Tuesday, 8 August 2017

अपनों के लिए दिल्ली आईआईटी से पीएचडी अभ्यर्थी भी खारिज


  (रणविजय सिंह, आठ अगस्त, पार्ट टू)
लविवि की इंजीनियरिंग फैकल्टी के इंटरव्यू के लिए आईआईटी दि से पीएचडी कर चुके अभ्यर्थियों को कॉल लेटर नहीं भेजा गया। नेट, जेआरएफ, एसआरएफ, अपने नाम पेटेंट तक करा चुके और कई अंतर्राष्ट्रीय पेपर प्रकाशित करा चुके अभ्यर्थी भी दरकिनार कर दिए गए। इंटरव्यू में न बुलाए गए अभ्यर्थियों का आरोप है कि इंटरव्यू के लिए जिन 15 अभ्यर्थियों को बुलाया गया है, उनमें से कई ऐसे हैं जो सामान्य पीएचडी किए हुए हैं। लविवि प्रशासन पारदर्शी तरीके से कॉल लेटर भेजे जाने का दावा कर रहा है लेकिन निराश अभ्यर्थियों के मुताबिक शॉर्ट लिस्ट करने का क्राइटेरिया से लेकर मामूली जानकारियां तक ना तो वेबसाइट पर डाली जा रही हैं और ना ही पूछने पर बतायी जा रही हैं।
इंजीनियरिंग फैकल्टी के लिए शुक्रवार तक चले इंटरव्यू को लेकर मनमानी और गड़बड़ियों के आरोप तेज हो गए हैं। कैमिस्ट्री और फिजिक्स के लिए हुए इंटरव्यू में शामिल किए गए अभ्यर्थियों और इससे वंचित हुए अभ्यर्थियों की योग्यता लेकर सवाल उठ रहे हैं। आईआईटी दिल्ली से पीएचडी करने वाले ज्ञानेंद्र ने बताया कि जेआरएफ के बाद पीएचडी के अलावा गेट भी क्लियर किया है। इसके अलावा कई अंतर्राष्ट्रीय जनरल में रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुका है। इसके बावजूद लविवि ने इंटरव्यू के लिए कॉल नहीं किया। आईआईटी दिल्ली से ही पीएचडी करने वाले एक अन्य अभ्यर्थी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि उसने भी फिजिक्स विभाग के लिए आवेदन किया था। उन्हें भी इंटरव्यू के लिए कॉल लेटर नहीं भेजा गया। इन दोनों अभ्यर्थियों ने चयनित हुए अभ्यर्थियों की सूची मांगी तो अधिकारी आनाकानी करने लगे। ज्ञानेंद्र ने बताया कि शॉर्ट लिस्टिंग का पूरा क्राइटेरिया लविवि ने गोपनीय रखा। इंटरव्यू के लिए चयनित अभ्यर्थियों का एपीआई भी सार्वजनिक नहीं किया गया। इससे जुड़ी जानकारियां वेबसाइट पर भी नहीं डाली गईं। कैमिस्ट्री विभाग के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थी देवेंद्र मिश्रा ने किसी तरह लिस्ट प्राप्त की तो उसमें कई अभ्यर्थी ऐसे भी चयनित हुए हैं, जिन्होंने बिना जेआरएफ के ही पीएचडी कर रखी है।

अदालत जाने की तैयारी में परेशान अभ्यर्थी :
मनमानी और गड़बड़ी के आरोपों के बीच अभ्यर्थियों को अपना एपीआई स्कोर तक जानने के लिए दर दर भटकना पड़ रहा है। देवेंद्र मिश्रा ने बताया कि एलयू के रजिस्ट्रार, कुलपति और कुलाधिपति को इस गड़बड़ी से अवगत कराया जा चुका है। इसके बावजूद इंटरव्यू पूरे करवा दिए गए। ऐसे में इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली गई है।

