Wednesday, 25 January 2012

हंगामे जाग उठते हैं अक्सर घुटन के बाद

रणविजय सिंह लखनऊ, 23 जनवरी : अव्यवस्था के खिलाफ पैदा हुई घुटन उन्हें बर्दाश्त नहीं थी। व्यवस्था के प्रति लोगों में निराशा को वह खत्म करना चाहते थे। आक्रोश भी था और खीझ भी। तय कर लिया कि गलत नहीं होने देंगे। बस एक संकल्प और शुरू हो गई लड़ाई शिक्षक डॉ. आलोक चांटिया की। हथियार बने सिर्फ दस रुपये और प्रार्थना पत्र। इन्हीं के सहारे उन्होंने अव्यवस्था का साथ दे रहे लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया। अंत में जीत हुई सच की। वर्ष 2001, लखनऊ विश्र्वविद्यालय में मानकों की अनदेखी कर करीब 52 शिक्षकों की नियुक्ति हुई। पूरी प्रक्रिया में मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ीं। तत्कालीन कुलपति, कुलसचिव समेत व्यवस्था में शामिल हर अधिकारी ने जैसे आंख और कान ही बंद कर लिए थे। शिकायती पत्र फाइलों का वजन बढ़ाते रहे और नियुक्ति पाए शिक्षकों को प्रोन्नति समेत अन्य सुविधाओं का लाभ मिलता रहा। इस अव्यवस्था से खीझ कर श्री जय नारायण वोकेशनल डिग्री कॉलेज में रीडर डॉ.आलोक चांटिया ने गलत का विरोध करने की पहल की। उन्होंने राजभवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक गुहार लगाई। प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए उन्होंने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बनी निगम कमेटी, लविवि कुलपति व यूजीसी को शिकायती पत्र भेजा। राजभवन को भी घटना से अवगत कराया। लगातार चार वर्ष तक संघर्ष फाइलों तक ही सिमटा रहा, लेकिन धैर्य नहीं डिगा। इसी बीच वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार विधेयक पास हुआ। बस फिर क्या था इसी के सहारे डॉ.चांटिया ने विश्वविद्यालय प्रशासन के सच से सबको अवगत कराया। आरटीआइ के तहत उन्होंने लविवि कुलसचिव से पूछा कि एक स्थाई पद के सापेक्ष दो अंशकालिक शिक्षकों की नियुक्ति हो सकती है, लेकिन जब शासन द्वारा नए पद ही नहीं सृजित हुए तो इन 52 अंशकालिक शिक्षकों की नियुक्ति किसकी जगह पर हुई। लविवि को जवाब देना पड़ा लेकिन वे उनके तर्क निराधार साबित हुए। लिहाजा लविवि कुलसचिव ने लिखकर दिया कि ये शिक्षक अर्ध-स्थाई हैं। वहीं यूजीसी केवल स्थाई शिक्षकों को ही प्रोजेक्ट देती है, और इनमें से कई शिक्षक यूजीसी के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। यूजीसी के मानकों के अनुसार अर्ध-स्थाई शिक्षक पद है ही नहीं। दूसरे सवाल में इन शिक्षकों की योग्यता की जानकारी मांगी गई। जो जवाब सामने आए वो चौंकाने वाले थे। नियुक्ति के समय 52 में से करीब 40 शिक्षक न्यूनतम योग्यता भी नहीं रखते थे। डॉ.चांटिया ने इन कई जानकारियों की प्रति के साथ मानव संसाधन मंत्रालय में एक बार फिर शिकायत की। कार्यवाही के तौर पर वर्ष 2010 में यूजीसी को जांच के निर्देश दिए गए। इस बीच लविवि प्रशासन ने इन शिक्षकों को सीनियर स्केल देने की तैयारी कर ली। इसे रोकने के लिए भी डॉ.चांटिया ने आरटीआइ का प्रयोग किया। तब तक मामला कोर्ट में भी पहुंच चुका था। हाई कोर्ट नियुक्तियों पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे चुका था। लिहाजा उन्होंने कोर्ट से पूछा कि अगर इनको प्रोन्नति का लाभ दिया जा रहा है, तो यथा स्थिति का क्या मतलब है। तब जाकर विश्र्वविद्यालय ने वर्ष 2011 में इन शिक्षकों की प्रोन्नति और उससे जुड़े सारे लाभ रोके।

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