दिल्ली स्टेशन पर उतरने
के बाद मोबाइल चेक किया। एक में नेटवर्क नहीं था और दूसरे मोबाइल में बैलेंस। मेरे
करीबियों के लिए मेरी यह हालत कोई नई बात नहीं है। मुझे भी इसकी आदत सी है, लिहाजा
सोचा कि इंडिया हैबिटेट सेंटर में मीडिया ब्रीफिंग के बाद बैलेंस डलवा लूंगा। सुबह
करीब 10 बजे से ब्रीफिंग शुरू हुई। बदिल्ली में होने के कारण मोबाइल रोमिंग में था
और बैलेंस न होने के कारण उसमें न तो कॉल आ सकती थी और न ही जा सकती थी। शाम चार बजे
हम सभी को वर्कशाप चलने के लिए कहा गया। बीच में आधे घंटे का समय था। इस बीच चाय की
व्यवस्था थी। कलेजे पर पत्थर रखकर मैने चाय छोड़ी और मोबाइल में बैलेंस के लिए नेशनल
हैबिटेट सेंटर से निकलकर लोधी रोड की दुकानों का रुख किया। करीब आधे घंटे तक पैदल मार्च
के बाद हर दुकान से यही जवाब मिला कि यहां बीएसएनएल नहीं चलता लिहाजा वे मेरी कोई मदद
नहीं कर सकते। अजब हालत थी, मोबाइल रिचार्ज हो नहीं सकता और मैं किसी को मदद के लिए
कॉल कर नहीं सकता। थककर मैं चाय की दुकान पर बैठा। चाय की पहली घूंट भीतर गई तो ध्यान
आया कि ई मेल से मदद मांगी जाए। लैपटॉप साथ था, दिल्ली रवाना होने से पहले आनंद भाई
का डोंगल मिल गया था। उसका इस्तेमाल किया। शाम के पांच बज रहे थे। दिवस चतुर्वेदी और
रोहित मिश्रा को ई मेल किया। कोई रिप्लाई नहीं आया तो अमर उजाला के अपने वरिष्ठ साथी
ऋषि भाई साहब को ई मेल किया। उनका तुरंत रिप्लाई आया ‘ओके’। रिप्लाई देखकर राहत की
सांस ली। मैने 50 रुपए के बैलेंस का अनुरोध किया था, उन्होंने 200 डलवा दिए। हालांकि इसके बाद रोहित
और दिवस की मदद भी प्राप्त हुई लेकिन मेरी मुश्किल खतम नहीं हुई। वापस हैबिटेट सेंटर
पहुंचा तो चला कि टीम रवाना हो चुकी थी और मेरा रीइम्बर्समेंट भी नहीं बन पाया। खैर
मैने आयोजकों को फोन किया तो उन्होंने मेरा चेक लखनऊ भेजने का भरोसा दिलाया। मुझे कुछ
राहत मिली लेकिन नियती से जंग जारी थी। मैं मेट्रो से राजीव चौक पहुंचा तो देखा कि
मेरा वह मोबाइल गायब है, जिसके बैलेंस के लिए मैं जूझ रहा था। मेरा नोकिया लूमिया चोरी
हो चुका था और जो मोबाइल मेरे पास बचा था, उसमें अब भी नेटवर्क नहीं था। यानी सुबह से शाम तक जब तक दिल्ली में रहा, अपनों से दूर रहा।
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