroup.com, लखनऊ
अफसरों के दबाव में नगर निगम ने सदन में लिए गए अपने कई फैसलों में बदलाव कर दिया है। शनिवार को मीटिंग के मिनट्स जारी होने पर पता चला कि अधिकारी और पुराने बाबुओं को लेकर हुए फैसलों को पलट दिया गया है। अपर नगर आयुक्त के तीन पदों पर तैनात सात अपर नगर आयुक्तों में से चार को हटाने और एक ही पटल पर वर्षों से जमे बाबुओं के तबादले को लेकर हुए फैसलों का जिक्र बैठक के मिनट्स में किया ही नहीं गया है।
नगर निगम के सदन की बैठक 29 मार्च को हुई थी। बैठक के तुरंत बाद नगर निगम की तरफ से सदन में लिए गए फैसलों की सूची जारी की गई। इसमें 14 बिंदुओं पर सदन ने अपना फैसला सुनाया था। इस बैठक में हुई बहस, आपत्तियों और फैसलों के मिनट्स शनिवार को जारी हुए। चौंकाने वाली बात यह थी कि इसमें बाकी बिंदुओं का तो जिक्र था लेकिन स्वीकृत पदों से ज्यादा तैनात अपर नगर आयुक्तों, एक ही पटल पर तीन वर्ष से ज्यादा समय से काबिज बाबुओं और दूसरे विभागों में जा चुके अधिकारियों को नगर निगम के कोष से वेतन दिए जाने पर लगायी गई रोक का कोई जिक्र नहीं था। इस बाबत पूछने पर कार्यकारिणी सदस्यों से लेकर नगर निगम के आला अधिकारियों तक के पास कोई सीधा जवाब नहीं है। वहीं

यह फैसले भी पलटे :
- शहर के विभिन्न स्थलों पर ग्राउंड बेस्ड मास्ट(मोनोपोल जीबीएम) स्थापित करने के निर्णय को मंजूरी दी थी लेकिन बैठक के मिनट्स में इस प्रस्ताव को खारिज दिखाया गया है।
- कार्यादायी संस्था के कर्मचारियों की बाइओमेट्रिक उपस्थिति करवाने और बैंकों के जरिए वेतन देने का फैसला हुआ था लेकिन इसका भी मिनट्स में जिक्र नहीं है।
- आवयकता से अधिक अधिकारियों को हटाने, सेवा निवृत्त को सेवा विस्तार दिए जाने और एक ही पद पर वर्षों से जमे कर्मचारियों, टैक्स सुपरिटेंडेंट्स व इंस्पेक्टरों को दूसरे जोन में भेजा जाना था लेकिन बैठक के मिनट्स से इन बिंदुओं को हटा दिया गया है।
- हैंड पंप/समर्सिबल की मरम्मत और सभी नालों और सीवर की सफाई 30 अप्रैल तक पूरी की जानी थी, जो अब तक नहीं हो सकी है।

तबादले के बाद भी जमे रहे अधिकारी :
नगर निगम के अपर नगर आयुक्त पीके श्रीवास्तव का तबादला मथुरा वृंदावन नगर निगम के लिए 27 फरवरी को हो चुका है। इसके बावजूद उन्हें अब तक रिलीव नहीं किया गया है। जोनल अफसर संजय ममगई तबादला नगर पालिका परिषद फरुखाबाद के लिए हो चुका है। वह भी अभी लखनऊ में ही जमे हैं। एक अन्य अपर नगर आयुक्त नंदलाल सिंह भी तबादले के बाद भी महकमे में बने हुए हैं।

अभी मैने बैठक के मिनट्स देखे नहीं हैं। रविवार को लखनऊ वापस आ रही हूं। बैठक के मिनट्स पढ़ने के बाद ही इस बारे में कुछ बताया जा सकता है। यह देखना पड़ेगा कि सदन के बाद इन बिंदुओं को हटाकर ही भेजा गया है या फिर मिनट्स तैयार करने में अधिकारियों की लापरवाही है।
संयुक्ता भाटिया, महापौर
लखनऊ

यूजर चार्ज घोटाला : तीन करोड़ 40 लाख वसूले लेकिन दस्तावेजों में दिखाया शून्य

(रणविजय सिंह, चार मई)

- नगर निगम के मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी कार्यालय में गड़बड़ी के आरोप, अधिकारियों की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल
- हर महीने जमा होते थे लाखों रुपये लेकिन अधिकारियों ने कोई रकम जमा ना होने की लगा दी रिपोर्ट, खुलासे से हड़कंप