सभी अभ्यर्थियों का मूल्यांकन हमने जिस प्रारूप पर किया है, उसका ब्योरा कुलपति को भेजा जा चुका है। वेबसाइट पर जानकारी नहीं दी गई है लेकिन इसका मतलब गड़बड़ी होना नहीं है। शिकायतें होने की जानकारी है लेकिन सभी का निराकरण किया जाएगा।
डॉ़ आरएस गुप्ता, इंचार्ज
इंजीनियरिंग फैकल्टी

लविवि में इंजीनियरिंग फैकल्टी शुरू, भर्तियों में खेल

(रणविजय सिंह, तीन अगस्त, पार्ट वन)

लविवि के इकोनॉमिक्स, कॉमर्स और संस्कृत विभाग में शिक्षकों की नियुक्तियां खारिज होने के बाद अब इंजीनियरिंग फैकल्टी के लिए हो रहे इंटरव्यू पर भी विवाद खड़ा हो गया है। इस साल शुरू हो रही बीटेक कक्षाओं के लिए शिक्षकों का इंटरव्यू गुरुवार को शुरू हुआ लेकिन इसमें शामिल होने से वंचित रहने वाले एक अभ्यर्थी ने पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए रजिस्ट्रार, कुलपति और राजभवन से बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के आरोप लगा दिए हैं। अभ्यर्थी के मुताबिक इंटरव्यू के लिए अभ्यर्थियों का चयन करने का कोई पारदर्शी मानक नहीं तय किया गया और नेट, पीएचडी और अनुभवी अभ्यर्थियों को मनमाने तरीके से बाहर कर ऐसे अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए बुला लिया गया जो बिना नेट किए पीएचडी हैं।

एपीआई स्कोर 49 था लेकिन दिए गए 48 :
राजभवन में शिकायत दर्ज कराने वाले देवेंद्र के मुताबिक वह सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में नियुक्त हैं। लविवि कंट्रैक्चुअल शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन देख उन्होंने आवेदन किया। इंटरव्यू से पहले उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई। अचानक दो अगस्त को इंटरव्यू की सूचना मिली लेकिन उन्हें कोई कॉल लेटर या सूचना नहीं दी गई। पूछने पर बताया गया कि केवल उन्हीं अभ्यर्थियों को बुलाया गया है, जिनके एपीआई स्कोर 48 से ज्यादा हैं। देवेंद्र का दावा है कि उन्होंने दबाव डालकर अपना एपीआई स्कोर दोबारा गिनवाया तो उनके नंबर 49 आए लेकिन अधिकारी इसे संशोधित करने को तैयार नहीं थे। अधिकारियों ने उनके पेटेंट के लिए एक नंबर दिया ही नहीं था। देवेंद्र ने बताया कि हर सीट के लिए आठ अभ्यर्थियों को बुलाया गया था लेकिन केवल कैमिस्ट्री में ही एक सीट पर सात अभ्यर्थी बुलाए गए।

इंजीनियरिंग फैकल्टी के लिए इंटरव्यू शुक्रवार तक चलेगा। यह सही है कि एक सीट के लिए आठ अभ्यर्थियों को बुलाया गया है। सवाल उठाना अभ्यर्थियों का अधिकार है, वह इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
प्रो़ राजकुमार सिंह, रजिस्ट्रार
लविवि

मैं इंजीनियरिंग के डीन, एलयू के कुलपति और रजिस्ट्रार के पास गया। उन्हें सारी जानकारी दी लेकिन इन सभी ने अब कुछ न होने की बात कह पल्ला झाड़ लिया। डीन ने माना कि एपीआई स्कोर में गलती हो गई है लेकिन वह इसमें सुधार करने को तैयार नहीं थे। अब मेरे पास अदालत जाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
देवेंद्र मिश्रा, अभ्यर्थी

नहीं चली मनमानी, सभी नियुक्तियां खारिज

(रणविजय सिंह, 19 जून, पार्ट टू)

एलयू के कई विभागों में प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और असोसिएट प्रोफेसरों की नियुक्तियों को कार्य परिषद ने हरी झंडी देने से इंकार कर दिया है। पिछले महीने इंटरव्यू के बाद इन पदों के लिए नियुक्ति का प्रस्ताव सोमवार को कार्य परिषद के सामने मंजूरी के लिए रखा गया था, जिन्हें खारिज कर दिया गया। एनबीटी ने 30 मई को खबर प्रकाशित करते हुए संस्कृति विभाग समेत कुछ विभागों में मानकों की अनदेखी कर अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए बुलाए जाने का खुलासा किया था। सोमवार को कार्य परिषद ने एनबीटी की खबर पर मुहर लगाते हुए शिक्षक भर्ती से जुड़े सभी विज्ञापन और इंटरव्यू को खारिज कर दिया। साथ ही नए सिरे से विज्ञापन कर भर्तियों की कवायद शुरू करने का फैसला लिया है। कार्य परिषद के इस फैसले का असर उन विभागों पर भी पड़ेगा, जिनपर भर्ती के लिए जल्द ही इंटरव्यू होने का इंतजार किया जा रहा था।

जिसने कभी पीएचडी नहीं करायी, उन्हें भेज दिया था कॉल लेटर :
एलयू के संस्कृत विभाग में असेस्टेंट प्रोफेसर डॉ़ प्रयाग नारायण मिश्रा ने असोसिएट प्रोफेसर के लिए आवेदन किया था लेकिन उन्हें कॉल लेटर नहीं भेजा गया था। इस पद के लिए जिन्हें कॉल लेटर भेजा गया, उनमें शामिल डॉ़ विजय कर्ण, डॉ़ प्रमोद भारती, डॉ़ रीता तिवारी और डॉ़ विजय प्रताप सरकारी डिग्री कॉलेज और डॉ़ ब्रह्मनंद पाठक एक निजी डिग्री कॉलेज में शिक्षक हैं। आरोप है कि इनमें से किसी ने कभी कोई पीएचडी नहीं करायी। चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसे अभ्यर्थियों को कॉल लेटर भेजने वाले एलयू के अधिकारी, एलयू में ही पिछले 10 वर्ष से पीएचडी करा रहे शिक्षकों को इंटरव्यू के लिए बुलाया ही नहीं।

अनुभव होने पर भी कर दया था बाहर :
संस्कृत विभाग के ही सहायक प्राध्यापक डॉ़ देवेश कुमार मिश्रा ने एलयू पर सिलेक्शन के नाम पर मनमानी के गंभीर आरेाप लगाए थे। उनके मुताबिक असोसिएट प्रोफेसर के लिए आठ साल का टीचिंग एक्सपीरिएंस मांगा गया था लेकिन नौ साल का अनुभव होने के बावजूद उन्हें कॉल लेटर नहीं भेजा गया। डेढ़ साल पहले बनी स्क्रीनिंग कमिटी ने उनका नाम लिस्ट से बाहर कर दिया था। पिछले महीने अभ्यर्थियों को कॉल लेटर भेजा गया तो उन्होंने पूछताछ शुरू की लेकिन अधिकारियों को कोई सही जवाब नहीं दिया था।

पिछली सरकार में तय हुए थे नाम :
एलयू में शिक्षकों की भर्ती के लिए जितने भी अभ्यर्थियों का इंटरव्यू हुआ था, उनका नाम पिछली सरकार में बनी स्क्रीनिंग कमिटी ने तय किया था। माना जा रहा था कि इनमें से कई अभ्यर्थियों को सिलेक्ट करने के लिए स्क्रीनिंग कमिटी ने मानकों का पालन नहीं किया था। यही वजह है कि एनबीटी में खबर प्रकाशित होने के बाद इस संबंध में कई शिक्षकों ने राजभवन तक शिकायत दर्ज करायी। माना जा रहा है कि इसके बाद राजभवन ने एलयू से रिपोर्ट तलब कर ली थी। यही वजह है कि कार्य परिषद ने इंटरव्यू करने के बाद भी सभी भर्तियों को निरस्त करते हुए नए सिरे से विज्ञापन कर भर्तियां करने का फैसला किया है।

