Saturday, 10 October 2020

अमेरिका में रजिस्ट्रेशन के बिना भारत में ही भारतीय कंपनियों से खरीद नहीं

मेक इन इंडिया पर भरोसा कर सस्ते, टिकाऊ और उपयोगी मेडिकल उपकरण बनाने वाली भारतीय कंपनियों के सामने यूपी में नई समस्या खड़ी हो गई है। जिलों के सीएमओ इन कंपनियों से तब तक सामान खरीदने को तैयार नहीं है जब तक ये अमेरिका के यूएस एफडीए से रजिस्ट्रेशन नहीं करवा लेते। अब ये कंपनियां उत्पाद तो बना सकती हैं लेकिन अमेरिका में जाकर यूएस एफडीए से रजिस्ट्रेशन की औपचारिकताएं कैसे करवाएं? उप्र के मेडिकल हेल्थ् एंड फैमिली वेलफेयर विभाग को सौंपे गए शिकायती पत्र और दस्तावेजों के मुताबिक पिछले साल ही यूएस एफडीए के रजिस्ट्रेशन समेत अनावश्यक शर्तों की अनिवार्यता समाप्त कर दी थी। आरोप लग रहे हैं कि अफसर अपनी चहेती कंपनियों से दो गुना कीमत पर उपकरण खरीदने के लिए इस शर्त को अब भी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।

            कोरोना संक्रमण के बीच यूपी में मेडिकल उपकरणों की खरीद फरोख्त में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं। ताजा मामला सेमी ऑटोमेटिक बायो केमिस्ट्री एनेलाइजर की खरीद का है। मेडिकल हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर को भेजी गई शिकायत के मुताबिक दर्जनों जिलों में यह उपकरण बड़ी मात्रा में खरीदा गया। जेम पोर्टल के जरिए यह खरीद हुई चौंकाने वाली बात यह है कि मेक इन इंडिया के तहत भारतीय कंपनियां यह उपकरण महज 77 हजार रूपए की दर से दे रही थीं जबकि अफसरों ने यही उपकरण डेढ़ लाख की दर से खरीदा। भारतीय कंपनियों को बाहर करने के लिए अफसरों ने अपने स्तर से तय कर लिया कि केवल उन्हीं कंपनियों से खरीद होगी, जिनके पास अमेरिका की यूएस एफडीए का रजिस्ट्रेशन नंबर होगा।  इसके बाद एक झटके में ही सभी भारतीय कंपनियां दौड़ से बाहर हो गईं और अफसरों ने दो गुना महंगी मशीनें खरीदीं। ऐसा करने वालों में प्रतापगढ़, हरदोई, आगरा, बदायूं, बरेली, मेरठ, शाहजहांपुर, अलीगढ़, उन्नाव, बुलंदशहर, मथुरा, कन्नौज, देवरिया और अम्बेडकर नगर समेत कई जिलों के नाम आ रहे हैं। शिकायती पत्र के मुताबिक यूएस एफडीए का रजिस्ट्रेशन नंबर लेने के लिए अमेरिका जाकर वहां पांच से छह महीने दौड़भाग और औपचारिकताएं पूरी करना आसान नहीं है। ऐसे में अफसरों ने अपने चहेती कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए इस शर्त को लागू कर दिया है।

भारतीय लाइसेंस के बजाय अमेरिकी लाइसेंस पर भरोसा :
भारतीय कंपनियां सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन के मानकों पर खरी हैं उनके पास ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया का लाइसेंस भी है। इसके बावजूद यूपी का स्वास्थ्य महकमा इन एजेंसियों के मानक और लाइसेंस को अहमियत देने को तैयार नहीं है।

कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मंत्रालय का आदेश् दरकिनार कर जोड़ी गई शर्त :
भारत सरकार के कॉमर्स एंड इंडस्ट्री विभाग की तरफ से पिछले साल 20 जून को जारी आदेश के मुताबिक अगर भारतीय कंपनियां आईसीएमआर, भारतीय कंपनियां सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के मानकों को पूरा करती हैं तो अन्य किसी भी संस्था से रजिस्ट्रेशन की शर्त नहीं लगा सकती इसके बावजूद अफसर मनमानी पर आमादा हैं।

खरीद में गड़बड़ी की शिकायतें मिली थीं, जिसकी जांच चल रही है। हालांकि यूएस एफडीए को लेकर सामने आ रहे नए तथ्यों की पड़ताल की जाएगी। इस मामले में संबंधित सीएमओ से भी पूछताछ होगी। इंडस्ट्री विभाग की तरफ से पाबंदी हटाने के बावजूद शर्त लागू करने की जांच होगी।
डॉ़ डीएस नेगी, महानिदेशक

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