Ranvijay.Singh1@timesgroup.com, लखनऊ
नगर निगम में कूड़ा उठान के नाम पर तीन करोड़ 40 लाख रुपये के गबन का खुलासा होने से महकमे में हड़कंप मच गया है। हर घर से कूड़ा उठाने के एवज में पिछले साल अप्रैल से इस साल फरवरी तक नगर निगम ने करीब तीन करोड़ 40 लाख रुपये वसूले लेकिन दस्तावेजों में उसे शून्य दिखा दिया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि हर महीने लाखों रुपये की वसूली करने वाले अधिकारी इसे बड़ी चालाकी से कोई वसूली ना होने का दावा करते रहे। कार्रवाई से बेखौफ अधिकारियों ने सदन में पेश किए गए बजट में भी यूजर चार्ज के तौर पर एक भी रुपया जमा ना होने की रिपोर्ट लगा दी।
कार्यदायी संस्था और निगरानी करने वाले अधिकारियों से पूछताछ में नगर निगम के खाते में जमा की गई रकम का ब्योरा और भुगतान के हर दस्तावेज पर पर्यावरण अभियंता पंकज भूषण के दस्तखत सामने आने के बाद मामले का खुलासा हुआ। इसके बाद उपाध्यक्ष अरुण तिवारी ने इस पूरे मामले की जांच के आदेश देते हुए मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी निजलिंगप्पा को नोटिस जारी करते हुए जवाब-तलब किया है। आला अधिकारियों की नाक के ठीक नीचे इतना बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद नगर निगम में हड़कंप मच गया है। अधिकारियों के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि जब हर महीने लाखों रुपये की वसूली होती रही और फरवरी तक एक करोड़ 40 लाख रुपये जमा कराया गया तो यह रकम आखिर गई कहां? मामले को सदन में उठाने वाले पार्षद और कार्यकारिणी सदस्य विजय कुमार गुप्ता ने महकमे में बड़े पैमाने पर गबन और घोटाले के आरोप लगाते हुए इसकी जांच कराने की मांग की है। उन्होंने इसमें कई बड़े अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप भी लगाया है।

पार्षदों की शिकायत पर सदन ने दिए थे जांच के आदेश :
सदन में रखे गए बजट में अधिकारियों ने यूजर चार्ज के तौर पर एक भी रुपये की वसूली ना होने का दावा किया था। इसपर आपत्ति जताते हुए मालवीय नगर वार्ड की पार्षद ममता चौधरी और न्यू हैदरगंज प्रथम वार्ड के पार्षद विजय कुमार गुप्ता ने सवाल उठाया था। इन पार्षदों के मुताबिक वार्ड में हर घर से 100-100 रुपये की वसूली हो रही है। पार्षदों ने नागरिकों से वसूली होने के बावजूद यूजर चार्ज के मद में कोई रकम ना होने पर संदेह जताते हुए जांच की मांग की थी। इसके बाद सदन ने जांच का आदेश दिया था।

एजेंसी पर शक था लेकिन दागी निकले अधिकारी :
कार्यकारिणी सदस्य राजकुमार सिंह, गिरीश कुमार मिश्रा, मोहम्मद सगीर और विजय कुमार गुप्ता ने कई इलाकों में वसूली होने के बावजूद नागरिकों को बिल ना दिए जाने की शिकायत करते हुए कंपनी की भूमिका पर शक जताया था। हालांकि शुरूआती जांच में नगर निगम अधिकारियों की भूमिका पर ही सवाल उठने लगे हैं। उपाध्यक्ष अरुण तिवारी के मुताबिक सामने आए दस्तावेजों में साफ है कि कंपनी ने नागरिकों से वसूली गई रकम नगर निगम के हवाले कर दी लेकिन अधिकारियों ने इस मद के लिए तैयार रिपोर्ट में खेल किया।

नागरिकों से वसूली गई रकम हर महीने जमा करायी गई। इसका पूरा रेकॉर्ड मौजूद है। ऐसे में एक भी रुपया यूजर चार्ज जमा ना होने की बात सही है। ऐसा क्यों और कैसे हुआ? इसको लेकर मैं कुछ नहीं कह सकता। वसूली गई रकम से जुड़े सभी दस्तावेज मेरे पास हैं। जब भी मांगा जाएगा, मैं मुहैया करा दूंगा।
पंकज भूषण, पर्यावरण अभियंता
नगर निगम

मामला काफी गंभीर है। इस संबंध में मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है। जांच का आदेश भी जारी कर दिया गया है।
अरुण तिवारी, उपाध्यक्ष
नगर निगम

नगद भुगतान के बहाने हर महीने डेढ़ करोड़ की बंदरबांट


(रणविजय सिंह, दो मई)

