Saturday, 29 November 2014

जब तक रहा, अपनों से दूर रहा दिल्ली में


दिल्ली स्टेशन पर उतरने के बाद मोबाइल चेक किया। एक में नेटवर्क नहीं था और दूसरे मोबाइल में बैलेंस। मेरे करीबियों के लिए मेरी यह हालत कोई नई बात नहीं है। मुझे भी इसकी आदत सी है, लिहाजा सोचा कि इंडिया हैबिटेट सेंटर में मीडिया ब्रीफिंग के बाद बैलेंस डलवा लूंगा। सुबह करीब 10 बजे से ब्रीफिंग शुरू हुई। बदिल्ली में होने के कारण मोबाइल रोमिंग में था और बैलेंस न होने के कारण उसमें न तो कॉल आ सकती थी और न ही जा सकती थी। शाम चार बजे हम सभी को वर्कशाप चलने के लिए कहा गया। बीच में आधे घंटे का समय था। इस बीच चाय की व्यवस्था थी। कलेजे पर पत्थर रखकर मैने चाय छोड़ी और मोबाइल में बैलेंस के लिए नेशनल हैबिटेट सेंटर से निकलकर लोधी रोड की दुकानों का रुख किया। करीब आधे घंटे तक पैदल मार्च के बाद हर दुकान से यही जवाब मिला कि यहां बीएसएनएल नहीं चलता लिहाजा वे मेरी कोई मदद नहीं कर सकते। अजब हालत थी, मोबाइल रिचार्ज हो नहीं सकता और मैं किसी को मदद के लिए कॉल कर नहीं सकता। थककर मैं चाय की दुकान पर बैठा। चाय की पहली घूंट भीतर गई तो ध्यान आया कि ई मेल से मदद मांगी जाए। लैपटॉप साथ था, दिल्ली रवाना होने से पहले आनंद भाई का डोंगल मिल गया था। उसका इस्तेमाल किया। शाम के पांच बज रहे थे। दिवस चतुर्वेदी और रोहित मिश्रा को ई मेल किया। कोई रिप्लाई नहीं आया तो अमर उजाला के अपने वरिष्ठ साथी ऋषि भाई साहब को ई मेल किया। उनका तुरंत रिप्लाई आया ‘ओके’। रिप्लाई देखकर राहत की सांस ली। मैने 50 रुपए के बैलेंस का अनुरोध किया था,  उन्होंने 200 डलवा दिए। हालांकि इसके बाद रोहित और दिवस की मदद भी प्राप्त हुई लेकिन मेरी मुश्किल खतम नहीं हुई। वापस हैबिटेट सेंटर पहुंचा तो चला कि टीम रवाना हो चुकी थी और मेरा रीइम्बर्समेंट भी नहीं बन पाया। खैर मैने आयोजकों को फोन किया तो उन्होंने मेरा चेक लखनऊ भेजने का भरोसा दिलाया। मुझे कुछ राहत मिली लेकिन नियती से जंग जारी थी। मैं मेट्रो से राजीव चौक पहुंचा तो देखा कि मेरा वह मोबाइल गायब है, जिसके बैलेंस के लिए मैं जूझ रहा था। मेरा नोकिया लूमिया चोरी हो चुका था और जो मोबाइल मेरे पास बचा था, उसमें अब भी नेटवर्क नहीं था। यानी सुबह से शाम तक जब तक दिल्ली में रहा, अपनों से दूर रहा।
 
 
 

Tuesday, 12 August 2014

साहब के मातहत भी रहेंगे एसी में, मरीजों को पंखे भी नसीब नहीं

रणविजय सिंह, लखनऊ
केजीएमयू प्रशासन को यहां भर्ती होने वाले मरीजों से ज्यादा अपने कर्मचारियों की सुविधाओं की चिंता है। जहां मरीजों को पंखे भी नसीब नहीं होते वहीं वीसी ऑफिस, फाइनेंस ऑफिसर के ऑफिस और रजिस्ट्रार ऑफिस के कर्मचारियों के लिए एसी लगाए जा रहे हैं। पल्मनरी मेडिसिन विभाग में भर्ती मरीजों को घर से पंखा लाना पड़ रहा है। विभाग के वार्ड में कहीं तो पंखे लगे ही नहीं और जहां लगे हैं उनमें से कई खराब पड़े हैं। मरीजों की इस दिक्कत से बेपरवाह अधिकारियों को कर्मचारियों की ही चिंता है। लिहाजा गर्मी बीतने के बाद भी उनके कमरों में एसी लगाया जा रहा है। केजीएमयू कर्मचारी संघ की तरफ से इस पर नाराजगी जताई जा रही है। संघ का कहना है कि केवल प्रशासनिक भवन के कर्मचारियों के लिए हो रही इस व्यवस्था का विरोध किया जाएगा।

मिलीभगत के आरोप

कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रजित राम का आरोप है कि गर्मी बीतने के बाद एसी क्यों लगाए जा रहे हैं। उनका दावा है कि करीब 40 एसी खरीदे गए हैं। इनका आने वाले आठ महीनों तक कोई खास इस्तेमाल नहीं होगा। ऐसे में इनकी वारंटी का भी पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाएगा। केजीएमयू के अधिकारी कंपनियों के साथ मिलीभगत कर ऐसा करते हैं।

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प्रशासनिक भवन में तैनात कर्मचारियों की तरफ से एसी लगाने का अनुरोध किया गया था। कंटीजेंसी के मद से एसी के लिए बजट दिया गया है। जिन विभागों में पंखे या कूलर नहीं हैं, उनके विभागाध्यक्ष की तरफ से पत्र आएगा तो वहां भी व्यवस्था कराई जाएगी।
- स्मृति लाल यादव, वित्त अधिकारी, केजीएमयू

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तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपन...