Sunday, 20 December 2020

तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपने बच्चे के जीवन को ना बचा पाता... रजनीश की आपबीत सुनकर मुझे यह भी आशंका होने लगी कि उसके बच्चे को वास्तव में कोई दिक्कत हुई थी, या फिर महज वसूली के लिए उसे बड़े अस्पतालों ने अपना जरिया बनाया था... घटनाक्रम ऐसा है जिसे सुनने के बाद आप भी यह सोंचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्या कथित तौर पर बड़े अस्पताल इलाज के नाम पर मरीज भर्ती कर तीमारदारों की जेब पर डकैती डालने पर आमादा हो गए हैं? 

मेरे बचपन के दोस्त रजनीश की पत्नी पिछले महीने अवध हॉस्पिटल में भर्ती हुईं। जिनका लगातार इलाज डॉक्टर मिताली दास साहा चल रहा था,  गर्भावस्था के दरम्यान हुए सभी टेस्ट में सब कुछ नॉर्मल था। ऑपरेशन होने तक सब नॉर्मल था और सर्जरी के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसके तुरंत बाद अचानक अस्पताल प्रबंधन ने बच्चे को दिक्कत होने की सूचना दी। बच्चे को पहले सीपैप ऑक्सीजन में रखा और फिर एनआईसीयू में भर्ती कर दिया। पूछने पर कोई ठोस वजह या दिक्कत बताने के बजाय केवल इतना ही बताते थे कि बच्चे की हालत काफी गंभीर है। कर्मचारी रजनीश को दवाओं, इंजेक्शन और सिरिंज की पर्ची पकड़ाते और हजारों रूपए की दवाएं अस्पताल के ही दवा काउंटर से खरीद कर भीतर भिजवा दी जातीं। दो दिन बाद डॉक्टरों ने कहा कि अब बच्चा सांस खींच नहीं पा रहा। ऐसे में इससे ज्यादा देर तक बच्चे को ऑक्सीजन पर नहीं रख सकते उसे वेंटीलेटर पर रखना होगा। शाम को रजनीश ने बहुत परेशान होते हुए मुझे फोन किया। उसने पूरी बात बताते हुए केजीएमयू या पीजीआई में कुछ जुगाड़ करने  बात की किया। मैने अपने करीबी दोस्त दिवस चतुर्वेदी को फोन किया। ऐरा मेडिकल कॉलेज में वेंटीलेटर की सुविधा है और वहां नवजात शिशुओं के विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो़ श्रीश भटनागर दिवस के परिचित हैं। मैने दिवस के जरिए उनसे बात की लेकिन पता
चला कि एरा मेडिकल कॉलेज को सरकार कोविड के लिए आरक्षित कर रखा है। ऐसे में नवजात शिशु को वहां भर्ती नहीं किया जा सकता। इसके बाद मैने अपने साथी जीशान से रात सात बजे बात की और केजीएमयू या पीजीआई में एक बच्चे को वेंटीलेटर पर भर्ती कराने का अनुरोध किया। जीशान ने केजीएमयू में बात की लेकिन वहां डॉक्टरों ने अगले दिन सुबह तक वेंटीलेटर खाली होने की उम्मीद जताते हुए करीब 10 बजे बच्चे को लाने का विकल्प  दिया। रजनीश को बताया तो उसने हामी भर दी। यह बात रजनीश ने अवध अस्पताल के डॉक्टरों को भी बता दी। इस बीच रात एक बजे अचानक अवध प्रबंधन (डॉ. जया भवनानी) बच्चे की हालत बहुत खराब होने की बात कहते हुए लगभग हाथ खड़े कर दिए और कारण यह बताया गया कि अवध हॉस्पिटल में बच्चों का वेंटिलेटर नहीं है वेंटिलेटर वाली एंबुलेंस  भी नहीं है इसलिए  उसे सहारा अस्पताल या अवध अस्पताल के ही पास बने नए अपोलो मेडिक्स में ले जाने की सलाह दी। इतनी (02:00am) रात किसे फोन करें, किसकी सलाह लें, किससे मदद मांगे? अवध हॉस्पिटल का  लगभग एक से डेढ़ लाख रुपए का बिल देने के बाद डिस्चार्ज कर बच्चों की डॉक्टर  (डॉ. जया भवनानी) सलाह पर रजनीश ने अपने नवजात बच्चे को अपोलो मेडिक्स में भर्ती करा दिया। बाद में कुछ लोगों ने बताया कि अवध हॉस्पिटल और अपोलो हॉस्पिटल प्रबंधन के बीच मरीजों को लेकर तालमेल है। कई विभागों के डॉक्टर भी दोनों जगह एक ही हैं। वहां पहुंचकर पता चला कि एक दिन की फीस इनके सारे चार्जेस मिलाकर है लगभग ₹100000 पड़ेगी। दूसरे दिन ही पैसा जमा करने के बाद इलाज कर रहे डॉक्टर से बात करने की इच्छा जतायी तो पता चला कि गलियारे में चलते हुए बात हो सकती है। रजनीश राजी हो गया तो उसे बताया गया कि उसके लिए भी कंसल़्टेंसी फीस जमा करनी पड़गी। चिंता, परेशानी और गुस्से को काबू में करते हुए रजनीश ने फीस भरी। इसके बाद चलते हुए डॉक्टर से बच्चे के बारे में पूछा तो डॉक्टर साहब (बच्चों के डॉ. निरंजन कुमार सिंह ) ने बताया कि बच्चे की हालत काफी खराब है। जांच के लिए एक सैंपल भेजा है जिसकी रिपोर्ट 10-15 दिन में आएगी। तब तक बच्चे को वेंटीलेटर पर ही रखना पड़ेगा। इतना कह डॉक्टर चले गए और रजनीश  गलियारे में खड़ा कांपते पैरों से वो बाहर आकर कुर्सी पर बैठा और उसके बाद लगा जैसे शरीर की सारी ताकत खतम हो गई। उठने का मन ही नहीं कर रहा था। बैठे बैठे सोंचने लगा  एक दिन का खर्च एक लाख और बच्चे को 15 -20 दिन रखना होगा  यानी कम से कम 15-20 लाख का खर्चा करने के बाद भी बच्चा बचेगा या नहीं? इसकी डॉक्टर  कोई गारंटी नहीं ले रहा। क्या करें क्या करें?  दिमाग ने काम करना बंद कर दिया...

इसी बीच जैसे भगवान ने मदद भेजना शुरू कर दिया। बडी बहन पूर्णिमा हाईकोर्ट में कार्यरत हैं। भाई की दिक्कत का जिक्र उन्होंने हाईकोर्ट में कार्यरत शैलेंद्र यादव जी से किया। शैलेंद्र जी ने अपने छोटे भाई जीतू यादव से बात की  जिनका स्वास्थ्य विभाग में अच्छा परिचय है अपने परिचित डॉ़  से फोन कर परामर्श किया तो पता चला कि इंदिरा नगर में (नेलसन हॉस्पिटल ,कपूरथला) डॉ़ अजय कुमार मिश्रा ऐसे मामलों के जानकार हैं। इसके बाद फोन पर डॉ़ मिश्रा से बात हुई तो उन्होंने बहुत ही सकारात्मक तरीके से बच्चे को लाने को कहा। इसके बाद रजनीश ने अपने रिस्क पर बच्चे को ओपोलो से डिस्चार्ज कराकर डॉ़ मिश्रा के पास ले गया। उन्होंने बच्चे को वेंटीलेटर पर रख इलाज शुरू किया। चार घंटे बाद ही बच्चे की हालत में सुधार देखते हुए उन्होंने उसे वेंटीलेटर से हटाकर ऑक्सीजन पर वापस ले लिया और 10 घंटे बाद बच्चे की हालत में इतना सुधार हो गया कि उसे ऑक्सीजन की जरूरत भी नहीं रही। बच्चा अपने आप सामान्य तरीके से सांस लेने लगा। इसके बाद एहतियातन डॉ़ मिश्रा ने बच्चे को 10 दिन तक अपनी निगरानी में रखा और 11वें दिन उसे डिस्चार्ज किया। रजनीश को इस पूरे 11 दिनों की कुल फीस जमा करनी पड़ी महज 60 हजार रूपए… 

अब सोंचिए जिस बच्चे के इलाज में अपोलो अस्पताल हर रोज एक लाख फीस जमा करा रहा था और जिंदगी बचने की गारंटी भी लेने को तैयार नहीं था। उसी बच्चे को महज एक दिन में ठीक कर 10 दिन भर्ती रखकर एक डॉक्टर ने महज 60 हजार रूपए में इलाज कर दिया इसे क्या कहेंगे? या तो इस मामले में अपोलो मेडिक्स के विशेषज्ञ इस मामले में मर्ज पकड़कर सही इलाज करने में फेल रहे या फिर इलाज जानते हुए भी वो जबरन मामले को उलझाकर वसूली कर रहे थे या फिर रजनीश अपने बच्चे को बड़े अस्पताल से निकालकर जिन दूसरे डाक्टर साहब के पास ले गए वहां चमत्कार हो गया…

तो क्या बड़े अस्पताल मरीज को भर्ती कर डकैती डालने पर आमादा हैं

समय रहते रजनीश ने अपने नवजात शिशु को अपोलो मेडिक्स से जबरन डिस्चार्ज न कराया होता तो मुझे आशंका है कि 15 से 20 लाख रूपए गंवाने के बाद भी अपन...