- नगर निगम के कार्यकारिणी सदस्यों ने किया चौंकाने वाला खुलासा, अपर नगर आयुक्त ने जांच के लिए बनायी कमिटी
- सफाई कर्मचारियों की बैंक पास बुक में हुई एंट्री और उनके लिखित बयान लेकर पार्षदों ने आला अधिकारियों को सौंपे

Ranvijay.Singh1@timesgroup.com, लखनऊ
निजी एजेंसियों की तरफ से वार्डों में लगाए गए सफाई कर्मचारियों को नगद भुगतान के बहाने हर महीने एक से ड़ेढ़ करोड़ रुपये की बंदरबांट हो रही थी। आरोप है कि औसतन हर वार्ड में ऐसे 30 कर्मचारी लगाए गए हैं, जिनमें से आधे महज फर्जीवाड़े के लिए कागजों पर ही तैनात हैं। यही नहीं नगर निगम के खाते से इन कर्मचारियों के नाम पर हर महीने साढ़े सात हजार रुपये जारी किया जाता है जबकि कर्मचारियों को 5500 रुपये नगद भुगतान कर करोड़ों के वारे न्यारे किए जा रहे थे। कार्यकारिणी सदस्यों ने अपर नगर आयुक्त और नगर आयुक्त को पिछले दो साल के दरम्यान इन कर्मचारियों के बैंक खातों का ब्योरा और दूसरे दस्तावेज सौंपे हैं। इसके बाद इस मामले में जांच शुरू हो गई है।
कार्यकारिणी सदस्य राजकुमार सिंह और विजय कुमार गुप्ता ने इस बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा करते हुए इस खेल में महकमे के कई बड़े अधिकारियों के शामिल होने की आशंका जतायी है। राजकुमार सिंह के मुताबिक कार्यदायी संस्था के कर्मचारियों की बायोमीट्रिक उपस्थिति का आदेश जारी होने के बावजूद भी इसे लागू नहीं किया गया। यही नहीं अधिकारियों ने बैंक खातों में सीधे वेतन भेजने की व्यवस्था को अचानक ही बदल दिया गया। इसका फायदा उठाते हुए कार्यदायी संस्था ने अधिकारियों संग मिलकर वेतन घोटाला कर डाला। विजय कुमार गुप्ता के मुताबिक लखनऊ के 110 वार्डों में करीब 3000 सफाई कर्मचारी लगे हैं। आरोप है कि इनमें से 1500 कर्मचारी महज कागजों पर ही हैं, जिनके वेतन के तौर पर जारी होने वाला करीब डेढ़ करोड़ रुपये निजी एजेंसी अपने मुनाफे और महकमे के अधिकारियों को कमीशन बांटने में खर्च करती है। कार्यकारिणी सदस्य राजकुमार सिंह ने इन आरोपों के समर्थन में सफाई कर्मचारियों की पासबुक अधिकारियों के सामने पेश कर दी। इसमें वर्ष 2016 तक बैंक खातों में पैसा भेजा जाता था लेकिन उसके बाद यह व्यवस्था बदल दी गई और नगर निगम कर्मचारियों के बजाय एजेंसियों को भुगतान करने लगा। इसको लेकर पार्षदों ने 29 मार्च को हुए सदन में भी आवाज उठायी थी, हालांकि उस समय इसे महज आरोप मानते हुए गंभीरता से नहीं लिया गया था।

सफाई कर्मचारियों के लिए नगर निगम हर महीने साढ़े आठ हजार रुपये जारी करता है। इसमें से एक हजार के करीब एजेंसी का कमीशन होता है। इस कटौती के बाद भी कर्मचारियों को साढ़े सात हजार रुपये मिलना चाहिए लेकिन उन्हें महज 5500 रुपये भुगतान हो रहा है। इसके दस्तावेज अधिकारियों को सौंप दिए गए हैं।
राजकुमार सिंह, कार्यकारिणी सदस्य
नगर निगम


मैने अपने वार्ड में कभी भी निजी एजेंसी के सभी कर्मचारी एक साथ नहीं देखे। जितने कर्मचारियों का दावा कर नगर निगम से भुगतान लिया जा रहा है, उसका आधा कर्मचारी भी काम नहीं कर रहा। फर्जी कर्मचारियों के नाम पर करीब एक से ड़ेढ़ करोड़ रुपये का खेल हो रहा है।
विजय कुमार गुप्ता, कार्यकारिणी सदस्य
नगर निगम


कार्यकारिणी सदस्यों की तरफ से शिकायत हुई है। इसके बाद इस मामले की जांच शुरू कर दी गई है। जोनल अधिकारियों से एजेंसियों के सफाई कर्मचारियों का ब्योरा मांगा गया है। जांच के बाद दोषी पायी गई एजेंसियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
नंदलाल सिंह, अपर नगर आयुक्त
नगर निगम

तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपन...