Monday, 13 February 2012

किसानों के खेतों पर वोटों की फसल


                                      रणविजय सिंह
लखनऊ, 12 फरवरी : गेहूं कट चुका था। किसान खरीफ की तैयारी में लगे हुए थे। इसी बीच एक खबर से किसानों के पैर ठिठक गए। कई अखबारों में लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण के लिए सरोजनीनगर की जमीनों के अधिग्रहण की सूचना छपी। विरोध का स्वर मुखर भी नहीं हुआ था कि क्षेत्र में यह चर्चा आम हो गई कि जमीन न देने वाले किसानों से सरकार जबरन भूमि ले लेगी। फिर क्या था, आनन-फानन संगठन खड़ा हुआ और संघर्ष की रणनीति बन गई। सभी सियासी दलों से सहयोग मांगा गया। ऐन वक्त पर बसपा प्रत्याशी ने चुनाव की खेती में इस मुद्दे पर वोटों की फसल काटी। जीतकर विधानसभा पहुंचे, लेकिन मुड़कर पीछे नहीं देखा। किसान ठगे से रह गए। इन चुनावों में वह प्रत्याशी मैदान में नहीं हैं, लेकिन किसान उसी जगह खड़ा है।
छह वर्ष पहले (2006) प्रदेश सरकार ने लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण के लिए जमीन अधिग्रहण का निर्णय लिया। इसके लिए लखनऊ और उन्नाव के करीब 90 गांवों के करीब 40,000 से ज्यादा किसानों की खेतिहर जमीन ली जानी थी। जानकारी मिलने पर किसानों के विरोध पर वार्ताओं का दौर शुरू हुआ। सरकार डीएम सर्किल रेट पर मुआवजा दे रही थी, जबकि किसान बाजार भाव चाह रहे थे। वार्ताओं में एक वर्ष बीत गया और इसी बीच विधानसभा चुनाव आ गया। प्रोजेक्ट समाजवादी पार्टी की सरकार में आया था लिहाजा बहुजन समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी इरशाद खां ने इसे मुद्दा बनाकर किसानों से 33 लाख रुपये प्रति बीघा दिलवाने का वादा किया। इसका असर भी हुआ, वे विधायक बन गए, लेकिन मुआवजा नहीं बढ़ा। पुरानी दरों पर ही अधिग्रहण के प्रयासों का किसानों ने एक बार फिर संगठित होकर विरोध किया। तमाम प्रयासों के बावजूद सरकार केवल कुडौनी ग्राम सभा की जमीन ही ले सकी है। इस विधानसभा चुनावों में एक बार फिर किसान इस मुद्दे पर संगठित हैं। उनके वोट परिणाम पर असर डालेंगे। इस बात से सभी दल परिचित हैं, लिहाजा पांच वर्ष तक किसानों से दूरी बनाने वाले नेता भी उनकी दहलीज पर चक्कर लगा रहे हैं। तमाम वादों और दावों के बीच किसान खामोश हैं। शायद उसके बंद लबों में छुपा फैसला ईवीएम मशीन के जरिए बाहर आए।
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औद्योगिक विकास से हमारा कोई बैर नहीं है, लेकिन सरकार और व्यवस्था में शामिल लोगों की नीयत पर विश्र्वास करना मुश्किल है। राजधानी के 70 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयों में से ज्यादातर बंदी की कगार पर हैं। ऐसे में खेती योग्य जमीनों का अधिग्रहण वो भी औने पौने दामों पर नहीं होने देंगे। खेत देने के बाद रोजगार की भी व्यवस्था होनी चाहिए। 
मनोज सिंह, 
अध्यक्ष लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण किसान संघर्ष समिति
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प्रभावित क्षेत्र
 बंथरा, नरकुर, तिनवर, कुडौनी, बीबीपुर, भावापुर, खसवारा, पहाड़पुर, वखतखेड़ा, सराय शाहजादी, दादूपुर, औरावां, रामचौरा, गढ़ी चुनौटी, भटकांव, बेती, हरौनी, लतीफ नगर, रहीमनगर, पडि़याना, बनी, मेमोरा समेत करीब सरोजनीनगर के 45 गांव।

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