करीब डेढ़ साल पहले स्क्रीनिंग कमिटी ने जिन अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए चुना था, उनकी शिकायत राजभवन से हुई थी। इस बीच भर्तियों से जुड़े कई नियम भी बदल गए हैं। ऐसे में राजभवन से निर्देश मिलने के बाद नए से भर्तियों का विज्ञापन किया जाएगा।
प्रो़ एनके पांडेय, प्रवक्ता
एलयू

एलयू मेहरबान तो असोसिएट प्रोफेसर के लिए पीएचडी की भी जरूरत नहीं

(रणविजय सिंह, 29 मई, पार्ट वन)
एलयू के कई विभागों में मंगलवार को प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और असोसिएट प्रोफेसरों की नियुक्ति के लिए होने वाली चयन समिति की बैठक पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। गड़बड़ियों और मनानी की आशंका जताते एलयू के कुछ शिक्षकों ने कुलपति डॉ़ एसपी सिंह और राजभवन से चयन समिति की बैठक स्थगित करने और इसकी जांच करवाने की मांग तक कर डाली है। आरोप है कि इन पदों के लिए केवल वही अभ्यर्थी आवेदन कर सकते थे, जो पीएचडी करवा रहे हों। इसके उलट इंटरव्यू के लिए कई ऐसे अभ्यर्थियों को कॉल लेटर भेज दिया गया है, जिन्होंने कभी किसी रिसर्च स्कॉलर को पीएचडी करायी ही नहीं। इसमें कुछ नाम निजी डिग्री कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के भी हैं।
एलयू के संस्कृत विभाग में असेस्टेंट प्रोफेसर डॉ़ प्रयाग नारायण मिश्रा ने असोसिएट प्रोफेसर के लिए आवेदन किया था। डेढ़ साल पहले असोसिएट प्रोफेसर के लिए बनी स्क्रीनिंग कमिटी ने उनका नाम ही नहीं भेजा, जबकि वर्ष 2004 में उन्हें बकायदा इसी पद के लिए लिखित परीक्षा और इंटरव्यू तक के लिए बुलाया गया था। हालांकि उस समय उनका चयन नहीं हो सका था। आज होने वाली चयन समिति पर उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि इस पद के लिए डॉ़ विजय कर्ण, डॉ़ प्रमोद भारती, डॉ़ रीता तिवारी और डॉ़ विजय प्रताप सरकारी डिग्री कॉलेज और डॉ़ ब्रह्मनंद पाठक एक निजी डिग्री कॉलेज में शिक्षक हैं। आरोप है कि इनमें से किसी ने कभी कोई पीएचडी नहीं करायी। चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसे अभ्यर्थियों को कॉल लेटर भेजने वाले एलयू के अधिकारी, एलयू में ही पिछले 10 वर्ष से पीएचडी करा रहे शिक्षकों को इंटरव्यू के लिए बुलाया ही नहीं।
मनमानी का आरोप :
संस्कृत विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ़ देवेश कुमार मिश्रा ने एलयू पर सिलेक्शन के नाम पर मनमानी के गंभीर आरेाप लगाए। उनके मुताबिक असोसिएट प्रोफेसर के लिए आठ साल का टीचिंग एक्सपीरिएंस मांगा गया था लेकिन नौ साल का अनुभव होने के बावजूद उन्हें कॉल लेटर नहीं भेजा गया। डेढ़ साल पहले बनी स्क्रीनिंग कमिटी ने उनका नाम लिस्ट से बाहर कर दिया था। अब सिलेक्शन कमिटी की बैठक होने पर उन्होंने इसका कारण पूछा तो उन्हें इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। आरोप है कि अधिकरी उन्हें इधर से उधर दौड़ाते रहे।

चयन समिति की बैठक तय होने के बाद इन अभ्यर्थियों ने मुझे इसकी शिकायत की। डेढ़ साल पहले स्क्रीनिंग कमिटी ने इन शिक्षकों के नाम तय किए थे। अब सभी को कॉल लेटर भेजे जा चुके हैं। हालांकि इसके बाद भी शिकायत का संज्ञान लिया जाएगा। गड़बड़ी या पक्षपात साबित हुआ तो कार्रवाई की जाएगी।
डॉ़ एसपी सिंह, कुलपति
एलयू 

तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपन...